सम्पादकीय

निराकार ईश्वर


सदानन्द शास्त्री

गौतम महर्षिके द्वारा रचित न्याय दर्शन ज्ञानके बारेमें चर्चा करता है कि आपका ज्ञान सही है या नहीं। ज्ञानके माध्यमको जानना कि वह सही है या नहीं, यह है न्याय दर्शन। उदाहरणके लिए आप अपनी इंद्रियोंके द्वारा सूर्योदय या सूर्यास्त ये देख पाते हैं। लेकिन न्याय दर्शन कहता है नहीं, आप केवल उसपर विश्वास नहीं कर सकते, जो आप देख रहे हैं, आपको उससे परे जाकर खोजना है कि क्या वास्तवमें सूर्य ढल रहा है या फिर पृथ्वी घूम रही है। वैशेषिक दर्शन हमें लगता है कि कोपरनिकसने यह खोज की थी कि पृथ्वी सूर्यके चारों ओर चक्कर लगाती है, परन्तु यह बिलकुल असत्य है। उन्होंने जरूर पता लगाया था, लेकिन उसके पहले भारतमें बहुत लंबे समयसे लोग ये बात जानते थे कि पृथ्वी सूर्यकी परिक्रमा करती है। न्याय दर्शन इन सबके बारेमें बात करता है। वह बात करता है धारणाओंकी और उन धारणाओंके संशोधनकी और फिर आता है वैशेषिक दर्शन। यह संसारकी सभी वस्तुओंकी गिनती करता है। जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और फिर सारी वस्तुएं और विषय और इन सबका विश्लेषण। यह है वैशेषिक दर्शन। इसमें वे मन, चेतना, बुद्धि, स्मृति और इन सबके बारेमें चर्चा करते हैं। इसके बाद है सांख्य दर्शन। ये तीन दर्शन ईश्वरके बारेमें बात नहीं करते, बल्कि चेतनाके बारेमें बात करते हैं। केवल योग सूत्रोंमें जो चौथा दर्शन है वे ईश्वरके विषयपर चर्चा करते हैं। इसलिए आपको ईश्वरपर विश्वास करनेके लिए विवश नहीं करना है, लेकिन आपको किसीपर तो विश्वास करना होगा। आपको कमसे कम चेतनापर तो विश्वास करना होगा। भगवान ही तो अस्तित्व है। आम तौरपर जब हम ईश्वरके बारेमें सोचते हैं तो हम स्वर्गमें बैठे किसी शक्तिके बारेमें सोचते हैं, जिसने ये सृष्टि बनायी और फिर इस सृष्टिसे दूर जाकर बैठ गये और हर एक अंदर गलतियां निकालनेमें जुट गये। भगवान ही तो अस्तित्व है। यह पूरी सृष्टि एक ऐसे तत्वसे बनी है, जिसका नाम है प्रेम और यही तो ईश्वर है! आप ईश्वरसे अलग नहीं हैं। ईश्वरके बाहर कुछ भी नहीं है, सब कुछ ईश्वरके अन्दर ही स्थापित है। ये अच्छा, बुरा, सही, गलत और इन सबसे परे है। सुख-दु:ख ये सब कोई मायने नहीं रखता। केवल एक है जिसका अस्तित्व है, वह एक  पूर्ण है और यदि आप उसे कोई नाम देना चाहें तो ईश्वर कह सकते हैं। इसलिए चिंता नहीं, केवल स्वयंको जानें। जब इस भावको अपने अन्दर महसूस करते हैं तो आपको एक अलग ही अनुभूति होती है। ईश्वर निराकार है। सारी सृष्टि ही एक ईश्वरमें समायी हुई है।