सम्पादकीय

शंकाओंका समाधान जरूरी


अवधेश कुमार
प्रधान मंत्री मोदी नवम्बरके मनकी बात, फिर कच्छकी विकास परियोजनाओंका शिलान्यास करते हुए और मध्य प्रदेशके किसानोंसे बातचीतमें आन्दोलन एवं कृषि कानूनोंपर अपना रुख स्पष्टï कर चुके हैं। इस बातकी ओर कम लोगोंका ध्यान गया है कि आन्दोलनरत वास्तविक किसानों एवं किसान संघटनोंके प्रति नरम रवैया एवं बातचीतकी नीति अख्तियार करते हुए भी भाजपाने इसके समानान्तर कृषि कानूनोंपर समर्थन जुटानेके लिए जनताके बीच जानेका देशव्यापी अभियान चलाया है। वैसे भाजपाके प्रवक्ताओंने दिल्लीकी सीमाओंपर धरना आरंभ होनेके साथ ही आन्दोलनके पीछे-आगे खड़े उन चेहरोंपर हमला करना शुरू कर दिया था, जो उनके वैचारिक और राजनीतिक विरोधी हैं। हालांकि मोदी सरकारके मंत्रियोंने काफी समयतक संयमित भाषाका प्रयोग किया। बादमें अवश्य मंत्रियोंने आन्दोलनके पीछे खड़े भाजपा विरोधकी राजनीति करनेवाले संघटनों एवं चेहरोंपर हमला किया। प्रधान मंत्रीका यह कहना कि कुछ लोग किसानोंमें गलतफहमी पैदा कर उनको भड़का रहे हैं स्पष्ट करता है कि सरकार इसे केवल किसानोंका आन्दोलन नहीं मानती, भाजपा विरोधी शक्तियों राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक भाजपा विरोधी शक्तियोंका अभियान मानकर इनसे उसके अनुसार निबटनेकी दिशामें आगे बढ़ चुकी है। ध्यान रखिये प्रधान मंत्रीके कच्छ भाषणके पूर्व ही भाजपाने देशभरमें कृषि कानूनोंको लेकर जनसभाएं एवं पत्रकार वार्ताओंकी घोषणा कर दी थी। जो सूचना है ऐसे करीब ७०० कार्यक्रम देशभरमें भाजपा आयोजित कर रही है। प्रधान मंत्री बोल चुके हैं कि वह आगे भी कृषि कानूनोंपर लोगोंसे बातचीत करते रहेंगे तो आन्दोलनके समानांतर सरकार एवं भाजपाका जनताके बीच जाने, हर मंचसे अपना पक्ष रखने, आन्दोलनमें शामिल या बाहरसे समर्थन करनेवाले संघटनों-व्यक्तियोंके खिलाफ आक्रामक कार्यक्रमोंकी विविध तस्वीरें और शब्दावलियां हमें देखने सुननेको मिलेगी।
प्रधान मंत्रीके तेवरके बाद किसीको संदेह नहीं होना चाहिए कि इसे ज्यादा तीव्र और तीक्ष्ण किया जायगा। इसमें यह प्रश्न स्वाभाविक उठता है कि आखिर मोदी सरकार इसे कहांतक ले जायगी एवं आन्दोलनसे कैसे निबटेगी। सरकार बार-बार कह रही है कि तीन कृषि कानूनोंको वापस नहीं लेगी। हालांकि इसके साथ अब भी सरकार किसानोंकी शंकाओंका जितना संभव है समाधान करनेकी तैयारी दिखा रही है। इस मामलेमें उसके व्यवहारमें निरन्तरता भी बनी हुई है। कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कह रहे हैं कि किसानों की जो भी शंकाएं हैं सरकार उनको दूर करने, किसानोंको समझाने तथा सफाई देनेके लिए हर समय तैयार है। तोमरका एक पत्र भी किसानोंके नाम जारी हो चुका है। कुछ मुद्दोंपर सहमतिका यह अर्थ नहीं कि भाजपा और सरकार अपने रुखसे पीठे हट जायगी। प्रधान मंत्रीने कहा कि किसानोंके कल्याणके लिए उनकी भलाईके लिए सरकार हर क्षण तैयार है। सरकारकी रणनीति एवं लक्ष्य स्पष्ट हैं। एक, किसानों और आम जनताके अन्दर यह भाव पैदा करना कि आन्दोलन किसानोंका नहीं है, इसके पीछे वह सारी विरोधी शक्तियां खड़ी हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य नरेंद्र मोदी और उनकी सरकारको बदनाम करना, उसको अस्थिर करना है। दो, यद्यपि इसमें किसान संघटन हैं लेकिन उनमें निष्पक्ष राजनीतिक विचारोंसे परे कम ही हैं। तीन, इसमें किसान भी हैं लेकिन वह गलतफहमीके शिकार हैं। अपना राजनीतिक हित साधनेके लिए भाजपा विरोधी संघटनों, दलों, एक्टिविस्टोंने कृषि कानूनके विरोधमें इनको भड़काया है एवं इनके अंदर कई तरहका डर पैदा किया है। मसलन तुम्हारी जमीनें पूंजीपतियोंके हाथों चली जायंगी, सरकारी मंडियां बंद हो जायंगी, एमएसपी बंद हो जायंगी, एमएसपी खत्म हो जायंगी आदि। इस रणनीतिका चौथा