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सऊदी अरबः मक्का में हमले की कोशिश करने वाला कौन था


  1. सऊदी अरब में पिछले शुक्रवार को मक्का में एक इमाम पर हमले की कोशिश हुई, जिसकी सऊदी अधिकारी जाँच कर रहे हैं.

सऊदी मीडिया में इस घटना के बारे में बताया गया है कि शुक्रवार को मक्का में जुमे की नमाज़ के दिन वहाँ बैठा एक शख़्स अचानक उस आसन या मंच की ओर दौड़ा जहाँ से इमाम तक़रीर कर रहे थे यानी भाषण दे रहे थे.

इस घटना की तस्वीरें टीवी पर लाइव प्रसारित हुईं, जिसमें दिखता है कि वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मी फ़ौरन मक्का में पहनी जानेवाली पवित्र पोशा पहने उस शख़्स को पकड़कर नीचे गिरा देते हैं.

अख़बार अरब न्यूज़ ने ख़बर दी है कि शुरुआती जाँच में पता चला है कि हमलावर सऊदी नागरिक है, जो ख़ुद के ‘इमाम महदी’ होने का दावा करता है.

गल्फ़ न्यूज़ का कहना है कि अधिकारियों ने उसकी मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए उसकी मेडिकल जाँच की है.

इमाम महदी

इस्लाम में इमाम महदी की अवधारणा मुख्य तौर पर शिया संप्रदाय का एक अहम हिस्सा है, लेकिन कई सुन्नी मुसलमान भी इसमें यक़ीन रखते हैं.

शिया मानते हैं कि उनके पहले इमाम हज़रत अली हैं और अंतिम यानी बारहवें इमाम ज़माना यानी इमाम महदी हैं.

अरबी शब्द में महदी का मतलब होता है – वो जिसे सही समझाया गया है या सही रास्ते पर चलने वाला.

इमाम महदी में आस्था रखने वाले मानते हैं कि क़यामत या दुनिया ख़त्म होने के समय इमाम महदी आएँगे और इंसाफ़ और अमन फैलाएँगे.

उन्हें मोहम्मद भी कहा जाएगा और वो उनकी बेटी फ़ातिमा की ओर से उनके वंशज होंगे.

पिछली कई सदियों में कई लोगों ने ख़ुद को महदी घोषित करते हुए दावा किया कि वो मुस्लिम जगत को नई ज़िंदगी देने आए हैं, लेकिन सुन्नी संप्रदाय के ज़्यादातर लोगों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया.

हालाँकि, कई रुढ़िवादी सुन्नी मुसलमान महदी की अवधारणा पर ये कहते हुए सवाल उठाते हैं कि इसका पवित्र क़ुरान और सुन्ना में कोई ज़िक्र नहीं है.

मक्का में पहले भी हु हैं ऐसी घटनाएँ

2017 में मक्का में आत्मघाती हमलावर के धमाके से गिरी इमारत का मलबामक्का में हमलों की घटनाएँ होती रही हैं. इस साल अप्रैल में भी काबा परिसर से छुरा लेकर गए एक व्यक्ति को गिरफ़्तार करने की ख़बर आई थी.

इसके बाद सऊदी प्रशासन ने मस्जिद को फिर से अपने नियंत्रण में लेने के लिए हज़ारों सैनिक और विशेष बलों को मक्का रवाना किया.

सऊदी अरब के शाही परिवार ने धार्मिक नेताओं से मस्जिद के अंदर बल प्रयोग करने की इजाज़त मांगी.

अगले कई दिनों में वहाँ ज़बरदस्त लड़ाई हुई, जिसमें मस्जिद का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया.

मस्जिद पर इस क़ब्ज़े को ख़त्म करने में मदद के लिए पाकिस्तान ने भी कमांडो की एक टीम सऊदी अरब भेजी थी.

कुछ फ्रेंच कमांडो भी गुप्त अभियान के तहत सऊदी अरब आए ताकि वे सऊदी सुरक्षाबलों को सलाह दे सकें और उपकरणों वगैरह के ज़रिए उनकी मदद कर सकें.

संकट 20 नवंबर से चार दिसंबर 1979 तक चला. कई लड़ाके मारे गए, कइयों ने आत्मसमर्पण कर दिया.

लड़ाई में ख़ुद को इमाम महदी बताने वाले अल-क़हतानी की भी मौत हो गई.