सम्पादकीय

रदूषण मिटानेका लें संकल्प


प्रमेश सर्राफ धमोरा    

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा १९७२ में पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। लेकिन विश्व स्तरपर इसके मनानेकी शुरुआत ५ जून १९७४ को स्वीडनकी राजधानी स्टॉकहोममें हुई थी। जहां ११९ देशोंकी मौजूदगीमें पर्यावरण सम्मेलनका आयोजन किया गया था। साथ ही प्रति वर्ष ५ जूनको विश्व पर्यावरण दिवस मनानेका निर्णय लिया गया था। इस सम्मेलनमें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रमका गठन भी हुआ था। पिछले वर्ष देशकी जनताको लाकडाउनके कारण बहुत-सी दिक्कतोंका सामना करना पड़ा है। परन्तु लाकडाउनका वह समय पर्यावरणकी दृष्टिसे अबतकका सबसे उत्तम समय था। उस दौरान शहरोंके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रोंमें भी वायु प्रदूषणका स्तर घटकर न्यूनतम स्तरपर आ गया है। देशकी सभी नदियोंका जल पीने योग्य हो गया था। जो किसी चमत्कारसे कम नहीं है। पूरी दुनियामें पिछले वर्ष जैसा पर्यावरण दिवस शायद ही फिर कभी हो। सरकार हर वर्ष नदियोंके पानीको प्रदूषणमुक्त करनेके लिए अरबों रुपये खर्च करती आ रही है। उसके उपरांत भी नदियोंका पानी शुद्ध नहीं हो पाता है। परन्तु गत वर्ष देशमें लम्बे समयतक लाकडाउनके चलते बिना कुछ खर्च किये ही नदियोंका पानी अपने आप शुद्ध हो गया था। कोलकातामें तो उस समय लोगोंने ३० वर्ष बाद डॉल्फिन मछलियोंको उछलते हुए देखा था। यह कोलकातावासियोंके लिए किसी आश्चर्यसे कम नहीं था। पर्यावरणविदोंके मुताबिक जिन नदियोंके पानीसे स्नान करनेपर चर्म रोग होनेकी संभावनाएं व्यक्त की जाती थी। उन नदियोंका पानी शुद्ध हो जाना बहुत बड़ी बात थी। देशकी सबसे अधिक प्रदूषित मानी जानेवाली गंगा नदी सबसे शुद्ध जलवाली नदी बन गयी थी। वैज्ञानिकोंके अनुसार गंगाका पानी साफ होनेकी वजह पानीमें घुले डिसाल्वडकी मात्रामें आयी ५०० प्रतिशतकी कमी थी। गंगामें गिरनेवाले सीवर और अन्य प्रदूषणमें कमीकी वजहसे पानी साफ हुआ था। पिछले २५ वर्षोंमें यमुना नदीकी सफाईपर करीब पांच हजार करोड रुपये खर्च हो चुके थे। फिर भी नदीका पानी साफ नहीं हो पाया था। परन्तु पिछले साल लाकडाउनके चलते जो काम हजारों करोड़ रुपये खर्च करके २५ सालमें सम्भव नहीं हो पाया वह मात्र दो महीनेमें अपने आप ही हो गया था।

