सम्पादकीय

बंगालमें चल रही है वर्चस्वकी जंग


रमेश सर्राफ धमोरा

देशके पांच राज्योंमें विधानसभा चुनावकी प्रक्रिया चल रही है। आगामी मई माहतक नयी सरकारका गठन हो जायगा। चुनाव होनेवाले पांच राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल एवं पुडुचेरीमेंसे सबसे कड़ा चुनावी संघर्ष पश्चिम बंगालमें देखनेको मिल रहा है। वहां दस साल पहले वामोर्चाके सबसे मजबूत गढ़को ढहानेवाली ममता बनर्जी बंगालकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी सत्तामें हैट्रिक लगानेके लिए पूजा जोर लगा रही हैं। दूसरी तरफ २०१९ के लोकसभा चुनावके नतीजोंसे उत्साहित भाजपा ममता दीदीके किलेको ध्वस्त करनेका दमभर रही है। प्रदेशमें २५ साल राज कर चुकी कांग्रेस एवं ३२ साल राज कर चुके वामदल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पश्चिम बंगालकी हर सीटपर तिकोना संघर्ष होगा। पश्चिम बंगालकी मुख्य मंत्री एवं तृणमूल कांग्रेसकी अध्यक्ष ममता बनर्जी इन दिनों लगातार सुर्खियोंमें बनी हुई है। उन्होंने अपने परम्परागत भवानीपुर विधानसभा क्षेत्रकी बजाय बहुचर्चित नंदीग्राम विधानसभा सीटसे अपने ही पूर्व सहयोगी एवं अब भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारीके सामने चुनाव लडऩेकी घोषणा कर सबको चौंका दिया है। ममता बनर्जीके नंदीग्राममें नामांकन दाखिल करनेके दौरान गाड़ीमें उनके पांवको चोट लग गयी थी। जिसका जिम्मेदार उन्होंने भारतीय जनता पार्टीके लोगोंको ठहराया था। परन्तु भाजपा नेताओंने उस घटनाको ममता बनर्जीका एक राजनीतिक ड्रामा करार देते हुए घटनामें उनकी पार्टीके किसी भी कार्यकर्ताका हाथ होनेकी संभावनाको पूरी तरह नकार दिया था। उसके बादसे ही ममता बनर्जी एवं भाजपा नेताओंमें एक-दूसरेके खिलाफ आरोप-प्रत्यारोपका दौर चल रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरीने पैरमें चोट लगनेको लेकर ममता बनर्जीपर निशाना साधते हुए पूरे घटनाक्रमको एक राजनीतिक ड्रामा करार दिया है। हालांकि कांग्रेसके ही बड़े नेता एवं पंजाबके मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंहने ममता बनर्जीके चोट लगनेकी घटनापर सहानुभूति जताकर पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटीको सांसतमें डाल दिया है। ममता बनर्जी अपने राजनीतिक वर्चस्व बचानेका चुनाव मानकर धुआंधार तरीकेसे चुनाव लड़ रही हैं। चुनाव लडऩेके लिए उनकी पार्टी द्वारा हर तरीका इस्तेमाल किया जा रहा हैं। वहीं पिछले लोकसभा चुनावमें एकदम दोसे १८ सीटोंपर पहुंचनेवाली भाजपाके कार्यकर्ता पूरे जोशसे भरे हुए हैं। भाजपाने तृणमूल कांग्रेसके कई बड़े जनाधारवाले नेताओंको तोड़कर अपनी पार्टीमें शामिल कर लिया है। जिसका पूरा लाभ भाजपाको मिलेगा। तृणमूल कांग्रेस पार्टीके नेता एवं राज्यसभासे इस्तीफा देनेवाले दिनेश त्रिवेदी, शुभेंदु अधिकारी, मुकुल राय, राजीव बनर्जी, बच्चू हांसदा सहित २५ विधायकों एवं दो सांसद भाजपामें शामिल हो चुके हैं।

बालीवुडमें बड़े अभिनेता रहे मिथुन चक्रवर्तीने भी प्रधान मंत्री मोदीकी जनसभामें भाजपाका दामन थाम लिया है। उन्होंने कहा कि वह पूरी ताकतके साथ भाजपाके पक्षमें चुनाव प्रचार करेंगे। इससे भाजपाको बहुत लाभ मिलेगा। मिथुन चक्रवर्ती पश्चिम बंगालमें खासे लोकप्रिय हैं। वामपंथी विचारधाराके कारण मिथुन चक्रवर्ती पहले वामपंथी दलोंके नजदीकी थे। फिर उनको ममता बनर्जीकी तृणमूल कांग्रेस पार्टीने राज्यसभा सदस्य भी बनाया था। परन्तु दो साल बाद ही उन्होंने तृणमूल कांग्रेसके राज्यसभा सदस्यसे इस्तीफा दे दिया था। अब मिथुन दा भाजपामें शामिल होकर ममता दीदीपर निशाना साध रहे हैं। ममता बनर्जी भी राजनीतिकी पुरानी खिलाड़ी है। अपने संघर्षके बलपर उन्होंने वाममोर्चाके ३३ वर्षोंके शासनको ध्वस्त कर २०११ में पहली बार भारी बहुमतसे अपनी सरकार बनायी थी। २०१६ के चुनावमें भी उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी। लेकिन २०१९ के लोकसभा चुनावमें ममता दीदीकी स्थिति कमजोर पडऩे लगी। भाजपाने बंगाली जनमानसमें तेजीसे अपनी पैठ बनायी। इसीका नतीजा था कि लोकसभामें ममता बनर्जीकी पार्टी तृणमूल कांग्रेसके सांसदोंकी संख्या ३४ से घटकर २२ रह गयी थी। ममता दीदीकी पार्टीके वोटोंमें भी गिरावट होनी शुरू हो गयी थी।

