सम्पादकीय

महन्तकी स्तब्धकारी मौत


अखिल भारतीय अखाड़ा परिषदके अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरिकी सोमवारको प्रयागराज स्थित बाघम्बरी मठमें संदिग्ध परिस्थितियोंमें मृत्यु अत्यन्त ही दुखद और स्तब्धकारी है। इस घटनासे लोग मर्माहत हैं और मृत्युको लेकर अनेक प्रश्न भी लोगोंके मनमें उठ रहे हैं। उनका शव मठके एक कमरेमें फांसी लगा हुआ मिला। उनके अनुयायियोंका कहना है कि महंत नरेन्द्र गिरि पिछले कुछ दिनोंसे तनावमें थे। यह प्रकरण संदेहके घेरेमें है। उन्होंने आत्महत्या की अथवा उनकी हत्या की गयी, यह अभी प्रश्न बना हुआ है, जो जांचका विषय है। घटनास्थलसे आठ पृष्ठïोंका एक सुसाइड नोट मिला है और उनके शिष्य आनन्द गिरिको भी हिरासतमें ले लिया गया है। राम जन्मभूमि आन्दोलनमें सक्रिय भूमिका निभानेवाले महंत नरेन्द्र गिरिके अनुयायियोंकी बड़ी संख्या है, जो पूरे देशमें फैले हुए हैं। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेशके मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ सहित देशके विभिन्न स्थलोंके संत-महन्तोंने इस घटनापर गहरा शोक जताया है। सभी लोग यह जानना चाहते हैं कि महन्त नरेन्द्र गिरिकी क्यों और किन परिस्थितियोंमें मृत्यु हुई। पुलिस इस घटनाकी विभिन्न कोणोंसे जांचमें सक्रिय हो गयी है। उत्तर प्रदेश सरकारने भी सक्रियता बढ़ा दी है। इस घटनाके विभिन्न पहलुओंकी गहन पड़ताल आवश्यक है जिससे कि वास्तविकता सामने आ सके। जांचमें निष्पक्षता जरूरी है और सन्देहके सभी बिन्दुओंको जांचका विषय बनाया जाना चाहिए। सुसाइड नोटको वसीयतकी भांति क्यों लिखा गया यह भी बड़ा प्रश्न है। मठोंमें विवाद कोई नयी  बात नहीं है लेकिन ऐसे विवादोंमें स्वाभाविक अथवा अस्वाभाविक मृत्यु होना विवादकी गम्भीरताको रेखांकित करता है। वाघम्बरी मठ भी विवादोंसे मुक्त नहीं रहा है। विवाद अनेक विषयोंसे सम्बन्धित हो सकते हैं। आत्महत्या करना साहसिक होता है जबकि हत्या करना आपराधिक और दुस्साहसिक कदम है। दोनों ही पृष्ठïभूमि सुनियोजित होती है। इसमें साक्ष्योंका महत्वपूर्ण स्थान होता है। जांच एजेंसियोंका यह दायित्व है कि वे सभी पहलुओंका बारीकीसे विवेचना करें जिससे कि सत्यपर आधारित निष्कर्षोंपर पहुंचा जा सके। महंत नरेन्द्र गिरिकी मृत्युसे सम्बन्धित जांचकी मांग पूरे देशमें उठ रही है। इसमें सीबीआई और न्यायिक जांचकी भी मांग शामिल है। पुलिस प्रारम्भिक जांचमें किस निष्कर्षपर पहुंचती है और वह कितना विश्वसनीय होता है, इसपर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि इसीके आधारपर आगेकी जांचका रास्ता बनता है। यह राज्य और केन्द्र सरकारपर निर्भर करता है कि इस रहस्यपूर्ण प्रकरणकी जांचका स्वरूप क्या होना चाहिए। वैसे यह सभी चाहते हैं कि मृत्युपरसे रहस्यका पर्दा उठना चाहिए जिससे वास्तविकता सामने आ सके।

सुरक्षित शिक्षण जरूरी

कोरोना संक्रमणकालसे अबतक देशकी अर्थव्यवस्थासे लेकर मानव जीवनसे सम्बन्धित हर क्षेत्र गम्भीर रूपसे प्रभावित हुआ है, लेकिन उसमें भी स्कूल-कालेजोंकी लगातार बंदीसे बच्चोंकी शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित हुई है। कोरोनाके चलते पिछले साल मार्च-अप्रैलसे ही स्कूल-कालेज बंद हैं जिससे शिक्षण कार्य तो प्रभावित हो ही रहा है साथ ही छात्रोंपर मनोवैज्ञानिक असर भी पड़ रहा है। हालांकि सरकारकी ओरसे विकल्पके रूपमें आनलाइन शिक्षणकी व्यवस्था जरूर की गयी थी लेकिन यह न तो सभी बच्चोंके लिए सम्भव थी, न ही सभी शिक्षण संस्थानोंके लिए। शिक्षण कार्यको पुन: पटरीपर लाया जाय, इसके लिए हरसम्भव प्रयास किया जाना चाहिए लेकिन सुरक्षाकी अनदेखीकी कीमतपर नहीं। सुरक्षित शिक्षण जरूरी है, इससे किसी प्रकारका समझौता खतरेको दावत देना है। सर्वोच्च न्यायालयने १२वींकी एक छात्रकी स्कूलोंके खोलनेके लिए दायर एक याचिकापर सुनवाईसे इनकार करते हुए छात्रको नसीहत दी कि याचिका दायर करनेके बजाय पढ़ाईपर ध्यान दें। न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्नाकी पीठने कहा कि शीर्ष अदालत इस तरहका आदेश नहीं दे सकती। आफलाइन पढ़ाईके लिए स्कूलोंको फिरसे खोलनेका फैसला राज्योंको करना है। शीर्ष न्यायालयने कहा कि केरल और महाराष्टï्रकी स्थितिको देखते हुए किसी राज्यके खतरोंको नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। देश अभी-अभी कोरोनाकी दूसरी लहरसे बाहर आया है लेकिन खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इसका हमला फिर कब होगा, निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता है। अभी तीसरे लहरका खतरा बना हुआ है जिसके दायरेमें बच्चे ही हैं, इसलिए सतर्क रहना और सुरक्षा मानकोंपर विशेष ध्यान देनेकी जरूरत है। स्कूल खोलनेकी जिम्मेदारी राज्य सरकारोंकी है जिसपर निर्णय राज्यकी स्थितिको देखते हुए लिया जाना चाहिए। इसके लिए सम्बन्धित जिलोंकी स्थितियोंको ध्यानमें रखना श्रेयस्कर होगा।