सम्पादकीय

भारतमें भोजन एक जरूरत नहीं


 डा. अम्बुज

इस प्रकार जलवायुका असर पेड़-पौधों और फसलपर होता है। वैसे ही परिवेशका असर आदमीपर होता है, आदमी अपने परिवेशके अनुसार जीता है। आजके दौरका परिवेश वर्तमान पीढ़ी एवं आनेवाली पीढ़ीके जीवनको तय करता है। आज जब हर तरफ महंगी, बाजारवाद एवं मुनाफाखोरीका हाहाकार मचा है, आदिम युगके समान आधुनिक भारतमें भोजन एक जरूरत नहीं, बल्कि महंगीके कारण मानवकी मुख्य समस्या बन गयी है। कोरोना कालमें आदमी अब भोजन मजबूत शक्तिशाली बननेके लिए नहीं कर रहा है। बस जीनेके लिए भोजन कर रहा है, क्योंकि कोरोना कालमें एक ओर जहां लाखों लोग बेरोजगारी हुए हैं वहीं आयके संसाधन भी काफी कम हुए हैं लोग बचतका एवं घराउ दाम निकालकर भोजन जुटा रहे हैं। ऐसेमें महंगीकी मार अलग झेल रहे हैं यही कारण है कि देशमें कुपोषणकी संख्यामें खासा वृद्धि हुई है वहीं भूख और भोजनकी समस्यासे बाल मजदूरीमें बच्चोंकी संख्यामें लगातार इजाफा हो रहा है। कोरोना कालमें खाद्य पदार्थोंपर महंगीमें बेतहाशा वृद्धि हुई, जो विगत कई वर्षोंकी तुलनामें अत्यधिक रही। कोरोना कालमें पेट्रोल-डीजलके मूल्यमें लगातार इजाफा होता रहा कि देशमें १०६ रुपये लीटर पेट्रोल बिकने लगे, वहीं खाद्य तेलकी दरमें ८०-१०० फीसदीकी वृद्धि दर्ज हुई। इसपर शासन तंत्रका कहना है कि अब शासनने खाद्य तेलमें मिलावट बन्द कर दी है जिससे आगे किसानोंको लाभ होगा तो फिर क्या कोरोना कालके पूर्व देशवासी शासनतंत्रके निगरानीमें मिलावटी खाद्य तेलका उपयोग करते थे। यह सोचनेका विषय है। ऐसे ही पेट्रोल-डीजलकी कीमतपर टीकाकरण एवं विकासका हवाला शासन तंत्र द्वारा दिया जाता है। कोरोना कालमें देश लाकडाउनके दौरसे गुजर रहा है। इस दौरान सभी कुछ बंद रहते हैं आदमीकी अधिकतर खरीदारीमें खाद्य पदार्थ और दवाएं मुख्य रहीं। ऐसेमें देशके शासन तंत्रको सीधे करमें जीएसटी द्वारा सौ फीसदीसे ऊपर इजाफा हुआ, जो लगभग एक लाख करोड़ है। महंगीके लिए बाजार कर, मुनाफा आवश्यकका मूल्यांकन करनेपर सतही स्तरपर महंगी एवं उसके असरका विचार करनेकी आवश्यकता है।

महंगीके लिए जिम्मेदार कारकोंमें पहला पेट्रोल-डीजलके मूल्योंमें बेतहाशा वृद्धि है तो दूसरा आर्थिक घोटाले एवं आर्थिक धोखाधड़ी है। तीसरा निजीकरणके लिए पूंजीवादी संस्कृतिके निर्माणमें उद्योगपतियोंको अनियंत्रित मुनाफा लेनेकी छूट। चौथा कारक है शासन तंत्र द्वारा करके नये प्रावधान यह सभी कारक एक-दूसरेसे जुड़ाव रखते हैं, जो अर्थव्यवस्थाको प्रभावित करते हैं। मूलत: यह पूंजीवादी संस्कृतिमें मुनाफेकी सभ्यताका विकास करते हैं। इन्हीं कारणोंमें महंगी विगत कई वर्षोंके तुलनामें चरमपर है। इसमें आर्थिक घोटालोंपर रोक लगाना एवं उचित काररवाईकी अत्यधिक आवश्यकता है, नहीं तो व्यक्तिगत लाभकी होड़ अर्थव्यवस्थाको कमजोर करेगी। देशके पंजाब नेशनल बैंककी शाखा पीएनबी हाउसिंग फाइनेंसके चार हजार करोड़के शेयर अमेरिकी कम्पनीको गुपचाप तरीकेसे बेचे जानेके कारण पंजाब नेशनल बैंकको कई हजार करोड़का नुकसान हुआ। साथ ही पीएनबी हाउसिंग फाइनेंसके मालिकाना हकपर भी असर पडऩेकी सम्भावना होने लगी, जिसका असर सामूहिक रूपसे आम बचत कर्ता एवं बैंक उपभोक्तापर पड़ेगा। ऐसे ही स्टेट बैंक आफ इण्डियाके कार्ड एवं पब्लिक इश्यूमें हुए हेरा-फेरीका असर उपभोक्ता एवं देशकी अर्थव्यवस्था जुड़ा है। सेबीके जांचमें आया कि देशके प्रमुख उद्योगपति गौतम अड़ानीकी कम्पनीमें ४३५०० हजार करोड़के रकमका निवेश मारीशसके एक फर्मसे होता है जिसके मालिकका पता नहीं, यह बेनामी फंडिंगसे देशकी अर्थव्यवस्थापर भी असर पड़ता है लेकिन यह पहली घटना नहीं है। वर्ष २०२० में हाथरस काण्डके समय प्रवर्तन निदेशालयकी रिपोर्टमें कहा गया था कि हाथरस मामलेमें जातीय दंगे फैलानेके लिए मारीशससे सौ करोड़से अधिककी फण्डिंग हुई। इस कारण मारीशससे जुड़ी इन घटनाओंका होना चिन्ता एवं गहनका विषय है, क्योंकि इससे देशकी व्यवस्था अनियंत्रित होती है जिसका असर देशवासियोंपर पड़ता है। इस प्रकार सभी आर्थिक अपराध देशकी अर्थव्यवस्थाके साथ अपराध तो है ही साथ ही करोड़ों आमजनके साथ जो इससे प्रभावित होते हैं ऐसेमें शासन तंत्रको आर्थिक घोटालोंसे प्रभावित लोगोंको मुआवजेकी व्यवस्था देनी चाहिए। आर्थिक अपराध, महंगीका प्रमुख कारक है। देशका शासन तंत्र निवेशके लिए लगातार निवेशकोंको आमंत्रित कर रहा है लेकिन क्या शासन तंत्र उनके लिए कानून और व्यवस्थाको मजबूतीके साथ तैयार किया है, क्या नये माहौलमें नयी स्थितियोंसे निबटनेके लिए भी तैयारी की है। यह भी ध्यान देना होगा, क्योंकि ब्रिटेनकी केचर्न एनजी पीएलसीके द्वारा न्यायाधिकरणमें देशके हारके कारण लगभग सौ करोड़ डालरसे ऊपरकी देनदारी तय हुई है। इतने गम्भीर मामलेपर शासन तंत्र द्वारा कुछ मीन कहा जाना, सोचनेका विषय है। ऐसी स्थितिमें शासन तंत्रको जांच-परख कर निवेशकोंको आमंत्रित करना चाहिए। केचर्नको १.२ अरब डालरकी देनदारी निवेशकोंके प्रति सतर्कता बरतनेका संकेत है।