अंग है उन किसान संघटनों और नेताओंको विश्वासमें लेना जिनका सीधा कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है। इनमें आन्दोलनमें सम्मिलित संघटनके नेता भी हैं। कृषि कानूनोंको किसानोंकी वास्तविक आजादीका कदम साबित करना तो है ही। इसमें दो राय नहीं कि लम्बे समयकी प्रतीक्षाके बाद वर्तमान समयकी आवश्यकताओंके अनुरूप बेहतर कृषि कानून देशको मिला है। कोई भी कानून दोष रहित नहीं होता। कानूनोंकी अनेक खामियां उनके क्रियान्वयनके साथ धीरे-धीरे सामने आती हैं। सरकारका रवैया यह होना चाहिए कि यदि कुछ दोष सामने आये जिनको दूर करनेके लिए कानूनमें संशोधन करना हो या प्रशासनिक स्तरपर परिवर्तन करना हो तो करे। इस कानूनके साथ भी ऐसा है। यदि इमानदारीसे विचार करें तो मोदी सरकारका रवैया पहले दिनसे कानूनको लेकर बिल्कुल लचीला रहा है। आंदोलनकारियोंके साथ बातचीत करनेसे लेकर आश्वासन देशके सामने है।
निष्पक्षतासे विचार करनेपर यह स्वीकार करना होगा कि सरकारने ९ दिसंबरको आंदोलनकारियोंको जो प्रस्ताव दिये उनके आधारपर आन्दोलन समाप्त करनेकी घोषणा की जा सकती थी। यदि इसके पीछे मोदी विरोधी, भाजपा विरोधी और सारी शक्तियां खड़ी नहीं होती तो किसानों और सरकारके बीच सहमति हो गयी होती। नरेंद्र मोदी सहित वरिष्ठ मंत्रियों एवं भाजपाके रणनीतिकारोंका पहले दिनसे मानना रहा है कि जो लोग इस आन्दोलनके साथ या पीछे हैं वह कभी भी सरकारके साथ किसान संघटनोंके समझौतेको सफल नहीं होने देंगे। बावजूद व्यवहारिक रास्ता और लोकतांत्रिक आचरण यही था और है कि बातचीतके दरवाजे हमेशा खुले रखा जाय, स्वीकार करने योग्य मांगें मान ली जायं, जरूरतके अनुसार संशोधन करने और स्पष्टीकरण देनेके लिए तैयार रहें, ताकि विरोधियोंके पास सरकारको कठघरेमें खड़ा करनेका विश्वसनीय आधार न रहे।
सरकारने अपने व्यवहारसे पूरे देशको यह संदेश दिया कि वह तो वास्तविक किसानोंकी वाजिब मांगोंको स्वीकार करनेको तैयार हैं लेकिन जो दूसरे तत्व आन्दोलनको अपनी गिरफ्तमें ले चुके हैं वह समझौता नहीं होने दे रहे हैं। यहांपर पहुंच जानेके बाद विरोधियोंका आक्रामक रवैया अख्तियार करना बिल्कुल स्वाभाविक है। प्रधान मंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकार और पार्टी आन्दोलनके पीछे खड़ी विरोधी शक्तियोंके विरुद्ध मोर्चाबंदी आक्रमण जारी रखेंगे। इस तरह मोदी सरकार एवं भाजपाने पूरी तरह सोच-समझकर आन्दोलनमें लगी शक्तियोंके विरुद्ध अपने स्वभावके अनुरूप वैचारिक एवं राजनीतिक युद्ध छेड़ दिया है। अबतकके आलोकमें यह बेहिचक कहा जा सकता है कि कृषि कानूनोंके पक्षमें तथा विरोधियोंके विरुद्ध माहौल बनानेका अभियान प्रचंड रूप लेगा।
विरोधियोंके सामने मोदी और शाहने ऐसी चुनौती पेश की है जिसकी उम्मीद उन्हें नहीं थी। विरोधी कुछ धरना-प्रदर्शनमें सामने या नेपथ्यसे अपनी शक्ति दिखा सकते हैं लेकिन मोदी और शाहके नेतृत्ववाली भाजपासे जमीनी स्तरपर मुकाबला करना संभव नहीं। पूरे देशमें जमीनपर भाजपासे लडऩा नामुमकिन है और वह भी इस कानूनके बारेमें गलत प्रचार करके। कई राज्योंमें सघन राजनीतिक टकरावकी स्थिति पैदा होगी। पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र और पंजाब इनमें प्रमुख हैं। कहनेका तात्पर्य यह कि कृषि कानूनोंके विरोधमें शुरू आंदोलनको भाजपाने अपनी रणनीतिसे एक व्यापक राजनीतिक संघर्षमें परिणत करनेकी रणनीति अपनाया है। यह पहली सरकार है जो विरोधों और विरोधी आन्दोलनोंका सड़कपर उतरकर, जनताके बीच जाकर मुकाबला करती है। मोदी और भाजपा विरोधियोंने अभीतक अपने विचार-आचारमें पुराने राजनीतिक तौर-तरीकोंसे अलग कुछ भी नया नहीं दिखाया है। इसलिए यह मान कर चलें कि विरोधियोंको सफलता नहीं मिलनेवाली। इसमें आन्दोलनका हश्र क्या होगा इसका आकलन आसानीसे कर सकते हैं।