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बिहार में लिखी गई थी राम मंदिर निर्माण की पटकथा, 23 अक्टूबर 1990 का वो दिन आज भी नहीं भूले लोग


 समस्तीपुर।  भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव है। इस दिन को देखने के लिए विश्व की निगाहें अयोध्या पर टिकी है। इस पावन दिन को आने में यूं तो 500 साल लग गए, कई कानूनी पेचीदगी के बाद पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया, लेकिन इस अभियान में सबसे ज्यादा उबाल 1990 में आया। इसकी पटकथा समस्तीपुर में ही लिख दी गई।

समस्तीपुर में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई। पहली बार कारसेवा भी गिरफ्तारी के 36 दिनों बाद शुरू हुई। 26 माह बाद अयोध्या के विवादस्पद ढांचे को भी ढहा दिया गया।

23 अक्टूबर की सुबह हुई थी गिरफ्तारी

श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण के संकल्प को लेकर गुजरात के सोमनाथ से रथ यात्रा 25 सितंबर 1990 को शुरू हुई थी। इस यात्रा के प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी की 23 अक्टूबर को समस्तीपुर में सभा होनी थी। 22 अक्टूबर 1990 की देर रात रथ समस्तीपुर पहुंच गया था। भाजपा के प्रमुख नेता शशिभूषण शर्मा बताते हैं कि श्री आडवाणी सर्किट हाउस के कमरा नंबर 7 में रुके थे। दूसरे कमरे में तात्कालिक प्रदेश अध्यक्ष कैलाशपति मिश्र भी थे। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के निर्देश पर मुख्यालय में तैनात तत्कालीन डीआईजी रामेश्वर उरांव, आईएसएस अधिकारी आरके सिंह ने 23 की सुबह 2.30 बजे में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ्तारी के साथ ही हो गई थी समर्थन वापसी की घोषणा

लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में बवाल मच गया था। समस्तीपुर में भी काफी आंदोलन हुआ। भारतीय जनता पार्टी ने इसे प्रतिष्ठा का विषय माना। पार्टी के प्रदेश महामंत्री जगन्नाथ ठाकुर बताते हैं कि 23 अक्टूबर 1990 को ही भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस एलान के बाद वीपी सरकार पर संकट के बादल गहरा गए। राम मंदिर का मुद्दा चिंगारी से आग बन चुकी थी। विश्व हिंदू परिषद के कारसेवा का ऐलान पहले से था।

मुलायम सिंह यादव ने भी तब एलान कर दिया कि अयोध्या में 30 नवंबर 1990 को प्रस्तावित कार सेवा नहीं होने दी जाएगी। विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और भाजपा हर हाल में कारसेवा को लेकर तैयार बैठी हुई थी। ऐसे में संग्राम तय था। 30 अक्टूबर को हुई थी पहली कारसेवा छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय प्रो. अमरेंद्र कुमार उस समय अयोध्या में ही थे।

बता दें कि कारसेवा की शुरुआत 30 अक्टूबर 1990 सुबह 10 बजे से हुई। फिर गोली चली, कारसेवक मारे गए। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 के बाद चौतरफा दबाव पर कारसेवक रिहा कर दिए गए। मंदिर समर्थकों को शांतिपूर्ण सत्याग्रह की अनुमति मिली।

बढ़ता जा रहा था दबाव

इधर, श्रीराम जन्मभूमि न्यास और विहिप पर मंदिर बनवाने के लिए आंदोलन का दबाव बढ़ रहा था। विहिप ने 4 अप्रैल 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर सरकार को चेतावनी देते हुए रैली की। उसी दिन मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। चुनाव हुए। केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई और पीएम पीवी नरसिम्हाराव बने। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। शपथ के बाद कल्याण सिंह ने पूरे मंत्रिमंडल के साथ रामलला के दर्शन किए।

6 दिसंबर को हुई थी दूसरी कारसेवा

राजनीतिक इतिहास पर पैनी नजर रखने वाले सचिदानंद बताते हैं कि प्रधानमंत्री राव और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के आग्रह पर विहिप और संतों ने कारसेवा रोक दी। जुलाई से अक्तूबर आ गया, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। विहिप पर संतों का दबाव बढ़ता जा रहा था। दिल्ली में 30 अक्टूबर 1992 को पांचवीं धर्मसंसद की बैठक में 6 दिसंबर 1992 को हर हाल में कारसेवा का फैसला किया। उसी दिन विवादस्पद ढांचे को ढहा दिया गया।