सम्पादकीय

पूरे तन्त्रपर कसनी होगी नकेल


ऋतुपर्ण दवे   

भारतीय बैंक घोटालेके सबसे बड़े घोटालेबाज मेहुल चैकसी और उसके भांजे नीरव मोदीपर १३,५७८ करोड़ रुपयोंकी बैंक धोखाधड़ीके आरोप हैं जिसमें ११,३८० करोड़ रुपयोंके फर्जी और बेजा लेने-देन हैं। पीएनबी बैंक घोटाला सात साल चलता रहा किसीको भनकतक नहीं लगी। भागनेसे पहले ही मेहुलने २०१७ में पूरी व्यूह रचना कर ली थी। पहले अपने कथित पासपोर्ट नंबर जेड ३३९६७३२ को कैंसिल्ड बुक्सके साथ जमा कर नागरिकता छोडऩेके लिए १७७ अमेरिकी डालरका ड्राफ्ट भी जमा कराया और नागरिकता छोडऩेवाले फार्ममें नया पता मेहुल चोकसी, जौली हार्बर सेंट मार्कस एंटीगुआ लिखाया। तब भी हमारे कानमें जूं नहीं रेंगी। जैसे ही घोटालेकी पर्ते खुलनेको आयीं, उसके चुपचाप ४ जनवरी, २०१८ एंटीगुआ फुर्र होनेकी बात भी सामने आयी। अब कूटनीतिक प्रयास या अन्य जो भी कारण हों नहीं पता, एंटीगुआसे ७२००० लोगोंकी आबादीवाले एक छोटेसे आइसलैंड डॉमिनिका अभी मईके आखिरी हफ्ते कैसे और क्यों पहुंचा रहस्य ही है। कहते हैं यहांसे क्यूबा जानेकी फिराकमें था। शरीरपर चोट, मिस्ट्री गर्लका नाम, भगानेमें आरोपके साथ कई किस्से और पेंच है। दरअसल एंटीगुआ और भारतके बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघकी भ्रष्टाचार निरोधी संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीएसी) पर भारत और एंटीगुआने सहमती जताते हुए हस्ताक्षर किये हैं। शायद इसीके तहत भारत वापसीका डर हो। जबकि डॉमिनिकाके साथ भारतकी प्रत्यर्पण संधि नहीं है। उधर एंटीगुआके प्रधान मंत्री गैस्टन ब्राउनका कहना कि उनका देश मेहुल चोकसीको स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि उसने द्वीपसे जाकर बड़ी गलती की है। डोमिनिका भी हमारे साथ सहयोग कर रहा है। इधर भारतसे स्पेशल प्लेन लेकर १४ घण्टेका सफर कर तमाम अधिकारी एवं दूसरे डिप्लोमेट मेहुलको लेने भी जा पहुंचे। लेकिन डॉमिनिकाकी अदालत और कानूनी बंदिशोंने पानी फेर दिया।

डामिनिकामें मेहुलपर दो मामले चल रहे हैं। पहला उसकी जमानतको लेकर मजिस्ट्रेटकी अदालतमें है जिसे बीते ३ जूनको खारिज किया गया जिसकी अगली सुनवाई १४ जूनको होगी। इसमें वह जमानत खातिर नियमानुसार जुर्माना भी भरनेको तैयार था। दलील थी कि उसे जबरन अपहरण कर उठाया गया है। वहीं दूसरा मामला हाईकोर्टमें है जहां तय होगा कि वह डॉमिनिका वैध या अवैध कैसे पहुंचा। किसपर फैसला पहले आता है यह तो जजपर निर्भर है। चाहे तो निचली अदालतके फैसलेका इन्तजार किये गये बिना फैसला दें या फिर उसका इंतजार करें। जानकार मानते हैं कि इसी दांव-पेंचमें मेहुल चोकसी अंदाजन एक महीने वहां पुलिस हिरासतमें रहेगा। मेहुलने २०१७ में ही कैरेबियाई देश एंटीगुआ और बारबुडाकी नागरिकता ले ली थी। आर्थिक रूपसे कमजोर कुछ देश नागरिकता बेचते हैं। मेहुल जैसे अपराधियोंने इसका फायदा उठाया। एंटीगुआ, ग्रेनेडा, माल्टा, नीदरलैंड्स और स्पेन इसीलिए अमीर निवेशकोंके आकर्षणका केन्द्र हैं तथा प्रत्यक्ष निवेशके जरिये नागरिकता बेच रहे हैं। बाहरी अमीर निवेशकों खातिर कई प्रस्ताव बना रखे हैं। एंटीगुआमें २०१३ में नागरिकता निवेश कार्यक्रम (सीआईपी) की शुरुआत हुई। नागरिकता हासिल करने हेतु पहले एंटीगुआके नेशनल डेवलपमेंट फंडमें एक लाख अमेरिकी डालरका दान। दूसरा, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट इंडीजमें डेढ़ लाख अमेरिकी डालरका दान। तीसरा, सरकारी इजाजतवाले रियल एस्टेटमें दो लाख अमेरिकी डालरका निवेश। चौथा, नागरिकता पाने खातिर तय किसी व्यवसायमें डेढ़ लाख अमेरिकी डालरका निवेश जरूरी होगा। मेहुलने सभी पूरा करते हुए २०१७ में ही नागिरकता ले ली थी। ऐसे देशोंके बारेमें अंतरराष्ट्रीय बिरादरीको सोचना होगा।

भारतमें धोखाधड़ीके ज्यादातर मामले भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंकमें दिखे। आंकड़ोंके मुताबिक पिछले ११ सालोंमें २.०५ लाख करोड़ रुपयेकी धोखाधड़ीके ५३,३३४ मामले दर्ज किये गये थ। ७० से ज्यादा विदेश भाग गये। लोकसभामें जनवरी २०१९ में तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री एसपी शुक्लाने जानकारी कि २०१५ से २७ आर्थिक अपराध कर भागे हैं जिनमें इन मेहुल चोकसी, नीरव मोदीके अलावा भारतीय स्टेट बैंककी अगुवाईमें एक कंसोर्टियम बनाकर विजय माल्याको ९००० करोड़के दिये गये लोन जो ब्याजके बाद १४००० हजार कोरड़ पहुंच गया, के आरोपी विजय माल्या सहित ललित मोदी, नीशाल मोदी, पुष्पेश बैद, आशीष जोबनपुत्रा, सन्नी कालरा, संजय कालरा, एसके कालरा, आरती कालरा, वर्षा कालरा, जतिन मेहता, उमेश पारेख, कमलेश पारेख, नीलेश पारेख, एकलव्य गर्ग, विनय मित्तल, सब्या सेठ, राजीव गोयल, अल्का गोयल, नितिन जयंतीलाल संदेसरा, दीप्तीबेन चेतन कुमार संदेसरा, रितेश जैन, हितेश पटेल, मयूरीबेन पटेल और प्रीति आशिष जोबनपुत्रा हैं। इन घोटालोंके अलावा रोटोमैक पेन घोटाला, सहारा घोटाला, आरपी इन्फोसिस्टम भी बेहद चर्चित घोटाले रहे हैं। इन फरेबियोंसे अमूमन हर भारतीय वाकिफ हो चुका है।

एक रिसर्चसे पता चला है कि चाहे छोटी धोखाधड़ी हो या बढ़ी, दोनोंमें सिस्टमकी कमजोरियोंसे अनुचित लाभ उठाया जाता है। इधर आर्थिक अपराधियोंको सख्तीसे रोकने, उनकी संपत्तियां जब्त करने, दण्डित करनेके लिहाजसे ही भारतीय भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून २०१८ भी बना। लेकिन उसके बाद भी अपराध थम नहीं रहे हैं। जबकि दूसरी ओर रिजर्व बैंकके पास धोखाधड़ीसे बचने खातिर प्रारंभिक चेतावनी संकेत यानी ईडब्ल्यूएस प्रणाली मौजूद है। लेकिन जैसा कि नीरव मोदी मामलेमें हुआ, बैंक हमेशा इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं। ज्यादातर मामले सरकारके स्वामित्ववाले बैंकोंमें जोखिमसे निबटनेकी खराब कार्य प्रणाली, कुप्रबंधन तथा अप्रभावी इंटरनल ऑडिटसे होते हैं। बड़ी-बड़ी कम्पनियों और बैंक लोन विभागके उच्चाधिकारियोंकी मिलीभगत भी होती है। जाहिर है आंकड़ोंमें धोखाधड़ी करनेवाला तीसरा पक्ष जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंट, वकील, ऑडिटर्स और रेटिंग एजेंसीपर भी कड़ी निगाहें एवं संलिप्ततापर कठोरसे कठोर सजा जरूरी हैं। कह सकते हैं कि संघटित और साजिशन आर्थिक अपराध रोकनेके लिए पूरे तंत्रपर नकेल कसनी होगी और कानूनका कागजमें होना नहीं हकीकतमें असर भी दिखना चाहिए तभी यह सब रुक पायगा। शायद रामायणमें भी इसीलिए कहा गया है कि श्विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब, बिन भय होय न प्रीत।