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बंगाल में शुरु हो गई बदले की सियासत?


  • नयी दिल्लीः पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के दो मंत्रियों व एक विधायक की गिरफ्तारी क्या सियासी बदला लेने की नीयत से की गई? आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस के कुछ सांसदों पर भी क्या सीबीआई अपना शिकंजा कसने वाली है? और क्या बंगाल को उस अराजकता की तरफ धकेला जा रहा है कि राज्य को संभाल पाना ममता सरकार के बूते से बाहर हो जाये और फिर दूसरे विकल्प को आजमाया जाए?

सियासी गलियारों में तैर रहे इन सवालों के अपने मायने हैं लेकिन इनके जवाब फ़िलहाल भविष्य के गर्भ में है. पर,आसार यही लगते हैं कि केंद्र और बंगाल सरकार के बीच टकराव की ये खाई और गहरी होती जाएगी जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत कतई नहीं कहे जा सकते.केंद्र व राज्य के संबंधों की टकराहट का खामियाजा आखिरकार उस प्रदेश की जनता को ही भुगतना पड़ता है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन गिरफ्तारियों को सियासी बदले की कार्रवाई बताया है क्योंकि इस मामले में कथित तौर पर शामिल मुकुल रॉय और शुवेन्दु अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. शायद इसलिए कि अब वे बीजेपी में हैं. लेकिन बीजेपी की दलील है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने जो भी कार्रवाई की है, वह न्यायालय के आदेश के आधार पर ही की गई है. लेकिन सवाल इन गिरफ्तारियों की टाइमिंग को लेकर उठा है कि बंगाल में सरकार बनने के तत्काल बाद ही यह कदम उठाने की ऐसी क्या जल्दी थी.

दरअसल, सीबीआई ने हाल ही में राज्य के गवर्नर जगदीप धनखड़ से नारदाा स्टिंग मामले में मंत्री फरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी और विधायक मदन मित्रा समेत पूर्व मेयर शोभन चटर्जी के खिलाफ जांच की इजाजत मांगी थी. गवर्नर ने चुनाव बाद उसे हरी झंडी दे दी थी. इसके बाद सीबीआई ने ये कार्रवाई की है.