सम्पादकीय

शिक्षकोंका सामाजिक मूल्यांकन


सुरेश शर्मा   

यह सत्य है कि राष्ट्रनिर्माणमें बहुतसे व्यक्तियोंका योगदान होता है। शिक्षक राष्ट्रके निर्माणकर्ताओंका निर्माता कहा जाता है। चपरासीसे लेकर प्रधान मंत्रीके जीवन निर्माणमें शिक्षककी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जहां प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परामें गुरुओंका मान-सम्मान होता रहा है, वहींपर कभी-कभी उनका अपमान भी होता रहा है। एक बात निश्चित है कि जिस समाजमें गुरुका अपमान या निरादर होता है उस समाजका पतन हो जाता है। प्राचीन परंपराके आचार्य, गुरु, शिक्षक, अध्यापकके रास्ते होते हुए अब वर्तमानमें मास्टर हो चुके हैं जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। पूर्वसे ही शिक्षकोंको प्रतिष्ठित व्यक्तियों, नेताओं तथा समाजके लोगोंके तीखे शब्दों या व्यंग्य बाणोंका शिकार होना पड़ा है। यह सब सभ्य, शिक्षित तथा विकसित समाजके स्वास्थ्यके लिए शुभ संकेत नहीं है। कभी अध्यापकोंपर शिकंजा कसने, अध्यापक नपेंगे, मास्टरोंके मजे तथा कभी उनके वेतन, बचत या आयकरपर एक आम आदमीसे लेकर शीर्ष पदपर बैठे व्यक्ति द्वारा टिप्पणी होती है।

आखिर हम अपने घरमें पढ़ रहे बच्चेको उसके शिक्षकके बारेमें संदेश देना चाहते हैं। अध्यापक कोई चुनौती देने, डराने, धमकाने, खिल्ली उड़ाने, व्यंग्य करनेका पात्र नहीं है। इस तरहके व्यंग्य बाणों तथा असंवेदनशील टिप्पणियोंसे उसे भी पीड़ा होती है। वर्तमान भौतिकवादी समाज, धन-सम्पन्न तथा राजनीतिक प्रभावने उसके कद तथा छविको बौना कर दिया है। समाजमें सभी व्यक्ति तथा व्यवसाय सम्मानीय होते हैं। इस तरहके गैर-जिम्मेदार, अनादरके भाव, अशिष्ट भाषा एवं व्यवहार, असंवेदनशील मानसिकताका समाजमें संचार करते हैं। दुनियामें कोई व्यक्ति किसी भी पदपर बैठा है यह उसके अध्यापककी कृपासे ही संभव है। गुरुकी कृपा, आशीर्वाद या शापका भविष्यकी पीढिय़ोंतक प्रभाव होता है। सामाजिक व्यवस्थामें सभीका सहयोग एवं योगदान रहता है। अध्यापक ज्ञान-दानके साथ समाजको नेतृत्व प्रदान करता है। अध्यापकको कम आंकनेसे किसीका भला नहीं हो सकता। समाजको शिक्षककी भूमिकाका समग्र मूल्यांकन करना चाहिए। कोरोना संक्रमणकी वैश्विक महामारीने सभीको हिलाकर रख दिया। इससे कोई भी व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।

