डा. शंकर सुवन सिंह
प्रकृतिके द्वारा ही समूचे ब्रह्मïाण्डकी रचना की गयी है। पर्यावरणसे हम हैं और हमसे पर्यावरण। पारिस्थितिकी तंत्रका पृथ्वीसे घनिष्ठ सम्बन्ध है। पर्यावरणपर हमारे चारों ओरके वातावरणका प्रभाव पड़ता है। यह वातावरण, वायुमंडलीय प्रभावसे निर्मित होता है। हमारा वायुमंडल मजबूत होगा तो वातावरण भी शुद्ध होगा। वातावरण शुद्ध होगा तो हमारा पर्यावरण भी शुद्ध होगा। पृथ्वीकी रक्षाके लिए वायुमंडलीय सतहपर एक परत होती है। यह परत पराबैंगनी किरणोंसे हमारे पर्यावरणकी रक्षा करती है, जिसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडलके ऊपरी सतहपर पराबैंगनी किरणोंके प्रभावमें आक्सीजन विभाजन एटमोंमें होने लगा। तत्पश्चात एटमोंने मिलकर ओजोनका रूप धारण कर समताप मंडलमें सांद्रित होकर ओजोन परतका निर्माण किया। पृथ्वीकी बाहरी सतह मुख्यत: चार वर्गोंमें विभक्त है। लिथोस्फीयर (पृथ्वीका आवरण), हाइड्रोस्फीयर (समुद्र, नदियां और झीलें), एटमास्फीयर (पृथ्वीका आवरण) और बायोस्फीयर (यह तीनों का समावेश है)। आरम्भमें जब पृथ्वीका उद्ïभव हुआ तो आक्सीजन गैस नहीं थी। ज्वालामुखियोंके निरन्तर फूटते रहनेसे सम्पूर्ण वायुमंडल कार्बन डाई आक्साइड एवं मीथेनसे भरपूर था। कुछ समय बाद समुद्रोंके भीतर जीवनका उद्ïभव हुआ, जो कार्बन डाई आक्साइड अवशोषित कर आक्सीजनका प्रजनन करने लगे। इस आक्सीजनने पृथ्वीके ऊपरी वायुमंडलकी ओर एकत्र होना शुरू कर दिया, जहां पराबैगनी किरणोंके प्रभावमें आक्सीजनका विभाजन एटमोंमें होने लगा। तत्पश्चात एटमोंने मिलकर ओजोनका रूप धारण कर समताप मंडलमें सांद्रित होकर ओजोन परतका निर्माण किया। ओजोन परत, पृथ्वीको पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणोंसे बचानेमें एक छलनी समान, सुरक्षा कवचका काम करती है।
ओजोनमें आक्सीजनके तीन एटम बाउंड होते हैं। ओजोन एक रंगविहीन तथा तीखी गंधवाली गैस होती है। ओजोन परत पृथ्वीके ऊपर सोलहसे पचास किलोमीटर (अर्थात्ï ३४ किलोमीटर मोटी परत) ऊंचाईपर स्थित है। ओजोनका निर्माण सौर विकिरण द्वारा लगातार होता रहता है। जिसका स्तर तीन सौ मिलियन टन प्रतिदिन है और इतनी ही मात्रामें यह प्राकृतिक रूपसे नष्ट भी होती रहती है। ओजोन परतके कारण समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फियर) का तापमान ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) की अपेक्षाकृत अत्यधिक होता है। ओजोन परत पराबैंगनी किरणोंको शोषित करता है और विकिरणके हानिकारक प्रभावसे पृथ्वीके सम्पूर्ण जीवनकी रक्षा करता है। पराबैंगनी किरणोंके अवशोषणके कारण ओजोन परत समताप मंडलको गर्म करता है। ओजोनकी मोटी परतसे पराबैंगनी किरणें छनकर ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) में प्रवेश करती हैं। ओजोन परत सबस्क्रीनकी भांति काम करती है और खतरनाक पराबैंगनी-बी सौर तरंगोंके बड़े भागको क्षोभ मंडलमें प्रवेश करनेसे रोकती है। पराबैंगनी-बीका वह क्षीण प्रवाह जो भू-सतहके वायुमंडलतक पहुंचता है। त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद आदि बीमारियां फैलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं यदि समताप मंडलमें ओजोनका निर्माण न हुआ होता तो आधुनिक समयमें जीवन स्वरूपोंका उद्ïभव शायद ही संभव होता। ओजोनकी कमीसे पराबैंगनी-बीका क्षोभ मंडलमें अत्यधिक मात्रामें होना मानवपर ही नहीं अपितु पेड़-पौधोंपर भी प्रभाव डालते हैं। पौधोंमें स्टोमेटाके द्वारा ओजोन प्रवेश कर जाती है। यह पत्तियोंको हानि पहुंचाती है जिससे पौधोंकी उत्पादन क्षमतामें कमी और उनकी गुणवत्ता घटती है।
