पटना

मोतिहारी: लुकमान की तलाश में है भारत नेपाल संधि स्थल


गौरवशाली अतीत को याद कर बहा रहा आंसू

मोतिहारी (आससे)। मैं भारत नेपाल संधि की गवाह हूं। मैंने देखा है कि यहां किस प्रकार दोनो देशों के राजनयिकों की बैठकें हुई।युद्ध के बाद 1816 में मेरी ही गोद मे दोनो देशों की संधि हुई। मेरे इस मंदिर में कई राजा महाराजाओं के अलावा तांत्रिक व सन्यासियों का जमावड़ा लगा रहता था। यहां प्रति वर्ष बड़े मेले आयोजित होते थे।

मेरी खूबी ही ऐसी थी कि लोग मेरे यहां दौड़े चले आते थे और उनकी निश्छल मन से मांगी गई मुरादे पूरी होती थी।इस भूमि से ही हुई थी गोरखों व फिरंगियों के बीच लड़ाई। संधि की याद में विश्व का इकलौता युग्म पंचमुखी शिवलिंग स्थापित कर वर्ष 1816 में मंदिर बनवाया गया। एक पंचमुखी लिंग नेपाल तो दूसरा भारत का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा कई पुरानी यादों को अपने दामन में समेटे इतिहास के पन्ने पर दब गया हूं।

सुगौली शहर से एक किलोमीटर की दूरी पर शिवाला मंदिर के नाम से जाना जाता है। मेरी बेबसी को जानने वाला कोई नहीं। मेरी बेबसी के आंसू पोछने की भी किसी ने जहमत नही उठाई। एक कोने में वर्षो से उन्ही यादों के सहारे खड़ा हूं। मैं प्रतिक्षारत हूं कि कोई मेरे महत्व को समझे व उसे लोगो को बताएं। स्थानीय लोगो की मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूं कि मेरे बिखर रहे सपने में थोड़ी सी जान डाल दी है।

मेरे अस्तित्व को जीवंत करने के लिए वर्ष 2013 में सुगौली थानाध्यक्ष ललित विजय तिवारी, अरुण चौधरी, प्रदीप सराफ, गोदावरी देवी, श्याम शर्मा, रामनारायण सहनी, दीनबन्धु मोदी, अचिंत कुमार, अशोक सोनी, नन्हे वर्णवाल, अजय गुप्ता, मनोज खण्डेलवाल, अरुण मिश्र सहित अन्य  ने लोगो को जागरूक किया। जनसहयोग से मेरा रंग रोगन कर परिसर को कुछ हद तक ठीक कराया गया।

मैं बेतिया राज की विरासत थी। यहां महारानी अक्सर आया करती थी। उनके लिए बने स्नानागार जीर्णशीर्ण हाल में पास ही अवस्थित है। यही स्थित नौबतखाना भी अपनी हाल पर रो रहा है। यही सेबेटिया राज के महाराज आंनद किशोर व महारानी जानकी कुँवर लोगों राज्य के आदेश से लोगों को अवगत कराते थे। मैं लोगों को बताना चाहता हूं  की मेरे भीतर कई राज छुपे है। अगर मेरी खुदाई ठीक तरह से कराई जय तो कई आश्चर्यजनक तथ्य सामने आ सकते है। मेरे आसपास की जमीन को भी अतिक्रमण कर मुझे संकीर्ण बना दिया है।

मेरे धरोहरों पर भले ही प्रशासन का ध्यान नही गया, पर चोरो के निशाने पर रहा हूं। करीब एक दशक पूर्व अष्टधातु से बनी लक्ष्मी गणेश की मूर्ति चोरी कर ली गई। मेरी सुरक्षा को लेकर भी कोई व्यवस्था नही की गई है। अभी भी मैं असुरक्षा के घेरे में हूं। आम लोग साल में कभी-कभी मुझे जरूर सम्मान देते है।

मेरी महत्ता को भले ही नही समझे मेरे पास आकर कुछ पल जरूर गुजारकर मेरे अकेलेपन को दूर करने का प्रयास करते है। मेरे मंदिर के गर्भगृह में युग्म पंचमुखी शिवलिंग का दर्शन लोगों को हमेशा लाभकारी सिद्ध हुआ है। महाशिवरात्रि के अलावा श्रावण माह में दूर दराज से लोग यहां आकर जलाभिषेक करते है। मंदिर समिति के द्वारा मेले का भी आयोजन किया जाता है।