सम्पादकीय

कोरोनाकी नयी लहरपर कैसे लगेगी रोक


तारकेश्वर मिश्र

देशमें एक बार फिर कोरोनासे जुड़ी खबरोंमें तेजी आ गयी है। एक ओर देशमें कोरोनाका टीकाकरण जारी है वहीं दूसरी ओर कोरोनाके नये मरीज तेजीसे सामने आ रहे हैं। कोरोनाकी नयी लहर चिंताका बड़ा कारण है। वास्तवमें कोरोना वायरसके बढ़ते संक्रमणकी बुनियादी वजह गलतफहमी और आम लापरवाही है। चूंकि देशमें संक्रमण सिकुड़ रहा था। संक्रमित मरीजों और मौतोंकी संख्या घट रही थी। अस्पतालोंमें कोविड बिस्तर खाली पड़े थे और उपचाराधीन मरीजोंकी संख्या दस लाखसे घटकर करीब १.४७ लाखतक लुढ़क आयी थी, लिहाजा आम सोच पुख्ता होने लगी कि कोरोनाका अवसान हो रहा है। बेशक कोरोना कालमें ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्थाके मद्देनजर सरकारी तंत्र और आम आदमीकी अपनी बाध्यताएं हैं कि घरसे निकलकर जीवनको फिरसे पटरीपर लाया जाये। लंबे लॉकडाउनके बाद खुद प्रधान मंत्री  ने कहा था कि जानके साथ जहान बचाना भी जरूरी है, लेकिन उसका अर्थ यह हरगिज नहीं था कि कोरोनासे बचावके सामान्य, परन्तु जरूरी उपायोंमें असावधानी बरती जाये। हालांकि प्रधान मंत्री मोदी और जिम्मेदार चिकित्सक आगाह करते रहे, लेकिन सार्वजनिक तौरपर भीड़ जमा होने लगी, दो गजकी दूरी बेमानी हो गयी और चेहरोंसे रहे-सहे मास्क भी खिसकने लगे। यही लापरवाही थी और गलतफहमी भी थी, लिहाजा ‘वार्निंग सिग्नलÓ साबित हुआ। अमेरिका और यूरोपीय देश आजतक इस गलतफहमीको झेल रहे हैं। कई देशोंमें दोबारा लॉकडाउन लागू करने पड़े हैं। फिर भी संक्रमण और मौतोंका सिलसिला जारी है। भारतमें भी लापरवाहीके नतीजे भयानक होते जा रहे हैं।