देशमें जब कोरोना संक्रमण तेजीसे फैल रहा था तब आवश्यक दवाओं और आक्सीजनका कालाबाजारी जोरोंपर था। साथ ही निजी अस्पताल ओवर बिलिंग कर इलाजके नामपर मोटी रकम कमानेमें लगे रहे। वह आपदाको कमाईके अवसरके रूपमें ले रहे थे। लेकिन एकाध मामले ही पकड़में आये, बाकी सब ठीक रहे। देशमें हरििदन खबरें विभिन्न अपराधिक मामलोंसे भरी पड़ी मिलती है। देशमें आर्थिक अपराध एवं साइबर अपराध भी जोरोंपर है। डिजिटल भारतमें अपराधपर नियंत्रण न कर पानेसे आमजन सदमे एवं भयमें जी रहा है। विगत २९ जनवरी, २०२१ को इसराइल दूतावासके पास बम विस्फोट हुआ। बम रखनेवालेकी तस्वीर सीसी टीवी कैमरेमें कैद है फिर भी साढ़े चार माह बादतक अपराधी देशकी पुलिसके पकड़से बाहर थे जिस कारण पुलिसको दस लाखका ईनाम घोषित करना पड़ा। जब इतने संगीन अपराधिक मामलेमें यह हाल है तो अन्य अपराधिक मामलोंका कहना ही क्या। न्यायिक अभिरक्षामें बन्द अपराधियोंको जेलमें हथियार उपलब्ध होना एवं जेलमें हत्याओंका होना, व्यवस्थाके स्थितिको दर्शाता है। जब देशके शासन तंत्रको आवश्यक वस्तुकी कालाबाजारीपर सख्त काररवाईकी गुहार लगानी पड़ रही है तब ऐसी व्यवस्था प्रणालीमें आमजनको किस हालातका सामना करना पड़ता है तथा माहौलके मनमानीको समझा जा सकता है। देशके सर्वोच्च अदालतमें श्रीराम जन्मभूमि स्थानपर मन्दिर निर्माण करनेका निर्णय दिया गया। अदालतके निर्देशानुसार केन्द्र सरकार द्वारा मन्दिर निर्माणके लिए एक ट्रस्टका गठन किया गया। अभी मामला आया है कि श्रीराम मन्दिर निर्माण ट्रस्ट द्वारा कुछ और भूमि क्रय किया गया है तब सवाल उठता है कि श्रीराम मन्दिर निर्माण ट्रस्टको आवंटित भूमिके अतिरिक्तका क्या भूमि क्रय करनेका अधिकार प्राप्त था। भूमि खरीदमें घोटालेका आरोप लगनेपर सार्वजनिक तौरपर श्रीराम मन्दिर निर्माण ट्रस्टके सचिव द्वारा यह कहा जाना कि हमपर महात्मा गांधीके हत्याके आरोप लगे। आरोकी हम चिन्ता नहीं करते। जबकि देश जानता है कि राष्टï्रपिता महात्मा गांधीकी हत्या ३० जनवरी, १९४८ को एक सिरफिरे द्वारा की गयी। उसपर हत्याका आरोप सिद्ध हुआ और उसे फांसी दी गयी। क्या श्रीराम मन्दिर निर्माण ट्रस्टके वर्तमान सचिवके ऊपर भी उपरोक्त मुकदमेमें आरोप लगे थे तो इस तरहका बयान ऐसे महत्वपूर्ण पदपर बैठे व्यक्ति द्वारा दिया जाना चिन्ताका विषय है।