सम्पादकीय

जलकी भयावहता समझना आवश्यक


डा. प्रितम भि. गेडाम

जल हर सजीवके लिए आवश्यक है, पानीके बिना जीवनकी कल्पना करना असंभव है। जिस ग्रहपर पानी मिलेगा वही जीवनकी आशा है। भोजनके बिना हम कुछ दिनोंतक जीवित रह सकते हैं लेकिन बिना पानीके हम जीवित नहीं रह सकते हैं। आज हालात ऐसे हैं जब करोड़ों लोगोंके पास साफ पानीकी सुविधा नहीं है। इससे गंभीर बीमारियोंसे बड़ी संख्यामें दर्दनाक मौतें होती हैं। वैश्विक जल उपयोग पिछले सौ वर्षोंमें छह गुणा बढ़ गया है। बढ़ती आबादी, आर्थिक विकास और खपतके तरीकोंमें बदलावके कारण यह प्रति वर्ष लगभग एक प्रतिशतकी दरसे लगातार बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्रके एक अनुमानके अनुसार आज दुनियाभरमें २.१ बिलियन लोग सुरक्षित पेयजलके उपयोगके बिना रहते हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) पीनेके पानी और स्वच्छताके अधिकारको एक मानव अधिकारके रूपमें मान्यता देता है। यह मानव अधिकार है कि किसीको भी, बिना किसी भेदभावके, पीनेके लिए स्वच्छ जल, कपड़े धोने, खाना पकाने एवं अन्य जीवन उपयोगी कार्यकलापोंके लिए पर्याप्त पानीकी उपलब्धता हो। भारत जल संकटका सामना कर रहा है। भारतके पास दुनियाके ताजे पानीका सिर्फ चार प्रतिशत है जबकि भारतमें वैश्विक आबादीका १६ प्रतिशतसे अधिक है।

हर साल लगभग ३.७७ करोड भारतीय जलजनित बीमारियोंसे प्रभावित होते हैं, १५ लाख बच्चे डायरियासे मरते हैं। २०१५ में भारतमें डायरियाके कारण ३.२९ लाखसे अधिक बच्चोंकी मृत्यु हो गयी। हैजा, तीव्र डायरिया रोग, टाइफाइड और वायरल हेपेटाइटिस जैसी जलजनित बीमारियां भारतमें प्रचलित हैं। पीनेके पानीमें सुधारके बावजूद, कई अन्य जल स्रोत जैव और रासायनिक दोनों प्रदूषकोंसे दूषित हैं और देशके २१ प्रतिशतसे अधिक रोग पानीसे संबंधित हैं इसमेंसे तीव्र डायरियासे होनेवाली बीमारियोंसे अधिकतम मौतें हुईं साथ ही वायरल हैपेटाइटिस, टाइफाइड और हैजासे भी, दूषित जलसे आंतरीक मानवीय अंगोंको क्षती होती है जिससे मुत्युका प्रमाण बढ़ता हैं। डायरियासे सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश और उसके बाद पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और मध्य प्रदेशमें हुई हैं। दूषित पानीसे पेटमें ऐंठन और दर्द, उल्टी, चकत्ते, कानका दर्द, गुलाबी आंखें, एस्कारियासिस, हुकवर्म, श्वासप्रणालीमें संक्रमण, गुर्देकी क्षति, पाचनतंत्रिका संबंधी समस्याएं, प्रजनन संबंधी और अंत:स्रावी क्षति, क्षीण प्रतिरक्षा और कैंसर जैसे जानलेवा रोग होते है, जल प्रदूषण बढऩेसे मलेरिया फैलानेवाले मच्छरोंके लिए प्रजननका आधार बनता है, विश्व स्वास्थ संघटनके वल्र्ड मलेरिया रिपोर्ट २०१७ अनुसार हर साल दुनियाभरमें ५० करोड लोगोंको मलेरिया होता हैं इसमेंसे साधारणत २७ लाख लोगोंकी जान चली जाती हैं मृतकोंमें आधेसे अधिक पांच सालसे कम उम्रके हैं। अत्यधिक प्रदूषित पानीकी समस्या नदी-नालों, फैक्टरीके पासकी बस्तियों या शहरोंकी मलिन बस्तियोंमें तीव्र है।

