सम्पादकीय

ब्याज दरें यथावत


भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवारको लगातार छठीं बार नीतिगत दरोंमें कोई परिवर्तन नहीं किया और रेपो रेट चार प्रतिशत और रिवर्स रेपोरेट ३.३५ प्रतिशतके स्तरपर बनाये रखा। इसके साथ ही नकद जमा अनुपात (सीआरआर) को भी यथावत चार प्रतिशत बरकरार रखा गया है। मौद्रिक नीति समीक्षा बैठकके बाद आरबीआईके गवर्नर शक्तिकांत दासने कहा कि कोरोना महामारीकी दूसरी लहर और महंगीकी स्थितिको देखते हुए ही नीतिगत दरोंमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। ब्याज दरें पूर्ववत रहेंगी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि महामारीकी दूसरी लहरका प्रभाव छोटे शहरोंपर काफी पड़ा है। दूसरी लहरमें यद्यपि मृत्यु दर अधिक थी लेकिन आर्थिक गतिविधियोंपर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है। ऐसी आशा है कि टीकाकरण प्रक्रियामें तेजीसे आर्थिक स्थितिमें भी तेजीसे सुधारका मार्ग प्रशस्त होगा। नीतिगत दरोंमें कोई परिवर्तन नहीं करनेका निर्णय प्रत्याशित था क्योंकि इसके लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। इसीलिए रिजर्व बैंकने वित्तवर्ष २०२१-२२ के लिए जीडीपी विकासका अनुमान भी १०.५ प्रतिशतसे घटाकर ९.५ प्रतिशत कर दिया है लेकिन तीसरी तिमाहीमें सुधारकी सम्भावनाएं बनी हुई हैं। एक महत्वपूर्ण प्रश्न मांगमें गिरावटका है। इसका प्रभाव देखनेको मिला है। साथ ही महंगे कच्चे तेलके कारण महंगीमें भी वृद्धि हुई है। इससे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीसीआई) वित्तवर्ष २०२२ में ५.१ प्रतिशत रह सकता है। चौथी तिमाहीमें इसके ५.३ प्रतिशत रहनेका अनुमान है। रिजर्व बैंकका यह भी कहना है कि निर्यातके लिए नीतिगत समर्थनकी जरूरत है। वैश्विक मांगसे निर्यातको सहारा मिलेगा। अच्छे मानसूनसे गांवोंमें भी मांगको सहारा मिल सकता है। यह बात पूरी तरहसे स्पष्टï है कि दूसरी लहरसे प्रभावित सभी क्षेत्रोंको समर्थनकी जरूरत है। शहरी मांगमें कमजोरी और ग्रामीण क्षेत्रोंमें कोरोनाके फैलावसे अर्थव्यवस्थापर नकारात्मक प्रभाव पडऩा स्वाभाविक है। दूसरी लहरके प्रभावोंको कम करनेके लिए रिजर्व बैंकने कुछ कदम भी आगे बढ़ाया है लेकिन बढ़ती बेरोजगारी बड़ी चुनौती बन गयी है। इससे अर्थव्यवस्थामें सुधारकी गति कमजोर होगी, ऐसी स्थितिमें बेरोजगारीमें कमी लानेकी दिशामें ठोस कदम उठानेकी आवश्यकता है। जबतक बेरोजगारीकी दरमें कमी नहीं आयेगी तबतक मांगमें वृद्धि नहीं होगी, क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध क्रय शक्तिसे है। खरीदारी क्षमता बढऩेसे ही मांगमें वृद्धि होगी और इससे आर्थिक और कारोबारी गतिविधियां बढ़ेंगी।

भण्डारणका संकट

आजादीके चौहत्तर वर्ष बाद भी देशमें अनाज भण्डारणकी पर्याप्त व्यवस्था न होना देशके लिए गम्भीर चिन्ताका विषय है। भण्डारणकी समुचित और सुव्यवस्थित सुविधा न होनेसे किसानोंको जहां प्रतिवर्ष ९२,६५१ करोड़ रुपयेका नुकसान होता है वहीं हजारों टन अनाज नष्टï हो जाता है। कोरोना कालमें गेहूंका रेकार्ड उत्पादन भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गलेका फांस बन गया है। गेहूंकी सरकारी खरीद अबतक रेकार्ड ४.११ करोड़ टनसे अधिक हो चुकी है, वहीं कुल खरीदका लक्ष्य भी बढ़ा दिया गया है जिससे भण्डारणके गोदाम कम पडऩे लगे हैं। ऐसेमें गेहूंको खुले स्थानोंपर रखनेसे उसके नुकसानका खतरा बढ़ जायगा, क्योंकि मानसूनने दस्तक दे दी है। कृषिमंत्री प्राय: कहते हैं कि योजना आयोगके साथ मिलकर उनका विभाग भण्डारण क्षमताको बढ़ानेके लिए प्रयास कर रहा है, लेकिन भण्डारण क्षमतामें किसी तरहका सुधार नहीं हुआ जो इस तथ्यसे प्रमाणित होता है कि प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपयेका अनाज ठीकसे भण्डारण न हो पानेसे नष्टï हो जाता है, जो भारतीय खाद्य निगम और उससे जुड़े संस्थानोंकी विफलताको दर्शाता है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालयको यह कहना पड़ा था कि अनाजको गरीबोंमें बांट दिया जाय। आर्थिक उदारवादके कारण कृषि क्षेत्रकी उपेक्षा हुई। विभिन्न परियोजनाओंके निर्माणपर करोड़ों रुपये बहा दिये जाते हैं, लेकिन खाद्यान्नको सम्भालनेके लिए पर्याप्त संख्यामें गोदाम नहीं बने। वर्ष २००७ से २०१२ की ११वीं पंचवर्षीय योजनामें कोल्ड स्टोरेज निर्माणका बजट ४,०३१ करोड़ रुपये रखा गया था लेकिन उसका पूरा उपयोग अभीतक नहीं हो सका है, जो सरकारके कुप्रबन्धनको दर्शाता है। सरकारकी यह जिम्मेदारी है कि वह भण्डारणकी वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करे। खाली जगहोंको चिह्निïत कर उसे भण्डारणके लिए प्रयोग करे। जरूरत पडऩेपर सरकारको अधिग्रहण कर अनाज भण्डारणकी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। खाली गोदामोंको भी सरकारको अनाज भण्डारणके लिए प्रयोग करना चाहिए।