सम्पादकीय

मनकी अवस्था


बलदेव राज भारतीय

मन चंचल है। मनकी स्थिरता शांति प्रदान करती है। परंतु मनके तुरंग उसे कहां स्थिर रहने देते हैं। मन ही है, जिसके लिए कोई स्थान दुर्गम नहीं है। मन ही है, जिसकी गति प्रकाशकी गतिसे भी अधिक है या यूं कह लीजिए कि समस्त ब्रह्मïाण्डमें सबसे तेज गति मनकी ही है। मनकी शांतिके लिए मनुष्य युगों-युगोंसे भटक रहा है। कभी वर्षों तपस्या कर अपने शरीरको हड्डियोंका पिंजर बनाया तो कभी वर्षों सिद्धियां प्राप्त करनेमें गुजर दिया। आज भी मनुष्य मनकी शांतिके लिए दर-दर भटक रहा है। विज्ञानने कितनी ही प्रगति क्यों न कर ली हो परंतु जीवन और मृत्युका रहस्य अभीतक नहीं सुलझा पाया। कोई भी यंत्र, कोई भी उपकरण ऐसा नहीं बना पाया जिससे वह किसी मृत शरीरमें फिरसे प्राण फूंक सके। जन्मसे पहले और मृत्युके बादका रहस्य तो क्या सुलझा पाता। यह सभी प्रश्न मनुष्यके मनमें सदैव बने रहते हैं। कहते हैं कि जीव चौरासी लाख योनियोंमें भटक कर मनुष्य जन्मको पाता है, ताकि इस जन्ममें वह भक्ति और सद्कर्मोंसे चौरासीके फेरसे मुक्त हो सके। परंतु मनुष्य जन्मकी वास्तविकता यह है कि इस एक जन्ममें ही उसके चौरासी लाख चक्कर बन जाते हैं। वह बचपनसे ही ऐसे उलझ जाता है कि उसे कुछ सोचनेतकका वक्त नहीं मिलता। मोह मायाके फेरमें पड़ा मनुष्य चौरासीके फेरसे छूटनेके बारे कैसे सोच सकता है। ईश्वरने मनुष्यको देखनेके लिए दो आंखें प्रदान की हैं। इन आंखोंसे वह बाह्य परिवेशको ही देख पाता है। परंतु घर गृहस्थीके चक्करमें फंसा मनुष्य कुछ और देख ही नहीं सकता सिवाय दूसरोंकी बुराइयों, कमियों और अपनी अच्छाइयोंके। उसका मन उसे नीचा नहीं देखने देता। इसलिए वह अपने प्रति हमेशा सकारात्मक ही सोचता है। सत्य यही है कि किसीको भी अपनी पीठके दाग नजर नहीं आते। हम अपनी आंखें खुली रखकर एक निश्चित परिधिमें ही देख सकते हैं। हम कभी अपने भीतर देखनेकी कोशिश नहीं करते। कभी अपने अंतर्मनको टटोलनेका प्रयत्न नहीं करते। आंखें बंद कर जिस दिन हम अपने भीतर देखना शुरू कर देंगे उसी दिन हमारी सारी तलाश खत्म हो जायगी। हम न केवल अपने आपको जान पायंगे, बल्कि अपनी कमियों, अपनी खूबियोंके साथ साथ ही परमात्माको भी मनके भीतर ही पायंगे। वह अकाट्य सत्य जिसको कोई झुठला नहीं सकता वह केवल हम अपने भीतर ही पा सकते हैं। लेकिन उस सर्वशक्तिमानके अपने भीतर साक्षात्कार करनेसे पूर्व आवश्यकता है स्वयंसे साक्षात्कार की। क्योंकि हम अपनेसे भी अनभिज्ञ हैं, अपरिचित हैं। जिस दिन हम अपने आपको जान लेंगे तो ईश्वरसे साक्षात्कार करना आसान हो जायेगा।