केन्द्र सरकारने रक्षा उत्पादनके क्षेत्रमें आमूल सुधार और बदलते परिदृश्यको ध्यानमें रखते हुए बड़ा कदम उठाया है, जो लम्बे समयसे प्रतीक्षित था। आर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) की उत्पादकताको बढ़ाने और इसे लाभकारी बनानेके उद्देश्यसे ४१ फैक्टरियोंको ओएफबीकी सात सरकारी कम्पनियोंके अधीन किया जायगा जिससे कि इसकी विशेषज्ञतामें वृद्धि हो सके और यह ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन सके। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी अध्यक्षतामें बुधवारको केन्द्रीय मंत्रिमण्डलकी बैठकमें यह महत्वपूर्ण निर्णय किया गया जिसके परिणामस्वरूप ओएफबी, जो अभीतक रक्षा मंत्रालयके अधीन एक विभागके रूपमें कार्य कर रहा था, अब उसके अधीन सात सरकारी कम्पनियोंका समूह कार्य करेगा। मंत्रिमण्डलके फैसलेको मूर्त रूप देनेका कार्य रक्षामंत्री राजनाथ सिंहके अधीनस्थ अधिकारप्राप्त मंत्रियोंके समूहको सौंपनेका निर्णय किया गया है। इस समूहको सम्बन्धित मामलोंपर निर्णय लेनेका भी अधिकार रहेगा, जिससे कि समयकी बचत हो सके। वस्तुत: सरकारका यह बड़ा कदम इसलिए भी आवश्यक हो गया था कि बदली परिस्थितियोंके सन्दर्भमें ओएफबीकी कार्यप्रणाली प्रासंगिक नहीं रह गयी थी। पिछले बीस वर्षोंसे इसमें सुधार लानेके लिए लगातार प्रयास किये जा रहे थे। कई अध्ययन किये गये थे। इसके लिए गठित उच्चस्तरीय समितियोंने कार्यप्रणालीमें सुधारके लिए संस्तुतियां भी की थीं। इसीको ध्यानमें रखते हुए सरकारने रक्षा उत्पादनके क्षेत्रमें यह बड़ा कदम उठाया है, जो स्वागतयोग्य और समयके अनुकूल भी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आर्डनेंस फैक्टरियोंमें कार्यरत कर्मचारियोंके हितोंकी रक्षाके लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं जिससे कि उनके साथ कोई अन्याय नहीं होने पाये। ओएफबीके समूह ए, बी और सीके कर्मचारी सेवा शर्तोंमें कोई बदलाव किये बिना दो सालकी अवधिके लिए स्वत: प्रतिनियुक्तिपर स्थानान्तरित किये जायंगे। सेवानिवृत्त और मौजूदा कर्मचारियोंकी पेंशनका बोझ सरकार वहन करेगी। नि:सन्देह अब ओएफबीकी सात अलग-अलग सरकारी कम्पनियां न केवल देशकी आवश्यकताओंको पूरा करनेके लिए बेहतर कार्य करेंगी, बल्कि विश्व बाजारमें भी अच्छी हिस्सेदारीके लिए पूरा प्रयास करेंगी। विश्व बाजारकी चुनौतियोंका सामना करते हुए कारोबारी सम्भावनाओंका पता लगानेके लिए भी वे तत्पर रहेंगी। उत्पादकता और प्रतिस्पर्धाके साथ ही इन कम्पनियोंको अपनी आय बढ़ानेके लिए भी पूरा प्रयास करना होगा।
टीकोंके बीच अन्तराल
कोरोना टीकेके अन्तराल बढ़ानेके निर्णयको लेकर उत्पन्न संशयका फिलहाल पटाक्षेप हो गया है। केन्द्र सरकारने कहा है कि कोविशील्ड टीकेकी दो खुराकोंके बीच अन्तरालको चार-छह हफ्तेसे बढ़ाकर १२-१६ हफ्ते करनेका फैसला उन अध्ययनोंपर आधारित है, जो बताते हैं कि अन्तराल बढऩेसे टीकेका असर बढ़ जाता है। आंशिक और पूर्ण टीकाकरणके तुलनात्मक अध्ययनमें पाया गया है कि जब वैक्सीनकी एक खुराक और दो खुराकें लगायी गयीं तो दोनों मामलोंमें टीकेका असर समान रहा, जबकि अन्तराल बढऩेसे बेहतर परिणाम मिलता है। राष्टï्रीय टीकाकरण तकनीकी परामर्श समूह (एनटीएजीआई) के अध्यक्ष डाक्टर एन.के. अरोड़ाने कहा कि कोविशील्डकी खुराकोंके बीच अन्तराल बढ़ानेका निर्णय पारदर्शी और वैज्ञानिक सुबूतोंके आधारपर सर्वसम्मत किया गया है। कोरोना और टीकाकरण बहुत परिवर्तनशील है, इसलिए भारत कोविशील्ड टीकेकी खुराकके अन्तरालकी समीक्षा करेगा और सामने आ रहे नये आं$कड़ोंके आधारपर फैसला किया जायगा। यदि टीका निर्माण तकनीकमें कहा जाता है कि वैक्सीनकी डोजके बीच अन्तराल कम करना लोगोंके लिए फायदेमंद है तो समिति गुण-दोष तथा समझके आधारपर निर्णय करेगी, क्योंकि लोगोंका स्वास्थ्य सुरक्षा सर्वोपरि है। टीकाकरण कार्यक्रमके प्रभावका मूल्यांकन करनेके लिए टैकिंग प्लेटफार्म बनानेका निर्णय किया गया है। इसके जरिये टीकाकरण कार्यक्रमके प्रभावका मूल्यांकन ही नहीं, बल्कि वैक्सीनकी किस्म और खुराकोंके अन्तराल तथा पूर्ण या आंशिक रूपसे टीका लगवानेवाले लोगोंपर क्या असर होता है इसका भी अध्ययन किया जा सकेगा। इससे भारत कोरोनापर काबू पानेमें सक्षम हो सकेगा। कोरोना बहुरूपिया है इसलिए इसपर सतर्क दृष्टिï बनाये रखनी होगी तथा इसके प्रभावकी लगातार समीक्षा भी की जानी चाहिए जिससे इसके प्रभावको कम किया जा सके। हालांकि इसके लिए हमारे वैज्ञानिक दिन-रात एक किये हुए हैं। उन्हींकी मेहनतका परिणाम है कि एक नहीं दो-दो संजीवनियां देशमें उपलब्ध हैं और लोगोंके जीवनकी रक्षा कर रही हैं।