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बड़ा संकट बन रहे छोटे फ्लाइंग रोबोट, चीन कर रहा पाकिस्तान को इस नए हथियार की आपूर्ति


  • नई दिल्‍ली, । ड्रोन का जिक्र होते ही हमारे दिमाग में आमतौर पर एक छोटे से रोबोटिक विमान की छवि बनती है। कुछ फीट का विमान, जिसे रिमोट के जरिये कहीं दूर से संचालित किया जाता है। हालांकि ड्रोन यानी मानवरहित विमान (यूएवी) का परिचय सिर्फ इतना नहीं है। ड्रोन का अर्थ सिर्फ दो-तीन फीट का रिमोट से चलने वाला विमान ही नहीं होता है। हेलिकॉप्टर के आकार के बड़े युद्धक ड्रोन भी बहुतायत में हैं। दुनिया के ज्यादातर देश ऐसे घातक युद्धक ड्रोन विकसित करने में सक्रियता से जुटे हैं। कई युद्धक ड्रोन 1,000 किलोग्राम से भी ज्यादा वजन के हथियार लेकर उड़ने और कई-कई घंटे लगातार हवा में रहने में सक्षम हैं। हाल के दिनों में आतंकियों द्वारा इनके इस्तेमाल ने सबकी चिंता बढ़ा दी है।

आई आफ द स्काई भी कहे जाते हैं ड्रोन : ड्रोन को आम भाषा में फ्लाइंग रोबोट कहा जा सकता है। इन्हें दूर बैठे नियंत्रित किया जा सकता है। इनके माध्यम से न केवल किसी स्थान विशेष की 24 घंटे निगरानी की जा सकती है, बल्कि ये आपको रियल टाइम पिक्चर्स भी भेज सकते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के चलते इसे आई आफ द स्काई (आसमान की आंख) कहा जाता है।

1917 से जुड़ते हैं ड्रोन की कहानी के शुरुआती तार : ड्रोन के आधुनिक स्वरूप के तार 1917 से जुड़ते हैं। चाल्र्स कैटरिंग ने एक हवाई तारपीडो बनाया था, जिसे बग नाम दिया गया था। यह किसी जगह पहुंचकर वहां बम गिराने में सक्षम था। 1937 में अमेरिकी नौसेना ने रेडियो तरंगों से नियंत्रित होने वाला मानवरहित तारपीडो एन2सी-2 बनाया था। 1973 में रूस ने सैन्य निगरानी के लिए ड्रोन बनाया। इसके बाद अमेरिकी सेना ने 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान ड्रोन का पहली बार सैन्य इस्तेमाल किया था। अमेरिका का रहस्यमयी एक्स-37बी स्पेस प्लेन भी ड्रोन की ही श्रेणी में आता है। अमेरिका की वायुसेना इसे नियंत्रित करती है। इसे अंतरिक्ष में जाकर वापस आ सकने वाले विमान के तौर पर विकसित किया गया है।

बनते जा रहे हैं आतंकवादियों के हाथ का हथियार : द एसोसिएशन आफ द यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी (एयूएसए) ने फरवरी, 2021 में ‘द रोल आफ ड्रोन्स इन फ्यूचर टेररिस्ट अटैक्स’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें बताया गया कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) ने पहली बार आतंकी गतिविधियों में ड्रोन का इस्तेमाल किया था। एक गैर सरकारी संगठन मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख के हवाले से कहा कि अगस्त, 2014 में आइएस ने युद्ध के मैदान की खुफिया जानकारी एकत्र करने और आत्मघाती विस्फोटों के प्रभावों का पता लगाने के लिए ड्रोन का उपयोग करना शुरू किया था। यह आतंकी संगठन छोटे ड्रोन पर बम बांधकर हमले की भी कई कोशिशें कर चुका है। पिछले वर्ष अक्टूबर में इराक में ऐसे एक हमले में कई कुर्द लड़ाकों की जान चली गई थी। इससे पहले 2013 में अलकायदा ने ड्रोन का इस्तेमाल करके पाकिस्तान में आतंकी हमले की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली थी। 2016 से इराक और सीरिया में हमला करने के लिए आइएस लगातार ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। इस्लामिक स्टेट के अलावा फलस्तीन और लेबनान में सक्रिय हिजबुल्लाह, हूती विद्रोही, तालिबान के साथ पाकिस्तान में सक्रिय कई आतंकी संगठन हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।