डा. शंकर सुवन सिंह
योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया हैं। योग शरीर, मन और आत्माको एक सूत्रमें बांधती है। योग जीवन जीनेकी कला है। योग दर्शन है। योग स्वके साथ अनुभूति है। योगसे स्वाभिमान और स्वतंत्रताका बोध होता है। योग मनुष्य एवं प्रकृतिके बीच सेतुका कार्य करती है। योग मानव जीवनमें परिपूर्ण सामंजस्यका द्योतक है। योग ब्रह्मïाण्डकी चेतनाका बोध कराती है। योग बौद्धिक एवं मानसिक विकासमें सहायक है। आत्माको परमात्माके साथ जोडऩा, जीवनमें संयमका होना और समाधि, यही योगिक क्रियाएं योग कहलाती हैं। योग सार्वभौमिक चेतनाके साथ व्यक्तिगत चेतनाका संघ है। योगका जन्म प्राचीन भारतमें हजारों साल पहले हुआ था। यह माना जाता है कि शिव पहले योगी या आदियोगी और पहले गुरु हैं। हजारों साल पहले हिमालयमें कंटिसारोकर झीलके तटपर आदियोगीने अपने ज्ञानको महान सात ऋषियोंके साथ साझा किया था क्योंकि इतने ज्ञानको एक व्यक्तिमें रखना मुश्किल था। ऋषियोंने इस शक्तिशाली योग विज्ञानको दुनियाके विभिन्न हिस्सोंमें फैलाया जिसमें एशिया, उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका शामिल हैं। भारतको अपनी पूरी अभिव्यक्तिमें योग प्रणालीको प्राप्त करनेका आशीष मिला हुआ है। आज योग भारतकी बदौलत ही दुनियाभरमें फैला है। भारतके प्रयासोंकी बदौलत संयुक्त राष्ट्र महासभामें इसकी स्वीकृति हुई थी जिसके बाद २१ जून २०१५ में पहली बार इसे विश्व स्तरपर मनाया गया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस हर साल २१ जूनको मनाया जाता है। इस वर्ष २१ जूनको विश्व, सातवां योग दिवस मना रहा है। वर्ष २०२१ में योग दिवसकी थीम है, योगके साथ रहें, घरपर रहें। इस थीमसे स्पष्टï है कि महामारीके इस दौरमें लोगोंको घरपर ही नियमित योग करनेका संदेश दिया गया है। कोरोना महामारीके इस दौरमें अपने अन्दर सकारात्मक ऊर्जा और बेहतर प्रतिरोधक क्षमता विकसित करनेके लिए योगका महत्व और अधिक बढ़ गया है।
भारत सरकारका आयुष मंत्रालय और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) योग दिवसको सफल बनानेका कार्य करती है। योग, अंग्रेजीके चार अक्षरोंसे मिलकर बना है। वाई, ओ, जी और ए (योग)। वाई, येलो कलर (पीला रंग) का प्रतीक है। ओ, ऑरेंज कलर (नारंगी/गेरुआ रंग) का प्रतीक है। जी, ग्रीन कलर(हरा रंग) का प्रतीक है। ए प्रतीक है एक्शन (क्रिया-काम) का। कहनेका तात्पर्य है तीनों रंगोंका काम-प्रभाव योगका प्रतीक है। पीला रंग देवी सरस्वतीका रंग है। अतएव यह ज्ञानको दर्शाता है। नारंगी रंग/गेरुआ रंग भक्तिका प्रतीक है। हरा रंग प्रकृतिका प्रतीक है। यह जीवन देता है। हरा रंग उर्वरता और विकासका द्योतक है। अतएव हरा रंग कर्मका प्रतीक है। यह तीनो रंग क्रमश: ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योगको दर्शाते हैं। गीतामें योगके कई प्रकार हैं लेकिन मुख्यत: तीन योगका वास्ता मनुष्यसे अधिक होता है ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग। ज्ञानयोग-साक्षीभाव