ओजोनमें कमीका मुख्य कारक है क्लोरीन गैस। क्लोरीन भारी होनेके कारण स्ट्रैटोस्फियरकी ऊंचाईतक नहीं पहुंच पाती जहां ओजोन परत विद्यमान है। घरेलू एवं सामूहिक रसायनोंसे उत्पन्न क्लोरीन गैस निचले वायुमंडलमें विघटित हो वर्षामें बह जाती है। कई ऐसे स्थायी और हलके रसायन भी हैं जो वाष्पशील स्वभावके होते हैं एवं विघटित होकर क्लोरीनका निर्माण करते हैं। इन्हें ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस (ओडीएस) कहते हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन, कार्बन टेट्रा क्लोराइड आदि कुछ ऐसे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस हैं जिनमें क्लोरीन होती है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध हुई। एक क्लोरीन एटम लगभग एक लाख ओजोन मॉलिक्यूल्सको तोड़कर वहांसे हटा देता है। ग्रीन हाउस गैसके लगातार वृद्धिसे भी ओजोन मात्रा घटती है। ग्रीन हाउस गैस प्रजननके लिए उत्तरदायी स्रोत-लकड़ीके दहनसे कार्बन डाई आक्साइडका उत्सर्जन, पशु, मानव-विष्टा एवं जैव सड़ावसे मीथेन उत्सर्जन और हाइड्रोकार्बन एवं नाइट्रोजनके आक्साइडके प्रभावमें ट्रोपोस्फियरके भीतर मीथेन गैसका निर्माण। लम्बी तरंग धैर्य विकिरणका कुछ भाग वायुमंडलके ऊपरी ठण्डे भागमें उपस्थित ट्रेस गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। इन्हीं ट्रेस गैसोंको ग्रीन हाउस गैस कहते हैं। पृथ्वीकी प्राकृतिक जलवायु निरन्तर बदलती रही है। ग्रीन हाउस प्रभावके द्वारा पृथ्वीकी सतह गर्म हो रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव- सूर्यकी किरणें, कुछ गैसों और वायुमण्डलमें उपस्थित कुछ कणोंसे मिलकर होनेकी जटिल प्रक्रिया है। कुछ सूर्यकी ऊष्मा वायुमण्डलसे परावर्तित होकर बाहर चली जाती हैं। लेकिन कुछ ग्रीन हाउस गैसोंके द्वारा बनायी हुई परतके कारण बाहर नहीं जाती है। अत: पृथ्वीका निम्न वायुमंडल गर्म हो जाता है। ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा यह जीवनको प्रभावित करती है।
विश्व पर्यावरण दिवस-२०२१ में हम सभीको ग्रीन हाउस गैसोंके निष्कासनमें कमीकी आवश्यकतापर ध्यान देना होगा। ग्रीन हाउस गैसोंके निष्कासनमें कमी करना कठिन है, परन्तु असंभव नहीं है। कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जिनके द्वारा इसके निष्कासनको कम किया जा सकता है, वह इस प्रकार है- खपत तथा उत्पादनमें ऊर्जीय क्षमताकी बढ़त होनी चाहिए। वाहनोंमें पूर्ण रूपसे ईंधनका दहन होना चाहिए जो कि ठीक रख-रखावसे संभव है। नयी स्वचलित वाहन तकनीकपर जोर देनेकी आवश्यकता है। ऊर्जाके नये स्रोतोंका प्रयोग करना चहिए जैसे- सौर ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा इत्यादि। उद्योगोंसे निकलनेवाले जहरीले पदार्थोंके निष्कासनको कम करन चाहिए।
हैलोकार्बनके उत्पादनको कम करना चाहिए जैसे- फ्रिज, एयरकण्डीशनएमें पुन: चक्रीय रसायनोंका प्रयोग करना चाहिए। ईंधनवाले वाहनोंका प्रयोग कम करना चाहिए। वनीकरणको बढ़ावा देना चाहिए तथा जंगलोंको कटनेसे रोकना चाहिए। समुद्रीय शैवाल बढ़ाना चाहिए ताकि प्रकाश संश्लेषणके द्वारा कार्बन डाइआक्साइडका प्रयोग किया जा सके। इन तथ्योंको अपनाकर ग्रीन हाउस प्रभावको कम करके उसके द्वारा उत्पन्न जटिल समस्याओंको रोका जा सकता है। जिससे गरीबी, सामाजिक असमानता और पर्यावरण बचाव मुख्य रूपसे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओंसे निबटा जा सकता है, ताकि एक बेहतर भविष्य बने। पृथ्वीको ग्रीन हाउस गैसोंके प्रभावसे बचाना होगा तभी हमारी पृथ्वी स्वस्थ्य और निर्भीक बनेगी। अतएव हम कह सकते हैं कि ओजोन परत, वायुमंडलका सुरक्षा कवच है।