विश्व स्तरपर भारत जल गुणवत्ता सूचकांकमें १२२ देशोंमें १२०वें स्थानपर है। जल प्रबंधनकी कमीके कारण भारतका ७० प्रतिशत पानी दूषित है, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालयके अनुसार विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशोंमें १२,५७७ बस्तियोंमें रहनेवाली लगभग १०.६ करोड़ आबादीको अतिरिक्त फ्लोराइड युक्त पीनेका पानी मिल रहा है। अतिरिक्त फ्लोराइडकी अधिकतासे फ्लोरोसिस हो सकता है जो दांतों और हड्डियोंको प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दांतोंके क्षयको रोकनेके लिए फ्लोराइडका इष्टतम स्तर प्रत्येक लीटर पानीमें ०.७ मिलीग्राम है और १.५ मिलीग्रामसे अधिकका कोई भी स्तर खतरनाक है। अंतरराष्ट्रीय जल संघकी वाटर वेस्ट रिपोर्ट २०१८ के अनुसार विश्वके ८० प्रतिशत अपशिष्ट जलको दुनियाके उन जलमार्गोंमें वितरित किया जाता है, जहां यह स्वास्थ्य, पर्यावरण और जलवायु संबंधी खतरोंका निर्माण करते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडियाके अनुसार, ६० करोड़ भारतीय अत्यधिक जल तनावका सामना करते हैं। नीती आयोगका अनुमान है कि २०३० तक देशकी पानीकी मांग उपलब्ध आपूर्तिसे दुगुनी होनेका अनुमान है, जिससे करोड़ों लोगोंके लिए गंभीर जलकी कमी हो सकती है।

भारतके लगभग ७५ प्रतिशतसे अधिक मीठे पानीका कृषि क्षेत्रमें उपयोग किया जाता है दुनियाके कुल भूजलका लगभग २५ प्रतिशत जल अकेला भारत ही खींच लेता है, यह चीन और संयुक्त राज्य अमेरिकाकी तुलनामें अधिक भूजल है। भारतके साठ प्रतिशत जिले भूजलपर महत्वपूर्ण घोषित किये गये हैं, इसका मतलब यह है कि उनके पास या तो दुर्लभ आपूर्ति बची है या भूजलकी खराब गुणवत्ता या दोनों। भारतके बड़े बांधों और नहर प्रणालियोंके बावजूद, किसानों द्वारा सिंचाईके लिए उपयोग किये जानेवाले पानीका ६३ प्रतिशत भूजल है नहरोंका हिस्सा केवल २६ प्रतिशत है। आज हम जो पानीका उपभोग कर रहे हैं, वह शायद आनेवाली पीढ़ीका हिस्सा है, कल कल करके बहती नदियोंके देशमें, आज हमें बोतलबंद पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है। शहरोंकी नदियां अब नालोंका रूप ले चुकी हैं, जल प्रदूषणके कारण जलीयजीवोंका अस्तित्व खतरेमें है। भूजल स्तर तेजीसे घट रहा है, विकासके नामपर वन क्षेत्र सिकुड़ रहा है। खेती अब भी पारम्परिक रूपमें चल रही है जबकि उन्नत खेती विदेशोंमें बहुत कम पानीकी उपलब्धताके साथ की जाती है। मानव प्रकृतिसे छेड़छाड़ कर नैसर्गिक नियमोंको भंग कर रहा हैं। शहरीकरण, ईंधन, रसायनोंका अति प्रयोग, औद्योगिकीकरण, प्रदूषण, इलेक्ट्रॉनिक संसाधनोंका प्रयोग अत्याधिक हुआ है परिणामस्वरूप, पशु-पक्षी जंगली जानवर, वनोषधी, प्राकृतिक धरोहर तेजीसे नष्ट हो रही हैं। बढ़ती जनसंख्या अपने साथ जरूरतोंको बढ़ा रही है। जिससे सीमित संसाधनोंमें असीमित आवश्यकताओंकी पूर्ति करनेपर दबाव आ रहा है इससे ग्लोबल वार्मिंगका खतरा बढ़ गया है, लगातार तापमान और पर्यावरणका चक्र बिगड़ रहा है जिससे प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं। हम विज्ञान और तकनीकी संसाधनोंके बिना रह सकते हैं लेकिन इस नैसर्गिक प्रकृतिके बिना नहीं क्योंकि ऑक्सीजन, पानी, धूप, खाद्य उत्पादन श्रृंखला, तापमानका संतुलन इस प्रकृतिका उपहार है। एक जिम्मेदार नागरिकके रूपमें, यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि दुनियामें हर व्यक्तिके लिए पानी जैसी अमूल्य धरोहर आसानीसे उपलब्ध हो सके, इसे बचाकर जल संसाधनोंको समृद्ध बनाया जा सके और हर एक व्यक्तिको पानीकी हर एक बूंदके महत्वको समझना होगा। हम पहलेसे ही बहुत पिछड़ चुके है यदि हम अब भी नहीं जागे हैं तो पृथ्वीपर मानव जीवन खत्म होनेके कगारपर है यह सुनिश्चित समझें।