पटना (आससे)। अखंड सौभाग्य और सतत् अभ्युदय के लिए सुहागन स्त्रियों का वट सावित्री व्रत गुरुवार को और पारण शुक्रवार को होगा। सुहागिन महिलाएं रोहिणी नक्षत्र व धृति योग में वट सावित्री का व्रत करेंगी ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जानेवाला यह व्रतोत्सव १० जून (गुरुवार) का इसलिए सुनिश्चित है, कयोंकि अमावस्या तिथि बुधवार को दिन में १.५७ बजे के बाद आरंभ हुई और गुरुवार को सायं ४.२० बजे तक रहेगी। सूर्योदय अमावस्या में ही होगा।
इस व्रत अनुष्ठान में व्रती स्त्रियां बांस का बना हाथ पंखा, अक्षत, हल्दी, सिन्दूर अगरबत्ती, धूपबत्ती, लाल-पीले रंग का कलावा, सोलह शृंगार, ताम्बे के लोटा में जल, मौसमी फल आम विशेष, पकवान आदि से वटवृक्ष के नीचे ब्रह्मा, सत्यवान, सावित्री, यम तथा वटवृक्ष की पूजा करेगी। पूजनोपरान्त सावित्री सत्यवान की कथा सुनकर पतिव्रता धर्म की शिक्षा ग्रहण करेंगी।
पूजा का शुभ मुहूर्त: उद्या तिथि के मुताबिक: प्रात: 5.12 बजे से पुरे दिन, गुली काल मुहूर्त: सुबह 8.24 बजे से 10.07 बजे तक, अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11.22 बजे से 12.16 बजे तक, अमृत काल मुहूर्त: दोपहर 1.32 बजे से 3.14 बजे तक।
इस वर्ष वट सावित्री के दिन चतुग्रही योग होने से विशेष पुण्यप्रद है। इस तिथि को वृषभ राशि में सूर्य, चन्द्रमा, बुध और राहु का संयोग मिल रहा है। यह चतुग्रही योग ज्योतिषीय दृष्टि में वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ाने और कष्टों से मुक्ति का संकेत करता है। व्रती स्त्रियां पूजनोपरान्त वटवृक्ष के मूल में जल चढ़ाकर, कुमकुम आदि लगाकर धागे को पपेटते हुए वटवृक्ष की सात बार परिक्रमा करके प्रसाद बांटती हैं।
वट सावित्री के प्रसाद में प्रशस्त है चना और गुड़। लौकिक परंपरा में वट सावित्री पूजन के पश्चात पति के चरण पखारने, आरती उतारने, हाथ पंखा झलने और मिष्ठïान एवं फल खिलाकर पति का आशीर्वाद प्राप्त करने की रीति भी प्रचलित है।