पटना

मुजफ्फरपुर: चमकी पर पिता की जागरूकता से मिली रौनक को मुस्कान


चमकी से प्रभावित होने पर  तुरंत अस्पताल पहुंचाने से बची जान 

मुजफ्फरपुर। अहले सुबह में अचानक मासूम की उल्टियाँ, आंख तरेरना और चमकी का आना। इस वाक्ये ने एक पिता को किसी अनहोनी की आशंका से ग्रसित कर दिया था। तभी उस पिता को आशा की बतायी बातें याद आने लगी। उसने कहा था कि सुबह में उल्टी, आंखे तरेरना या चमकी आए तो समझ जाना कि बच्चे को एईएस है। फिर क्या था मुशहरी, मनिका गांव के मुनटुन राय ने बगल से मदद मांगी और गाड़ी पर दो साल के रौनक को लेकर मुशहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए। प्राथमिक इलाज के बाद बच्चे को बेहतर चिकित्सा के लिए एसकेएमसीएच भेज दिया गया। जहां से छह दिनों के इलाज के बाद रौनक के चेहरे पर अब मुस्कान बिखर रही है।

तत्परता से बची जान 

रौनक के पिता मुनटुन राय कहते हैं जब रौनक को सुबह में तीन बजे चमकी के लक्षण आए तो मुझे सहसा ही आशा की सभी बतायी बातें याद हो आयी। मैं पहले इसे मुशहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर गया। मैंने एक घंटे के अंदर ही अपने बेटे को अस्पताल पहुंचा दिया था। वहां पर डॉक्टरों ने इसका प्राथमिक इलाज किया। होश में लाने के बाद इसे बेहतर चिकित्सा के लिए एम्बुलेंस से एसकेएमसीएच भेज दिया गया। जहां डॉ जेपी नारायण की देख रेख में छह दिन इसका इलाज चला। उन्होंने बताया  इसे हाइपोग्लेसेमिया के कारण चमकी आया था। 27 अप्रैल को यह ठीक होकर घर आ गया।

चमकी पर थी जानकारी

रौनक के घर में उसकी दादी गुजरी और पिता मुनटुन राय को चमकी के बारे में पहले से जानकारी थी। गुजरी ने बताया  आशा पहले भी रोज आकर कहती थी कि बच्चे को धूप में नहीं जाने देना है, रात में खाना खिलाकर सुलाना है। वहीं रौनक के पिता मुनटुन राय ने कहा  आशा ने समझाया था कि चमकी का खतरा सुबह को ज्यादा होता है इसलिए बिना समय गवाएं बच्चे को अस्पताल पहुंचाना है।

यह सारी बातें उस वक्त मेरे दिमाग में घूम गयी। जल्दी से अस्पताल पहुंचाना मेरा काम था। अस्पताल में भी मुझे एक पैसा खर्च नहीं हुआ।  आशा मेरे घर आती है और मेरे बेटे का हाल भी पूछ कर जाती है। मेरे घर का पहला चिराग मुझे वापस मिल गया। इससे बड़ी खुशी मेरे लिए और क्या होगी।