सम्पादकीय

विस्मयका बोध


श्रीश्री रविशंकर

जब हम जागरूक होते हैं तब सारी सृष्टि चमत्कारोंसे भरी पड़ी है। यह समग्र सृष्टि विस्मित होनेके लिए आश्चर्यचकित होनेके लिए है। वह एक ही चेतना है जो दीयेके रूपमें जलती है और जो प्राण वायु लेती है। विस्मय आध्यात्मिक उद्ïघाटनका आधार है। यह कितना अद्भुत है कि सृष्टि सर्वत्र आश्चर्यजनक वस्तुओंसे भरी पड़ी है, लेकिन हम इन्हें अनदेखा कर देते हैं। तभी हममें जड़ताका उदय होने लगता है। तमसका कार्य शुरू हो जाता है और अज्ञानता घर कर लेती है। जबकि विस्मयका बोध हममें जागरूकता लाता है। प्रकाश और जीवनमें क्या अंतर है। प्रकाशको दीयेके रूपमें जलनेके लिए प्राण वायु चाहिए, ठीक वैसे ही जीवनको भी। यदि तुम्हें एक कांचके कठघरेमें रख दिया जाय तो तुम्हारे भीतर जो जीवन है, वह बुझ जायगा, उसी प्रकार यदि तुम दीयेको गिलाससे ढक दो, जबतक उसमें प्राण वायु है, वह चलता रहेगा, उसके बाद वह भी बुझ जायगा। हमारी भाषा, बुद्धि, मन कितना सीमित है, इसका दृष्टिकोण सीमित है। हमारा यह छोटा-सा मन एक भाषा, दो भाषाओं या कुछ और भाषाओंके लिए योजनाबद्ध किया गया है। हमें लगता है कि इस छोटेसे मस्तिष्कमें हम सारी समझ, ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं। हमें लगता है कि हम सोच-विचार करके परिणाम निकाल सकते हैं, तर्क लगा सकते हैं और उन सभी वस्तुओंको समझ सकते हैं जिनका यहां अस्तित्व है, लेकिन यह अहसास कि मुझे सब पता है, हमें सुस्तीके कवचमें रखे रहता है। प्रकृति बार-बार तुम्हें मौका देती है, यह तुम्हारे थोड़े-बहुत रहस्योंको प्रकट करती है और कुछ अपने। जिससे तुम्हें फिरसे जीवन क्या है, चेतना क्या है, यह ब्रह्मïांड क्या है, इनपर आश्चर्यचकित होने, विस्मित होनेका मौका मिले। तुम इतने भाग्यशाली हो कि तुम इस स्तरपर हो। यह योगकी आध्यात्मिक यात्रा, देवत्वके साथ संघटनकी शुरुआत है। आओ हम इस संघटनसे विस्मित हों। यह उस संघटनकी प्रस्तावना होगी और जब तुम देवत्वसे जुड़ गये हो तो तुम सभी चीजोंसे विस्मित होओगे। यह एक ऐसा अद्भुत तथ्य है। सारा वर्तमान, भूतकाल, भविष्यका मान इस चेतनाके दायरेमें है।