पटना

बिहारशरीफ: अस्पतालों के सफाई में घोटाला करने वाली दो एजेंसी एवं गवाहों के विरुद्ध नामजद प्राथमिकी


      • दिलचस्प पहलू यह जिस भवन निर्माण के अभियंताओं ने गलत मापी देकर करोड़ों की लूट करायी उस पर आखिर क्यों नहीं हुई प्राथमिकी
      • जिलाधिकारी ने घोटाले की भनक लगते हीं भुगतान पर लगाया था रोक और उप विकास आयुक्त के नेतृत्व में गठित की थी जांच कमेटी

बिहारशरीफ। जिले के अस्पतालों के आंतरिक परिसर कमरे, दीवार और टाइल्स के साफ-सफाई के नाम पर करोड़ों रूपये के हुए घोटाले मामले में जांच प्रतिवेदन समर्पित होते हीं एफआईआर दर्ज करा दिया गया है। इस मामले में कार्यान्वयन एजेंसी तथा एकरारनामा के पक्ष के गवाहों के विरुद्ध नामजद प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है, लेकिन खास बात यह है कि जिस विभाग द्वारा फर्जी नापी दिखाकर लूट का प्लेटफॉर्म तैयार कराया गया, उस विभाग के अभियंताओं को ना जाने किस कारण से बख्श दिया गया और अभियंताओं को प्राथमिक अभियुक्त नहीं बनाया गया है, लेकिन दर्ज प्राथमिकी में इसका जिक्र है। ऐसे में इंकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस का जांच दायरा आगे बढ़ा तो भवन निर्माण के कई अभियंता भी नप सकते है।

नालंदा के सिविल सर्जन सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी के प्रतिवेदन के आलोक में बिहार थाना केस संख्या 845/21 16-12-2021 को दर्ज किया गया है, जो भादवि की धारा 420 और 409 के तहत दर्ज हुआ है। धोखाधड़ी के इस मुकदमे में आफताब इंफोकॉम प्राइवेट लिमिटेड, बेगूसराय के प्रोपराइटर/सचिव आफताब आलम, आलोक कुमार, ग्राम-लारी, जिला अरवल, अंजनी कुमार ग्राम-हसनचक, बाढ़, पटना तथा हैंडीकैप्ड रिहैबिलिटेशन वेलफेयर सोसाइटी नारायणपुर, जिला भोजपुर के प्रोपराइटर/सचिव कमल नारायण सिंह तथा दीपक कुमार को नामजद अभियुक्त बनाया गया है।

प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बिहार थानाध्यक्ष को जो पत्र सिविल सर्जन द्वारा लिखा गया है उसमें कहा गया है कि नालंदा भवन प्रमंडल बिहारशरीफ द्वारा प्राप्त किये गये मापी प्रतिवेदन के आधार पर नालंदा जिला अंतर्गत विभिन्न स्वास्थ्य इकाईयों के आंतरिक परिसर एवं कमरों के दीवारों पर लगे टाइल्स के साफ-सफाई के लिए तत्कालीन कार्यरत एजेंसी आफताब इंफोकॉम प्राइवेट लिमिटेड, बेगूसराय एवं हैंडीकैप्ड रिहैबिलिटेशन वेलफेयर सोसाइटी, नारायणपुर, भोजपुर द्वारा वास्तविक मापी से काफी अधिक की राशि का भुगतान विभिन्न स्वास्थ्य इकाईयों से प्राप्त किया गया। इस मामले में लोगों को नामजद बनाते हुए प्राथमिकी दर्ज करने को कहा गया और इस आलोक में प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गयी।

बताते चले कि पिछले वर्ष अस्पतालों के साफ-सफाई की निविदा उक्त दोनों एजेंसी को हुआ था, जिनके द्वारा भवन प्रमंडल नालंदा द्वारा गलत मापी के आलोक में अधिक भुगतान लिया गया। बताया जाता है कि भवन निर्माण के कनीय, सहायक और कार्यपालक अभियंता ने वास्तविक मापी से लगभग तीन गुणा से अधिक क्षेत्रफल बताकर प्रतिवेदन दिया था और इस आलोक में संबंधित एजेंसी द्वारा अधिक राशि का बिल बनाकर भुगतान लिया गया। बताया जाता है कि जब यह मामला जिला स्वास्थ्य समिति के संज्ञान में आया तो जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने मामले की जानकारी सिविल सर्जन और डीएम तक पहुंचाई।

इस आलोक में डीएम ने तत्काल भुगतान पर रोक लगाया और उप विकास आयुक्त की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाई। हालांकि लंबे समय तक जांच लंबित रहा और एक उप विकास आयुक्त बदल भी गये। इसी बीच नये उप विकास आयुक्त आये और अब मामले की जांच हुई। जांच में जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा जिन बिंदुओं को इंगित किया गया था वह सही पाया गया और जांच प्रतिवेदन के आलोक में सिविल सर्जन द्वारा आज प्राथमिकी दर्ज करायी गयी।

बताते चले कि सबसे पहले यह मामला हिंदी दैनिक ‘‘आज’’ में प्रकाशित हुआ था और इसके बाद जांच नहीं होने पर कई बार मामले का फॉलोअप सामने लाया गया। हाल हीं में इस संबंध में खबर को प्रमुखता से छापी गयी और जब जांच हुआ तो हिंदी दैनिक ‘‘आज’’ में छपी खबर की पुष्टि हुई।

लेकिन दिलचस्प पहलू यह है कि इस मामले में फर्जी लाभ दिलाने में मदद पहुंचाने वाली सरकारी एजेंसी भवन निर्माण विभाग के किसी भी अभियंता पर कार्रवाई नहीं हुई, जबकि कनीय अभियंता ने नापी ली थी और सहायक एवं कार्यपालक अभियंता ने इसे सही ठहराते हुए अपनी स्वीकृति की मुहर लगायी थी। देखना यह होगा कि भवन निर्माण विभाग के अभियंताओं पर कार्रवाई होती है या फिर वे लोग कार्रवाई से बचे रह जाते है।