करीब ८६ फीसदी संक्रमित मामले महाराष्टï्र, केरल, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात राज्योंमें ही दर्ज किये गये हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा आदिमें भी संक्रमणके मामले बढ़ रहे हैं। करीब ८२ फीसदी मौतें सिर्फ पांच राज्योंमें ही हुई हैं। मौतका राष्टï्रीय औसत अब भी १.४२ फीसदी है। कोरोनाको पराजित कर घर लौटनेवालोंकी दर भी ९७ फीसदीसे अधिक है। संक्रमणकी दर भी १.३३ फीसदी है। आंकड़े और औसत राहत देनेवाले हैं, लेकिन सबसे बड़ी चिंता महाराष्टï्रसे थी और मौजूदा हालातमें भी है, जहां वासिम जिलेके एक स्कूलमें २२९ छात्र एक साथ संक्रमित पाये गये हैं। राज्यमें संक्रमणकी रफ्तार १३२ फीसदीसे बढ़ रही है। बुधवारको अकेले महाराष्ट्रसे एक ही दिनमें ८८०० से ज्यादा संक्रमित मरीज सामने आये। बीते २४ घंटोंमें देशभरमें कोरोनासे १०४ मौतें हुई हैं, जबकि महाराष्टï्रमें ही ५१ मौतें दर्ज की गयीं। अर्थात करीब ५० फीसदी। चिकित्सक कोरोना संक्रमणके इस विस्तारको नैसर्गिक प्रक्रिया मानते हैं। यह वायरसके अस्तित्वका सवाल है। प्रख्यात चिकित्सकोंका मानना है कि कोरोना एक भयानक, बहरूपिया और शातिर वायरस है, जो मानव-देहमें घुसनेके बाद हजारों-लाखों विषाणुओंको फैलाता है। वे मरते हैं, लेकिन फिर भी सक्रिय रहते हैं। एक अध्ययनके मुताबिक, भारतमें ७००० से अधिक कोरोना वायरसकी नस्लें पैदा हो चुकी हैं, लिहाजा साउथ अफ्रीका और ब्राजीलके नये प्रकार ही इतना बड़ा खतरा नहीं हैं। कोरोनाका खात्मा इतना आसान नहीं है। अब जो संक्रमण फैल रहा है, वह कितना भयानक साबित होगा, फिलहाल उसपर अध्ययन किये जा रहे हैं। कोरोनाका नया विस्तार सरकारोंके लिए चिन्ताका नया सबब है। प्रधान मंत्री दफ्तरने शीर्ष नौकरशाहोंके साथ आपात बैठक की। उसीके बाद केंद्रीय टीमें दस राज्योंमें भेजी जा रही हैं। वह आकलन करेंगी कि प्रभावित राज्योंमें नये सिरेसे कोरोना संक्रमण बढऩेके कारण क्या हैं और इन स्थितियोंपर कैसे काबू पाया जा सकता है? आखिर यह संक्रमण कैसे थम सकेगा? इसी संदर्भमें टीकाकरणकी गतिको तेज करनेके लिए अब निजी क्षेत्रको भी जोडऩेका फैसला किया गया है। फिलहाल देशमें कोरोना टीकाकरणकी औसत गति ०.८ फीसदी ही है। हम कई देशोंसे पिछड़े हैं। बहरहाल अब एक मार्चसे ५०-६० साल और उससे ज्यादा उम्रके आम नागरिकोंको टीका देनेका अभियान शुरू हो रहा है। उसमें निजी क्षेत्रकी भागीदारी भी है। टीका हमारे लिए ‘संजीवनीÓ समान है। यह अनुभव दुनियाके कई देश कर चुके हैं। यदि टीका लगेगा तो मानव-देहमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बनने लगेगी। उसका भी वक्त तय है, लेकिन इलाजकी शुरुआत तो होनी चाहिए। टीका लेनेसे परहेज या संकोच क्यों सामने आ रहे हैं? यह विषका इंजेक्शन नहीं है। हम चेचक, खसरा, हेपेटाइटिस, पोलियो आदिकी रोकथामके लिए टीके लेते रहे हैं। सिलसिले अब भी जारी हैं, लेकिन यह वयस्क टीकाकरणका हमारा पहला प्रयोग है, लिहाजा चुनौतीपूर्ण भी है। कोरोना टीकोंका उत्पादन भारतमें ही हो रहा है। आगामी तीन-चार महीनोंमें कुछ और टीके हमारे सामने उपलब्ध होंगे। फिलहाल यह टीकाकरण और मास्क पहननेकी अनिवार्यता ही हमें कोरोनाके नये हमलेसे बचा सकती है। प्रभावशाली लोगोंके निजी और सार्वजनिक आयोजनोंमें कोरोना प्रोटोकॉलके पालनके प्रति सरकारी तंत्र भी आंखें मूंद लेता है। यह भी लापरवाहीका ही नतीजा है कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और ब्रिटेनमें मिले नये कोरोना स्ट्रेनसे संक्रमित लोग भारत पहुंच चुके हैं। ब्रिटेनमें मिले नये स्ट्रेनसे प्रभावित मरीजोंकी संख्या तो भारतमें लगभग दो सौ है। सरकारी मशीनरीमें आयी शिथिलता तथा आर्थिक बेचौनीके कारण, जनता यह नहीं चाहेगी कि फिरसे लॉकडाउन जैसे उपाय थोपे जायं। ऐसेमें फिरसे बचावके मूल मंत्र अपनानेका सहयोग यदि जनताको दिखाना है तो सरकारको पहरेदारीका एक नया दौर शुरू करना होगा। भीड़को सबसे अधिक प्रश्रय राजनीतिक मंशा दे रही है या मनोरंजनकी परम्पराओंमें लौटते समाजको अब यह लगने लगा है कि बुरा दौर गुजर गया। इस परीक्षामें कोई भी परिणाम स्थायी तौरपर आत्मसंतोष पैदा नहीं कर सकता, बल्कि हर किसीके सामने खुदको बचानेकी नित नयी चुनौती सामने आ रही है। जबतक वैक्सीनके लक्ष्योंमें अधिकतम आबादी सूत्रधार नहीं बनती, चहल-पहलकी हर सतहपर शैतान कोरोनाके कदम बिना सुरागके भी अनुभव करने होंगे। माना कि कोरोनासे बचावके लिए वैक्सीन आ गयी है और वैक्सीनेशन भी तेजीसे चल रहा है, लेकिन वैक्सीनके असर और उसकी अवधिकी बाबत अब भी कुछ दावेसे नहीं कहा जा सकता। उधर साइड इफेक्ट्सकी आशंकाएं स्वास्थ्यकर्मियोंमें भी देखी जा सकती हैं। ऐसेमें कोरोनासे बचावका सबसे आसान और कारगर उपाय यही है कि हम मास्क पहनें, बार-बार हाथ धोयें तथा दो गजकी दूरीका पालन करें। यह सबको मानना होगा कि जान बचाना सबसे जरूरी है और सारे काम-काज तो चलते ही रहेंगे।