द्वारा विशुद्ध आत्माका ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है। भक्तियोग- भक्त श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप। इन नौ अंगोंको नवधा भक्ति कहा जाता है। भक्ति योगानुसार व्यक्ति सालोक्य, सामीप्य, सारूप तथा सायुज्य-मुक्तिको प्राप्त होता है, जिसे क्रमबद्ध मुक्ति कहा जाता है। भक्ति योग ईश्वरप्राप्तिका सर्वश्रेष्ठ योग है। जिस मनुष्यमें भक्ति नहीं होती उसे भगवान् कभी नहीं मिलते। कर्मयोग- कर्म करना ही कर्म योग है। इसका उद्देश्य है कर्मोंमें कुशलता लाना। यही सहज योग है। कहनेका तात्पर्य है कि रंग हमारे जीवनमें महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। रंगोंका योगसे घनिष्ठ सम्बन्ध है। सिंधु-सरस्वती सभ्यताके जीवाश्म अवशेष प्राचीन भारतमें योगकी मौजूदगीका प्रमाण हैं। इस उपस्थितिका लोक परम्पराओंमें उल्लेख है। यह सिंधु घाटी सभ्यता, बौद्ध और जैन परम्पराओंमें शामिल है। सूर्यको वैदिक कालके दौरान सर्वोच्च महत्व दिया गया था और इसी तरह सूर्य नमस्कारका बादमें आविष्कार किया गया था। महर्षि पतंजलिको आधुनिक योगके पिताके रूपमें जाना जाता है। हालांकि उन्होंने योगका आविष्कार नहीं किया क्योंकि यह पहलेसे ही विभिन्न रूपोंमें था। उन्होंने इसे प्रणालीमें आत्मसात कर दिया। उन्होंने देखा कि किसीको भी अर्थपूर्ण तरीकेसे समझनेके लिए यह काफी जटिल हो रहा है। इसलिए उन्होंने आत्मसात किया और सभी पहलुओंको एक निश्चित प्रारूपमें शामिल किया जिसे योग सूत्र कहते हैं।
योग सूत्र, योग दर्शनका मूल ग्रंथ है। यह छह दर्शनोंमेंसे एक शास्त्र है और योग शास्त्रका एक ग्रंथ है। योग सूत्रोंकी रचना ३००० सालके पहले पतंजलिने की। योगसूत्रमें चित्तको एकाग्र करके ईश्वरमें लीन करनेका विधान है। पतंजलिके अनुसार चित्तकी वृत्तियोंको चंचल होनेसे रोकना ही योग है। अर्थात्ï मनको इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तुमें स्थिर रखना ही योग है। महर्षि पतंजलिने योगको चित्तकी वृत्तियोंके निरोधके रूपमें परिभाषित किया है। उन्होंने योग सूत्र नामसे योग सूत्रोंका एक संकलन किया, जिसमें उन्होंने पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धिके लिए अष्टांग योगका एक मार्ग विस्तारसे बताया है। अष्टांग योगको आठ अलग-अलग चरणोंवाला मार्ग नहीं समझना चाहिए। यह आठ आयामोंवाला मार्ग है जिसमें आठों आयामोंका अभ्यास एक साथ किया जाता है। योगके यह आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। योग करनेसे तनाव नहीं होता है। योग जीवनको तनाव मुक्त बनाता है। तनाव सारी बीमारियोंकी जड़ है। तनाव शब्दका निर्माण दो शब्दोंसे मिलकर हुआ है। ‘तनÓ-‘आवÓ। ‘तनÓ का तात्पर्य शरीरसे है और ‘आवÓ का तात्पर्य घावसे है। अर्थात्ï वह शरीर जिसमें घाव हैं। कहनेका तात्पर्य तनाव एक मानसिक बीमारी है जो दिखाई नहीं देती है। शरीरका ऐसा घाव जो दिखाई न दे, तनाव कहलाता है। तनावसे ग्रसित इनसानको सारा समाज पागल दिखाई देता है। तनाव वह