नई दिल्ली। आमदनी उठन्नी, खर्चा रुपैया .. की कहावत अब कई राज्यों पर पूरी तरह सटीक बैठने लगी है। खासकर तब जबकि राजनीतिक लाभ के लिए मुफ्त गिफ्ट और मुफ्त मे सुविधाएं देने की योजनाएं बढ़ने लगी हैं। इस बात का खुलासा एसबीआई इकोरैप की रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्य लोन को माफ करने, पेंशन की पुरानी स्कीम व कई अन्य मुफ्त की योजनाएं चलाने की घोषणाएं कर रही हैं जो राज्यों के लिए आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है और इससे उनकी आर्थिक स्थिति गड़बड़ हो सकती है। इन राज्यों को सोच-समझकर तार्किक रूप से खर्च करना चाहिए क्योंकि मुफ्त की योजना चलाने के चक्कर में ये राज्य अपनी राजस्व प्राप्ति से अधिक खर्च कर रहे हैं।
प्राप्ति से काफी अधिक कर रहे हैं राज्य खर्च
इकोरैप की रिपोर्ट में उदाहरण के तौर पर बताया गया है कि तेलंगाना अपनी राजस्व प्राप्ति का 35 फीसद हिस्सा मुफ्त की योजनाओं व लोकलुभावन स्कीम पर खर्च करता है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल जैसे राज्य राजस्व प्राप्ति का 5-19 फीसद मुफ्त की योजनाओं पर खर्च करते हैं। छत्तीसगढ़ ने हाल ही में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की घोषणा की है। सिर्फ टैक्स से होने वाले वाली कमाई की बात करें तो ये राज्य टैक्स से होने वाली कमाई का 63 फीसद तक मुफ्त की योजनाओं पर खर्च कर देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में कोरोना महामारी की वजह से 18 राज्यों का औसत राजकोषीय घाटा बजट के प्रारंभिक अनुमान से 50 आधार अंक बढ़कर राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के चार फीसद के पास पहुंच गया है। इनमें से छह राज्यों का राजकोषीय घाटा उनके जीएसडीपी के चार फीसद को पार कर गया है। हालांकि 11 राज्य अपने राजकोषीय घाटे को चार फीसद से कम रखने में कामयाब होते दिख रहे हैं।
वित्त वर्ष 21-22 में जीएसडीपी के चार फीसद से अधिक राजकोषीय घाटा अनुमान वाले राज्य
राज्य — राजकोषीय घाटा
बिहार — 11.3 फीसद
असम — 8.5 फीसद
राजस्थान — 5.2 फीसद
केरल — 4.2 फीसद
मध्य प्रदेश — 4.2 फीसद
हिमाचल प्रदेश — 4.1 फीसद