सम्पादकीय

यौगिक प्रणाली


जग्गी वासुदेव
आप किस धर्मसे हैं, इसका आपके यौगिक प्रणालीका उपयोग करनेकी योग्यतासे कुछ भी लेना-देना नहीं है, क्योंकि योग सिर्फ एक तकनीक है। तकनीक इसमें भेद नहीं करती। गुरुत्वाकर्षणके नियमोंकी व्याख्या आइजक न्यूटनने की थी, जो ईसाई संस्कृतिमें रहते थे तो क्या सिर्फ इसीलिए यह गुरुत्वाकर्षणको ईसाई बना देता है। योग एक तकनीक है। कोई भी, जो इसका उपयोग करना चाहता है, कर सकता है। यह सोचना भी मूर्खतापूर्ण है कि योग धर्मसे जुड़ा है। आध्यात्मिक प्रक्रिया और योगकी तकनीक, किसी भी धर्मके अस्तित्वमें आनेसे पहलेके हैं। जब मनुष्यने धार्मिक समूह बनाना शुरू किया था, जिन्होंने मानवताको ऐसे तोडऩा शुरू किया कि जिसे आप कभी ठीक भी न कर सकें, उससे कहीं पहले आदियोगी शिवने यह विचार दिया था कि एक मनुष्य अपने आपको विकसित कर सकता है। यौगिक विज्ञानपर हिन्दूका लेबल इसलिए लग गया है, क्योंकि यह विज्ञान और तकनीक इस संस्कृतिमें विकसित हुए हैं। क्योंकि यह संस्कृति तर्कात्मक है तो स्वाभाविक ढंगसे उन्होंने इस विज्ञानको भी द्वंद्वात्मक रूपमें ही लिया, जिससे इस जमीनकी सांस्कृतिक ताकतें भी इसमें जुड़ गयीं, जो हिंदू जीवन पद्धतियोंसे संबंधित थीं। हिन्दू, यह शब्द सिंधुमेंसे आया है, जो एक नदी है। क्योंकि यह संस्कृति सिंधु नदीके किनारे पनपी तो इस संस्कृतिको हिंदू कहा गया। जो भी सिंधु नदीकी जमीनमें पैदा हुआ है, वह हिंदु है। यह एक भौगोलिक पहचान है जो धीरे-धीरे सांस्कृतिक पहचान बन गयी है और फिर बादमें जब हमलावर इस जमीनपर आये तो एक बड़ी प्रतिस्पर्धा शुरू हुई और यहांके लोगोंने अपने आपको एक धर्मके रूपमें संघटित करनेका प्रयास किया, जो अभीतक पूरी तरहसे नहीं हो पाया है। हमें यह समझना चाहिए कि हिंदू कोई एक धर्म नहीं है। कोई एक ऐसे खास भगवान या विचारधारा है ही नहीं जिसे आप हिंदू जीवनपद्धति कह सकें। आप किसी पुरुष भगवानकी पूजा करके भी हिंदू हो सकते हैं। आप किसी स्त्री भगवानकी पूजा करके भी हिंदू हो सकते हैं। आप गायकी पूजा कर सकते हैं तो भी हिंदू हैं और आप सभी तरहकी पूजा छोड़ दें तो भी आप हिन्दू हो सकते हैं तो आप चाहे कुछ भी विश्वास करें या न करें, आप हिंदू हैं। लेकिन साथ ही, एक बात है जो सामान्य रूपसे सभीमें है। मानव जीवनका बस एक ही उद्देश्य है, जीवन प्रक्रियासे मुक्ति। आप जिस चीजको भी बंधन, सीमाओंके तौरपर जानते हैं, उन सबसे मुक्ति और उन सबसे परे जाना। इस संस्कृतिमें ईश्वर कोई अंतिम लक्ष्य नहीं है। आगे बढऩेके लिए ईश्वरको एक पहले कदमकी तरह देखा जाता है। इस पूरी धरतीपर यही एक संस्कृति है, जिसमें कोई भगवान नहीं है यानी भगवानकी कोई ठोस परिभाषा नहीं है कि भगवान ऐसा ही होना चाहिए। इसीलिए हमारे पास पूरी स्वतंत्रता है कि हम जिस किसी तरहके भगवानके साथ जुड़ सकें, उसे भगवान बना लें।