देशमें कोई युद्ध हो, बाहरी चुनौती हो या सीमापर खतरा हो, देशका जवान सबसे आगे रहकर चुनौतीको स्वीकार करता है। ज्ञान-विज्ञान तथा आविष्कारमें वैज्ञानिक झंडा बुलंद करता है। राजनीतिज्ञ देशको दिशा प्रदान करते हैं। अन्न संकटमें किसान अपना पसीना बहाता है। कला तथा खेलमें कलाकार तथा खिलाड़ी देशका मस्तक ऊंचा करते हैं। रोग तथा महामारीकी स्थितिमें चिकित्सक योद्धा बन जाते हैं। ज्ञान, शिक्षा तथा सामाजिक सरोकारोंके लिए अध्यापक समाज निर्माण कार्य करता है। कोरोना कालमें जहां डाक्टर, नर्स, स्वास्थ्य कर्मचारी तथा सफाई कर्मचारी अग्रणी थे, वहींपर कारोबारियों, व्यापारियों, किसानों, राजनेताओं, अध्यापकों तथा सभी समाजोंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस संकटके समयमें अध्यापकोंने अपनी अग्रणी एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभानेमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस कालमें अध्यापक सरकार द्वारा अनिवार्य घोषित छुट्टीमें भी मोर्चोंपर दिन-रात डटा रहा है। इस संकटके समयमें अध्यापकोंने पाठशालाके स्थानपर अपने घरको ही पाठशाला बना दिया। घरमें शिक्षण सामग्री तैयार करना, विद्यार्थियोंके लिए प्रेषित करना, पाठ्य सामग्रीको घर-घर भेजना, बच्चोंके किये गये गृहकार्यका अवलोकन करना, दूरभाष, वीडियो, ह्वïाट्सएप तथा सूचना प्रौद्योगिकीके संसाधनों गूगल मीट, जूमके माध्यमसे विद्यार्थियों तथा विभागके संपर्कमें रहना, हर घर पाठशालाके कार्यक्रमों तथा साप्ताहिक प्रश्नोत्तरी कार्यक्रमसे शिक्षण कार्यक्रमका संचालन करना, क्वारंटाइन सेंटरमें ड्यूटी, मिड डे मीलका राशन वितरण, बच्चोंको पुस्तकों तथा वर्दीका वितरण, अस्पतालों तथा टीकाकरण अभियानमें नियुक्तियां, सरकार, सचिवालय, शिक्षा निदेशालय, प्रारंभिक शिक्षा, जिला प्रारंभिक तथा उच्च निदेशालय, एनसीईआरटी, एससीईआरटी, समग्र शिक्षा अभियानके कार्यक्रम, राष्ट्रीय सेवा योजना, स्काउट एवं गाइड, एनसीसीके माध्यमसे समाज सेवाएं प्रदान करना, अभिभावकोंके पास मोबाइल एवं कनैक्टिविटी सिग्नलकी सूचनाएं संकलित करना, ई-पीटीएमका आयोजन, दृष्टि अभियान, फिट इंडिया कार्यक्रम, पंचायत तथा नगर संकाय चुनावमें ड्यूटीए स्वैच्छिक सेवाएं देना, बैरियरपर चैकिंग ड्यूटी, महामारीसे निबटनेके लिए सरकारके आदेशोंसे वेतन कटौती करवाना तथा स्वैच्छिक दान देकर अध्यापक भी संकटकालमें समाज, प्रदेश तथा देशके लोगोंके साथ तन, मन तथा धनसे खड़ा रहा है। इस परिस्थितिमें अध्यापक नियमित आनलाइन शिक्षण कार्य करनेके साथ प्रशासनिक तथा शिक्षा अधिकारियोंकी अनेकों वांछित जानकारियां प्रेषित करनेके साथ निरंतर तथा दिन-रात संपर्कमें रहा है।

शिक्षकोंकी भूमिकाका मूल्यांकन, विश्लेषण तथा अवलोकन करनेके लिए एक स्वच्छ तथा पारदर्शी चश्मेकी आवश्यकता है। इस व्यवस्थाको चलानेके लिए अनेकों परिश्रमी, ईमानदार, समर्पित तथा कर्मठ अध्यापक निरन्तर समर्पित भावसे कार्य कर रहे हैं, जिन्हें ढूंढऩेकी आवश्यकता है। शिक्षकके गौरव तथा आत्मसम्मानसे विपरीत ऐसे असंवेदनशील वक्तव्य उसकी आत्माको छलनी कर देते हैं। शिक्षकोंको भी समाजसे संवेदनशील व्यवहार, आदर तथा सम्मानकी आशा रहती है। व्यवस्थामें सभी लोग बेईमान, गैर-जिम्मेदार तथा भ्रष्टाचारी नहीं होते। वर्तमान उत्पन्न चुनौतियों तथा चर्चाओंकी पृष्ठभूमिमें कुछ कारण भी अवश्य होते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शिक्षकोंको इन कारणोंपर चिंतन कर अपने आपको पूर्ण रूपसे व्यवसायिक, चरित्रवान, अनुकरणीय तथा उदाहरणीय रूपसे समाजके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए। उन्हें भी अपने आचरण, कार्यशैलीमें परिवर्तन लानेकी आवश्यकता है। शिक्षाके दृष्टिकोणसे वर्तमान स्थिति सुखद नहीं है। शिक्षक भी आत्म-अवलोकन, आत्ममंथन, आत्मचिंतन तथा आत्मविश्लेषण करें।