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बिहार में नगर निकाय चुनाव पर पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 10 अक्‍टूबर को होने वाला है मतदान


पटना, पटना हाईकोर्ट ने बिहार के स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्गों को आरक्षण दिए जाने के मामले पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य घोषित कर चुनावी प्रक्रिया को फिर से शुरू कर सकता है | मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने 86 पृष्ठों का निर्णय  देते हुए कहा कि “चुनाव आयोग को एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करना चाहिए न की बिहार सरकार के हुक्‍म से बंधकर ।

गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट में पिछड़ों के आरक्षण के मुद्दे पर याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने जल्‍द सुनवाई को कहा था। इसपर कोर्ट ने 29 सितंबर को सुनवाई पूरी कर ली। मंगलवार को मुख्‍य न्‍यायाधीश संजय करोल एवं एस कुमार की खंडपीठ ने फैसला सुना दिया। कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले जो आदेश दिया था उसका पालन बिहार में नहीं किया गया।

कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा था, पूजा अवकाश में फैसला सुनाएंगे

कोर्ट की ओर से नियुक्त एमिकस क्यूरी वरीय अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव ने बताया कि चीफ जस्टिस संजय क़रोल एवं संजय कुमार की खंडपीठ ने सुनील कुमार व अन्य की याचिकाओं पर सभी पक्षों को सुनने के बाद 29 सितम्बर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि इस मामले पर निर्णय पूजा अवकाश में सुना दिया जाएगा। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव के कार्यक्रम में परिवर्तन करने की जरूरत समझे, तो कर सकता है।

ये है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

दिसंबर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती। तीन जांच के प्रविधानों के तहत ओबीसी के  पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत हैं। साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का 50 प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करें।