कोरोना संकटको लेकर दुनियाके अधिकांश देशोंमें लाकडाउनके कारण सब कुछ बंद रखना पड़ा था। दुनियाभरमें लोग अपने घरोंमें कैद होकर रह गये थे। भारतमें भी लम्बे समयतक लाकडाउन चला था। कोरोनाकी दूसरी लहरके चलते अब भी देशमें अधिकांश स्थानोंपर लाकडाउन चल रहा है। लाकडाउनके कारण देशमें बहुतसे कल-कारखाने, औद्योगिक संस्थान, व्यवसायिक गतिविधियां बंद हो गयी। लाकडाउनके कारण सभी तरहकी गतिविधियां बंद होनेसे लोगोंने बरसों बाद देशके बड़े शहरोंमें उन्मुक्त भावसे पशु-पक्षियोंको विचरण करते देखा है। नेशनल हेल्थ पोर्टल आफ इंडियाके मुताबिक देशमें हर साल करीब ७० लाख लोगोंकी मौत वायु प्रदूषणकी वजहसे हो जाती है। वायु प्रदूषणके चलते लोगोंको शुद्ध हवा नहीं मिल पाती है। जिसका हमारे शरीरमें फेफड़े, दिल और ब्रेनपर बुरा असर पड़ रहा है। देशमें ३४ प्रतिशत लोग प्रदूषणकी वजहसे मरते हैं। परन्तु लाकडाउनके चलते प्रदूषण कम होनेकी वजहसे देशमें होनेवाली मौतें भी कम हुई है। वहीं लोगोंके बीमार होनेकी दरमें आश्चर्यजनक ढंगसे कमी देखनेको मिल रही है। देशमें लाकडाउनसे बदलावकी बड़ी संभावनाएं अब साफ नजर आ रही है। लोग अपनी सेहतको लेकर अब पहलेसे अधिक सचेत हो गये हैं। हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवसके लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। इस बारकी थीम पारिस्थितिकी तंत्र बहाली निर्धारित की गयी है। इस दिन आयोजित होनेवाले कार्यक्रम इसी थीमपर आधारित होंगे। पारिस्थितिकी तंत्रकी बहालीपर पेड़-पौधे लगाना, बाग-बगीचोंको तैयार कर उनको संरक्षित करना, नदियोंकी सफाई करना जैसे कई तरीकोंसे काम किया जा सकता है। हमें अपने मनमें संकल्प लेना होगा कि हमें प्रकृतिसे सद्ïभावके साथ जुड़ कर रहना है। इस पर्यावरण दिवसपर हम सब इस बारेमें सोचें कि हम अपनी धरतीको स्वच्छ और हरित बनानेके लिए और क्या कर सकते हैं। किस तरह इस दिशामें आगे बढ़ सकते हैं। पर्यावरण दिवसपर अब सिर्फ पौधारोपण करनेसे कुछ नहीं होगा। जबतक हम यह सुनिश्चित नहीं कर लेते कि हम उस पौधेके पेड़ बननेतक उसकी देखभाल करेंगे। देशमें तेजीसे हो रहे शहरीकरणके कारण बड़ी मात्रामें कृषि भूमि आबादीकी भेंट चढ़ती गयी। जिस कारण वहांके पेड़-पौधे काट दिये गये एवं नदी नालोंको बंद कर बड़े-बड़े भवन बना दिये गये। जिससे वहां रहनेवाले पशु, पक्षी अन्यत्र चले गये। लेकिन लाकडाउनने लोगोंको उनके पुराने दिनोंकी याद दिला दी है। पुराने समयमें पर्यावरणको सुरक्षित रखनेके लिए पेड़ोंको देवताओंके समान दर्जा दिया जाता था। ताकि उन्हे कटनेसे बचाया जा सके। बड़-पीपल जैसे घने छायादार पेड़ोंको काटनेसे रोकनेके लिए उनकी देवताओंके रूपमें पूजा की जाती रही है। इसी कारण गांवोंमें आज भी लोग बड़ एवं पीपलका पेड़ नहीं काटते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवसको मनानेका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षणके दूसरे तरीकों सहित सभी देशोंके लोगोंको एक साथ लाकर जलवायु परिवर्तनका मुकाबला करने और जंगलोंके प्रबन्धको सुधारना है। वास्तविक रूपमें पृथ्वीको बचानेके लिए आयोजित इस उत्सवमें सभी आयु वर्गके लोगोंको सक्रियतासे शामिल करना होगा। तेजीसे बढ़ते शहरीकरण एवं लगातार काटे जा रहे पड़ोंके कारण बिगड़ते पर्यावरण संतुलनपर रोक लगानी होगी। इस दिन हमें आमजनको भागीदार बनाकर उन्हें इस बातका अहसास कराना होगा कि बिगड़ते पर्यावरण असंतुलनका खामियाजा हमें एवं हमारी आनेवाली पीढिय़ोंको उठाना पड़ेगा। इसलिए अभीसे पर्यावरणको लेकर सतर्क एवं सजग होनेकी जरूरत है। हमें पर्यावरण संरक्षणकी दिशामें तेजीसे काम करना होगा तभी बिगड़ते पर्यावरण असंतुलनको संतुलित कर पायेंगे। तभी आनेवाली पीढिय़ां शुद्ध हवामें सांस ले पायेंगी।