बीमारी है जिसमें इनसान हीनभावनासे ग्रसित होता है। तनाव मूल रूपसे विघर्सन है। घिसनेकी क्रिया ही विघर्सन कहलाती है। घिसना अर्थात्ï विचारोंका नकारात्मक होना या मनका घिस जाना। अतएव तनाव मनोविकार है। तनाव नकारात्मकताका पर्यायवाची है। एक कहावत है, भूखे भजन न हो, गोपाला। पहले अपनी कंठी माला। भूखे पेट तो ईश्वरका भजन भी नहीं होता है। कहनेका तात्पर्य जब हम स्वयंका आदर एवं सम्मान करते हैं तभी हम देश और समाजकी सेवा कर सकते हैं। तनावसे ग्रसित इनसान जो खुद बीमार है वह दूसरोंको भी बीमार करता है। तनावसे ग्रसित इनसान दूसरोंको भी तनावमें डालता है। ऐसे नकारात्मक लोगोंसे दूर रहना चाहिए। समाजकी अवनतिका कारण है तनाव। योग करनेसे सकारात्मक विचारोंका उदभव होता है। योग सकारात्मकताकी जननी है। सकारात्मकतासे तनावपर विजय पायी जा सकती है। अतएव असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय॥ अर्थ, मुझे असत्यसे सत्यकी ओर ले चलो। मुझे अन्धकारसे प्रकाशकी ओर ले चलो। मुझे मृत्युसे अमरताकी ओर ले चलो। यही अवधारणा समाजको चिंतामुक्त और तनावमुक्त बनाती है। स्वको विकसित करनेकी आध्यात्मिक प्रक्रिया ही योग है। अर्थात्ï योग अपनेपनको विकसित करता है। अपनापन, अकेलापनको दूर करता है। अपनापनका शाब्दिक अर्थ है, आत्मीयता, स्वाभिमान, आत्माभिमान। आत्मीयता अर्थात्ï अपनी आत्माके साथ मित्रता। स्वाभिमान अर्थात्ï स्वके साथ जुडऩा। आत्माभिमान अर्थात्ï आत्माके साथ जुडऩा। कहनेका तात्पर्य मनुष्य कभी अकेला नहीं होता है। मनुष्य जब नकारात्मक विचारोंसे ग्रसित होता है तो वह आत्मीयता, स्वाभिमान, आत्माभिमानका अनुभव नहीं करता है। नकारात्मकता अकेलेपनको जन्म देती है। सकारात्मकता अपनेपनको जन्म देती है। अपनापन ही अकेलापनको दूर करता है। भीड़में शामिल होनेसे हम अपनेको अपने आपसे अलग करते हैं। भीड़में शामिल होना अर्थात्ï अपनेको अपने आपसे अलग करना हुआ। अलग होना आत्मीयता, स्वाभिमान, आत्माभिमानके लक्षण नहीं हैं। अपने आपको अपनेसे अलग करके कभी भी अकेलापन दूर नहीं किया जा सकता है। अतएव अपनी आत्मीयता, स्वाभिमान, आत्माभिमानको बनाये रखें। जिससे जीवनमें अकेलेपनका अनुभव न हो। कोई भी व्यक्ति इस धरतीपर अकेला नहीं है।
प्रत्येक व्यक्ति भौतिक रूपसे भौतिक संसाधनों एवं चारों ओरके आवरणसे घिरा हुआ है। देखा जाय तो भौतिक रूपसे भी व्यक्ति अकेला नहीं है। अतएव हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति न तो आध्यात्मिक रूपसे अकेला है और नहीं भौतिक रूपसे। योगसे रोग प्रतिरोधक क्षमताका विकास होता है। योग रोगको खत्म करता है। आयुष मंत्रालयका मानना है कि मानव अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कोरोना महामारीसे लड़ सकता है। इस महामारीसे बचनेका कारगर उपाय है योग। तनावमुक्त जीवन जीनेकी कला है योग। सकारात्मकतासे ही सद्ïगुणोंका विकास होता है। सकारात्मकता, योग करनेसे आती है। योग, सद्ïगुणोंके विकासका वाहक है। अतएव हम कह सकते है योग, वैश्विक स्वास्थ्यका द्योतक है।