जयति
लोगोंके मनमें एक धारणा घर कर गयी है कि परिवारमें किसीका आध्यात्मिक रुझान रिश्तोंके मार्गमें बाधक है। हालांकि आध्यात्मिक मार्ग इस बातकी मांग नहीं करता कि आप अपने रिश्तोंको छोड़ दीजिए लेकिन रिश्ते अक्सर यह मांग करते हैं कि आप आध्यात्मिक राह छोड़ दीजिए। दुर्भाग्यसे बहुत सारे लोग रिश्तोंका ख्याल करके अपने आध्यात्मिक पथका त्याग कर देते हैं या इस तरफ बढऩेके विचारसे भी डरते रहते हैं। देखा जाय तो भगवान कृष्णने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्वके माध्यमसे दोनोंका सही संतुलन सिखाया है। वह योगी भी हैं और गृहस्थ भी। इन दोनोंका समुचित समन्वय करनेवाले राजा जनक भी विदेहराज कहलाते हैं। उनके अनुसार ‘मैंÓ तत्व को जानने और योगी होनेके लिए संसारको त्याग कर संन्यासी होनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। फूलको यदि खिलना है तो वह कहीं भी खिलेगा। अक्सर देखा गया है कि जब कोई ध्यान करना शुरू करता है तो शुरुआतमें उसके परिवारके दूसरे सदस्य खुश होते हैं, क्योंकि उस व्यक्तिकी मांगें कम हो जाती हैं, वह शांत रहने लगता है और चीजोंको बेहतर तरीकेसे करने लगता है। इस प्रक्रियाके दौरान जब वह व्यक्ति ध्यानकी गहराईमें जाता है, जब वह मौनमें आनन्द पाता है तो लोगोंको परेशानी होने लगती है। जब व्यक्ति अपने आपमें खुश रहने लगता है तो उसके आसपासके लोग असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। दरअसल आध्यात्मिक प्रक्रिया और मानवीय संबंध आपसमें कभी टकराने नहीं चाहिए, क्योंकि वह जीवनके दो अलग-अलग क्षेत्र हैं। मानवीय संबंध आपके जीवनके बाहरी हिस्सेके दायरेमें आते हैं। अपनी सर्वोच्च क्षमताके साथ आपको उन्हें निभाना है। आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके व्यक्तिवके भीतरी भागसे ताल्लुक रखती है। इससे आपके संबंधोंमें टकराव उत्पन्न नहीं होना चाहिए। परिवारमें जब व्यक्ति आध्यात्मिक प्रक्रियाके साथ अपने अंदर किसी चीजका आनन्द लेना शुरू कर देता है तो वह आनन्द उनके जीवनका केन्द्र बन जाता है। अधिकांश रिश्ते ऐसे होते हैं जिसमें लोग यह चाहते हैं कि वह दूसरे व्यक्तिके जीवनके केन्द्रमें बने रहें। मामला रिश्तोंका नहीं, असुरक्षा भरी समझ का है। यदि रिश्तोंमें प्रेम है तो कोई मुद्दा नहीं रह जाता। एक बार जब आप आध्यात्मिक मार्गपर चलने लगते हैं तो आपके रिश्ते ज्यादा परिपक्व और सुंदर बन जाते हैं। दूसरोंको एक जीवनके रूपमें सम्मान देने लगते हैं। यानी किसी भी एकके आध्यात्मिक होनेसे परिवारमें रिश्ते ज्यादा मधुर और मजबूत हो जाते हैं। आध्यात्मिकता सच्ची हो तो वह रिश्तोंमें भी प्रेमका रस घोल देती है।