सम्पादकीय

बढ़ता विस्थापन


जलवायु परिवर्तनसे उत्पन्न होनेवाली आपदाएं कितनी भयावह और मानव जीवनके लिए पीड़ादायी हैं इसका सहज अनुमान इण्टरनेशनल फेडरेशन आफ रेडक्रास सोसायटी (आईएफआरसी) की ताजा रिपोर्टसे लगाया जा सकता है। इन आपदाओंका सर्वाधिक दुष्प्रभाव महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गोंपर पड़ता है, जिन्हें लम्बे समयतक सहयोग और समर्थनकी आवश्यकता पड़ती है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन्हें अपेक्षाके अनुरूप यह सब नहीं मिल पाता है। इन्हें समुचित और सुरक्षित आश्रम, स्वास्थ्य, स्वच्छ जलके साथ ही भावनात्मक सुरक्षाकी सख्त जरूरत पड़ती है। रिपोर्टमें कहा गया है कि हर वर्ष विश्वमें २.२७ करोड़ लोग विस्थापित हो जाते हैं। सितम्बर २०२० से फरवरी २०२१ की छह माहकी अवधिमें एक करोड़से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। विस्थापित होनेवालोंमें ६० प्रतिशत एशिया प्रशान्त क्षेत्रके हैं। बाढ़, सूखा, तूफान आदि प्राकृतिक आपदाओंके चलते प्रभावित लोगोंके समक्ष जीवनरक्षाके अतिरिक्त अनेक चुनौतियां भी सामने रहती हैं। आईएफआरसीकी समन्वयक हेलेन ब्रंटके अनुसार विश्वके लगभग १.२५ करोड़ लोग अपने ही देशोंमें विस्थापित होनेको विवश हो गये हैं। प्राकृतिक आपदाओंमें कोई कमी नहीं आ रही है, बल्कि यह तेजीसे बढ़ रही है, जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। विश्व बैंकके एक अनुमानके अनुसार समुद्रका जलस्तर बढऩेके कारण इस सदीमें लगभग नौ करोड़ लोग विस्थापित हो जायंगे। अनेक देशोंके साथ ही भारत भी खतरेकी गिरफ्तमें है। भारतको विश्वका सातवां सबसे जलवायु प्रभावित देश माना गया है। वर्ष २०१९ में जलवायु परिवर्तनसे उत्पन्न आपदाओंके कारण भारतमें २,२६७ लोगोंकी मृत्यु हो गयी। इसके साथ ही देशको ५०१,६५९ करोड़ रुपयेकी आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी। २०२० भारतके लिए आठवां सबसे गर्म देश वर्ष रहा और २०२१ में इसमें और गर्मी आ सकती है। प्राकृतिक आपदाओंका सबसे अधिक पीड़ादायक पक्ष विस्थापनका है। २०५० तक ४.५ करोड़ लोगोंके विस्थापित होनेका खतरा है। पूरी दुनियाकी स्थिति अत्यन्त भयावह और चिन्ताजनक है। अब बड़ा प्रश्न यह है कि इस विकट स्थितिके लिए कौन किस सीमातक जिम्मेदार है। जलवायु परिवर्तनके लिए काफी हदतक विकसित और औद्योगिक राष्टï्र जिम्मेदार हैं लेकिन स्थितिको नियंत्रित करनेमें उम्मीदके अनुरूप उनकी भूमिका नहीं होती है। हालात बदसे बदतर हो रहे हैं जिसका दुष्परिणाम मानवको भुगतना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तनके खतरोंको कम करनेके लिए एकजुट प्रयास करनेकी आवश्यकता है।

वाहनोंके लिए सार्थक नीति

देशमें १५ साल पुराने वाहनोंपर रोक लगानेका निर्णय कर केन्द्र सरकारने भयावह होते प्रदूषणको कम करनेकी दिशामें महत्वपूर्ण कदम उठाया है। जर्जर वाहन जहां दुर्घटनाओंके सबब बनते हैं, वहीं ईंधनकी खपत बढ़ानेके साथ प्रदूषण बढ़ाते हैं। जर्जर वाहनोंको सड़कोंसे हटानेके लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सर्वोच्च न्यायालय भी रोक लगानेका आदेश दिया था जिसके क्रममें सड़क परिवहन और राजमार्गमंत्री नितिन गडकरीने वाहन स्क्रैपिंग नीतिकी घोषणा की है। इस नीतिके तहत १५ सालसे अधिक पुराने वाहनोंका पंजीकरण निरस्त किया जायगा और पुराने वाहनोंके तमाम पुर्जे अलग कर इसे रीसाइकिल किया जायगा। ऐसा करनेसे पुराने वाहनके अवैध या आपराधिक इस्तेमालपर भी रोक लग जायगी। हालांकि गाड़ीके स्क्रैपके दौरान सतर्कता और कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है। स्क्रैप आधिकारिक स्क्रैप डीलरसे ही करायें और चेसिस नम्बर जरूर ले लें। आरटीओको वाहन स्क्रैप किये जानेकी जानकारीके साथ रजिस्ट्रेशन भी रद कराना होगा। पुराने वाहनोंपर रोकसे ईंधनकी खपत तो कम होगी ही साथ ही उद्योगोंके लिए कम कीमतमें कच्चे मालकी उपलब्धता बढ़ेगी। इस योजनाके तहत पुराने और खराब गुणवत्तावाले वाहनोंको पंजीकृत स्क्रैपिंग केन्द्रोंमें जमा करानेवाले वाहन मालिकोंको स्क्रैपिंग प्रमाण-पत्र दिया जायगा। इस नीतिसे देशमें तीन करोड़ ९० हजारके अधिक रोजगार सृजित होंगे और आटो मोबाइल क्षेत्रमें बड़ा परिवर्तन आयेगा। जर्जर वाहनोंसे हर साल जहां हजारों दुर्घटनाएं होती हैं वहीं अनेक लोग कालके गालमें समा जाते हैं और प्रदूषणको और जहरीला बनाते हैं। ऐसेमें १५ साल पुराने वाहनोंपर रोक लगानेकी केन्द्र सरकारकी योजना स्वागतयोग्य है। वाहनोंकी फिटनेसके साथ ही सड़कोंकी फिटनेसकी निगरानी भी बहुत जरूरी है, क्योंकि गढ्डायुक्त सड़कें भी दुर्घटनाकी सबब बनती है। इसलिए सरकारको इस ओर भी विशेष ध्यान देनेकी जरूरत है जिससे यातायात सहज और सुगम और प्रदूषणमुक्त हो सके।