२०१९ के लोकसभा चुनावमें ममता दीदीकी तृणमूल कांग्रेसको जहां ४४.९१ प्रतिशत वोट मिले वहीं भाजपाको ४०.७० प्रतिशत मत मिले थे। २०१९ के लोकसभा चुनाव कांग्रेस एवं वामदलोंने अलग-अलग लड़ा था। जिसमें कांग्रेसको ५.६७ प्रतिशत एवं वामदलोंको ६.३० प्रतिशत मत मिले थे। २०१९ के लोकसभा चुनावमें ममता दीदीकी पार्टीने १५८ विधानसभा सीटोंपर एवं भाजपाने १२८ सीटोंपर बढ़त हासिल की थी। परन्तु ६० विधानसभा सीटें ऐसी थीं जिनपर तृणमूल कांग्रेसकी भाजपापर महज चार हजार वाटोंकी ही बढ़त थी। वहीं ६० सीटें आज ममता दीदीके लिए परेशानीका सबब बनी हुई हैं।

मां माटी मानुषके नारेके साथ बंगाली लोगोंमें लोकप्रिय रही मुख्य मंत्री ममता बनर्जी आज अपने राजनीतिक वजूदको बचानेकी लड़ाई लड़ रही है। ममता बनर्जीके वोट बैंक रहे मुस्लिम मतदाता भी आज बंटे हुए नजर आ रहे हैं। प्रसिद्ध फुरफुरा शरीफ दरगाहके धर्मगुरु पीरजादा अब्बास सिद्दीकीने भी ममता दीदीका साथ छोड़कर इंडियन सेक्युलर फ्रंटके नामसे अपनी अलग पार्टी बना कांग्रेस वामदलोंके गठबंधनमें शामिल होकर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा बंगालमें हिन्दू मतोंका तेजीसे धु्रवीकरण कर रही है तथा खुदको हिंदू हितैषी दिखानेका कोई भी अवसर नहीं छोड़ रही है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कि पिछले दिनों ब्रिगेड परेड ग्राउंडमें हुई बड़ी विशाल जनसभाके बाद भाजपा कार्यकर्ताओंका जोश काफी बढ़ गया है। उसके बादसे ही ममता बनर्जीसे नाराज सभी नेता भाजपामें अपना नया ठिकाना ढूंढ़ रहे हैं।

विभिन्न चुनावी सर्वेक्षणोंमें भी पश्चिम बंगालमें ममता बनर्जी एवं भाजपाके मध्य ही चुनाव मुकाबला दिखाया जा रहा है। हालांकि अभीतक किये गये सभी चुनाव सर्वेक्षणोंमें ममता दीदीकी वापसीकी संभावना बतायी जा रही है। लेकिन भाजपाको भी ११५ से अधिक सीटे मिलती दिखा रहें हैं। ऐसेमें ममता बनर्जीसे नाराज कांग्रेस एवं वामदलोंके मतदाताओंको भी यदि चुनावोंमें ममता बनर्जीकी सरकार फिरसे आनेकी संभावनाके चलते उनमेंसे कुछ कुछ वोट भाजपाकी तरफ चले जाते हैं तो निश्चय ही भाजपाकी सीटोंमें वृद्धि होगी। जो ममता दीदीके लिए किसी खतरेकी घंटीसे कम नहीं होगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकोंका मानना है कि पश्चिम बंगालमें ममता बनर्जीकी पार्टी एवं भाजपा ही मुख्य मुकाबलेमें है। कांग्रेस वाम गठबंधन ममता दीदीके वोटोंमें ही सेंध लगा रहा हैं। जिससे उनको नुकसान होनेकी संभावना जतायी जा रही है। भाजपाने बंगालके सभी विधानसभा क्षेत्रोंमें अपने बड़े नेताओंको चुनाव प्रबंधनमें उतारा है। जिसमें केंद्रीय मंत्रीसे लेकर विधायकतक शामिल है। भाजपा इस अवसरको किसी भी तरह हाथसे नहीं जाने देना चाहती है। उनके नेताओंको पता है कि यदि इस बार फिरसे ममता दीदीकी सरकार बन गयी तो फिर उसको उखाड़ पाना संभव नहीं होगा।