वाराणसी: पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित बैलून फेस्टिवल आज से शुरू हो गया। इसके साथ ही दोपहर में एक दर्जन नावों ने गंगा की धारा में रेस लगाई। सुबह छह बजे से पहले दो छोटे गुब्बारे उड़ाकर हवा के रुख के अनुसार उड़ान का स्थल निर्धारित किया गया। इसके लिए तीन स्थल सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल (कमच्छा), एमपी थिएटर ग्राउंड बीएचयू और डोमरी रामनगर पहले से चिह्नित थे। बैलून में सवार पायलट दल के सदस्य काशी-विश्वनाथ-गंगा की दिव्य-भव्य छटा देख निहाल हो गए।
पहले दिन प्रतिनिधियों और विशिष्ट मंडल की टीम ने की सैर: प्रतिदिन 10 बैलून से पायलट के अलावा चार दिनों में करीब 120 लोग उड़ान भर सकेंगे। यूके के सबसे बड़े गुब्बारे में 16, जबकि भारत के गुब्बारे में तीन लोग उड़ान भर सकेंगे। पहले दिन प्रतिनिधियों व विशिष्ठ मंडल की टीम सैर की। अन्य दिनों में शंघाई सहयोग संगठन देशों के प्रतिनिधि भी इससे हवा की सैर कर सकेंगे। उधर, सुबह की उड़ान के बाद सभी 10 एयर हाट बैलून शाम पांच से सात बजे तक गंगा पार डोमरी में होंगे। यहां बंधे गुब्बारे ऊपर-नीचे करते रहेंगे। ज्यादा लोग बैठ सकेंगे।
चप्पू की चाल संग लहरों पर लहराईं नावें: गंगा की लहरों पर दर्जन भर चप्पू की चाल संग लहरों पर रंगीन नावें लहराईं तो काशी के साथ देश-विदेश के सैलानी इसके गवाह बने। 11 बजे से कार्यक्रम के शुभारंभ के बाद 12 बजे से दशाश्वमेघ घाट से इसकी शुरुआत हुई। पर्यटन को और रफ्तार देने के उद्देश्य से इस नौका रेस में वाराणसी के नाविकों की टीमों ने हिस्सा लिया। विजेताओं को पर्यटन विभाग की ओर से क्रमश: प्रथम, द्वितीय व तृतीय विजेताओं को एक लाख, 50 हजार व 25 हजार रुपये बतौर पुरस्कार दिया गया।
ऐसे उड़ता है हाट एयर बैलून
गर्म, कम सघन हवा वाला गुब्बारा ऊपर उठता है। यह टोकरी, ईंधन टैंक और यात्रियों के लोड को उठाने में सक्षम होता है। गुब्बारे में हवा को परिवेश के तापमान से लगभग 90 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जा सकता है। चूंकि गुब्बारों में स्टेयरिंग नहीं होती ऐसे में पायलट इसे चलाने के लिए अलग-अलग ऊंचाई पर हवा की दिशा और गति का उपयोग करते हैं। गुब्बारे को तब तक हवा में रोक सकते हैं जब तक उनकी हवा गर्म हो और उनके पास जलने के लिए ईंधन होता है।