सम्पादकीय

सद्गुरु की कृपा


बाबा हरदेव
परब्रह्मïको निरंकार कहकर हम किसी नये मतका प्रचार नहीं कर रहे जिसे वेदों शास्त्रोंमें निरंकार कहकर पुकारा गया है, हम उसे ही निरंकारके नामसे याद करते हैं। निराकार और निरंकारमें केवल भाषाका ही अन्तर है। अर्थ दोनोंका एक ही है। यह निरंकार प्रभु पत्ते-पत्ते, डाली-डालीमें समाया हुआ है। कोई जगह ऐसी नहीं, जहां यह शक्ति विद्यमान न हो। आजतक जितने भी पीर-पैगंबर अवतार हुए हैं और हमारे जितने भी धर्म ग्रंथ हैं, सभी यही बताते हैं कि यह निरंकार, यह दातार हमारे अंग संग है। हमारी आंखोंसे भी नजदीक है। यह परमात्मा, जिसे अपने-अपने समयपर संतों, महापुरुषोंने भिन्न-भिन्न नामसे याद किया, किसीने इसे अल्लाहका नाम दिया, किसीने इसे गॉड कहकर पुकरा और किसीने इसे वाहेगुरुका नाम दिया, यह परमात्मा एक ही है। इस निराकार परब्रह्मï परमात्माको सद्गुरुकी कृपासे जो जान लेता है, इसीका ध्यान करता है, इस शक्तिके मुकाबले प्रकृतिकी किसी अन्य शक्तिको महत्ता नहीं देता, वही निरंकारी है। निरंकार प्रभुको जानने माननेवाले इन भक्तोंके संघटनको संत निरंकारी मिशनके नामसे जाना जाता है। सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी परमात्माका कोई आकार नहीं। इसीलिए इसे निरंकार (निराकार) कहा जाता है। वह स्वयं सारी सृष्टिका मालिक है, सारी ताकतोंका मालिक है, सर्वत्र समाया हुआ है। कण-कणमें है, हर जगह मौजूद है, पत्ते-पत्तेमें है, डाली-डालीमें है। फिर भी हमारे मनमें अज्ञानताके कारण इसकी गैरहाजिरी है। इस कारण हम एक-दूसरेसे खाहमखाकी बहसमें पड़ जाते हैं। यह एक ही ताकत है, एक ही सत्ता है। कोई इसको बि_ी कह रहा है, विठोवा कह रहा है, कोई इसे परमात्मा तो कोई निराकार कह रहा है। कोई इसे वाहेगुरु, कोई अल्लाह तो कोई राम कह रहा है। अनेक नाम इस प्रभुके हैं, सत्ता एक ही है। इस एकको न जाननेके कारण ही हम दूसरेको खाहमखा बेगाना मान बैठते हैं और संकीर्णताओंमें पड़ जाते हैं। एक ही ताकत है, एक ही मालिक है और एक ही नूर है हर एकमें वास कर रहा है। ऐसे इस एकको एक करके जाने, एक करके मानें, तब सही मायनोंमें हम एक हो पायंगे। इसी परमात्माकी महिमा गाते हुए संत कहते हैं कि हे प्रभु तू बेअंत है, तू बेमिसाल है। तेरी कृपासे ही हम सजे हुए हैं। तेरी कृपासे ही हमें सब कुछ प्राप्त हो रहा है। सृष्टिकी सारी कायनातकी तू ही रचना करनेवाला है, तू ही पालना करनेवाला है। इसका अंत भी तेरे हाथमें है। जैसे आप जानते है कि ब्रह्मïा, विष्णु, महेश यह तीनों ही रूप परमात्माके हैं। यह निराकार परमात्मा घट-घटमें समाया हुआ है। इसका कोई आदि अंत नहीं पाया जा सकता। यह कल भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा।