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शरद पवार के अजेय दुर्ग पर भाजपा की नजर, बारामती सीट को छीनने की बन रही है योजना


मुंबई, देश में ऐसी कम ही लोकसभा सीटें होंगी, जिन पर एक व्यक्ति या उसके परिवार का कोई सदस्य ही वर्षों से जीतता आ रहा हो। पुणे जिले की बारामती (Baramati Loksabha Seat) ऐसी ही एक लोकसभा सीट है, जिसे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार (Sharad Pawar) का अजेय दुर्ग माना जाता है। लेकिन इस बार भाजपा (BJP) वार के इस गढ़ को भी उनसे छीनने की योजना बना रही है।

बारामती से सुप्रिया सुले (Supriya Sule) लड़ती हैं चुनाव

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने मंगलवार को बारामती का दौरा कर वहां के भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि अगले लोकसभा चुनाव में बारामती में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का विसर्जन करना है। बावनकुले की यह बात राकांपा को अखरती प्रतीत हो रही है। क्योंकि बारामती से कोई और नहीं, बल्कि राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले चुनाव लड़ती और जीतती आ रही हैं।

बारामती से राकांपा (NCP) को नहीं हिला पाएंगे

भाजपा अध्यक्ष की बात का जवाब देते हुए राकांपा नेता जीतेंद्र आह्वाड ने चंद्रशेखर बावनकुले के नाम पर तंज कसते हुए कहा कि बावन नहीं, एक लाख कुले आ जाएं तो भी बारामती से राकांपा को नहीं हिला पाएंगे। बता दें कि भाजपा देश की जिन 144 लोकसभा सीटों को अपने लिए कमजोर मानकर उनपर अपना ध्यान केंद्रित करने की योजना बनाई है, उनमें महाराष्ट्र की 16 सीटें शामिल हैं। बारामती भी उनमें से एक है।

बारामती लोकसभा सीट से शरद पवार 1984 में पहली बार भारतीय कांग्रेस (समाजवादी) के टिकट पर चुनकर आए थे। उस समय यह पार्टी खुद उन्होंने बना रखी थी। फिर 1991 में उन्होंने इस सीट से अपने भतीजे अजीत पवार को लड़ाकर जिताया, लेकिन इसी वर्ष हुए उपचुनाव में फिर इसी सीट से खुद जीतकर नरसिंहराव की सरकार में मंत्री बनने चले गए।

किसी और की नहीं गलेगी दाल

1994 में इस सीट से पवार परिवार से इतर कांग्रेस उम्मीदवार बापूसाहब थिते जीतकर गए। लेकिन उसके बाद से पिछले 26 वर्षों में इस सीट पर पवार परिवार से अलग किसी और की दाल नहीं गल सकी है। 1996, 1998, 1999 और 2004 में इस सीट से खुद शरद पवार लोकसभा चुनाव जीते। उसके बाद 2009, 2014 और 2019 में उनकी पुत्री सुप्रिया सुले यहां से जीतती आ रही हैं।

मोदी लहर में सुप्रिया सुले सीट बचाने में रही कामयाब

लेकिन भाजपा अपनी पैठ यहां लगातार बढ़ाती जा रही है। 2014 की प्रबल मोदी लहर में सुप्रिया सुले अपनी सीट बचाने में कामयाब जरूर रहीं, लेकिन भाजपा समर्थित राष्ट्रीय समाज पक्ष के उम्मीदवार महादेव जानकर के मुकाबले उनकी जीत का अंतर सिर्फ 69,719 पर सिमट गया था। ऐसा पहली बार हुआ कि इस चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी को मिले मतों में 40.32 फीसद का उछाल देखा गया, और उनके मतों में 17.58 फीसद की गिरावट आई।

यदि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी एवं बसपा उम्मीदवारों को 25-25 हजार वोट न मिले होते और जानकर अपनी पार्टी के चुनाव निशान के बजाय भाजपा के निशान कमल पर चुनाव लड़े होते, तो समीकरण सुप्रिया के विरोध में भी जा सकते थे।

हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सुप्रिया अपने पहले के मतों में 3.72 फीसद की बढ़ोतरी करने में सफल रहीं। लेकिन भाजपा उम्मीदवार कंचन कूल पिछले चुनाव में महादेव जानकर को मिले मतों से भी 40.69 फीसद ज्यादा मत पाने में सफल रहीं। लेकिन जीत सुप्रिया सुले की ही हुई थी।

क्‍या कहना है भाजपा का

इस प्रकार भाजपा या उसके समर्थित उम्मीदवारों के मत प्रतिशत में पिछले दो चुनावों से आ रहे 40-40 फीसद उछाल ने भाजपा का मनोबल बढ़ा दिया है। भाजपा मान रही है कि यदि सही उम्मीदवार के चयन के साथ-साथ बारामती के जातीय गणित पर बारीकी से ध्यान दिया जाए, तो शरद पवार के अजेय दुर्ग को ध्वस्त करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा।