सम्पादकीय

सबक लेनेकी जरूरत


टीकोंका उत्पादन करनेवाली विश्वकी अग्रणी कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट परिसरमें गुरुवारको भीषण रूपसे आग लगने और पांच लोगोंकी हुई मृत्यु अत्यन्त ही दुखद और चिंताका विषय है। पुणेकी इस कम्पनीमें कोरोना टीकेका भी उत्पादन हो रहा है लेकिन यह संतोष और राहतकी बात है कि जिस जगह कोविशील्ड टीकेका उत्पादन हो रहा है वह जगह पूरी तरह सुरक्षित है। कम्पनीके मुख्य अधिशासी अधिकारी अदार पूनावालाका कहना है कि टीकेका उत्पादन प्रभावित नहीं होगा। कई एकड़में फैले कम्पनीके परिसरमें अपराह्नï ढाई बजे इमारतकी पांचवीं मंजिलपर आग भड़की, जहां पहलेसे ही ज्वलनशील पदार्थ रखे थे। यह स्थान उत्पादन इकाईसे लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित है। आगपर काबू पानेमें लगभग तीन घण्टेतक अग्निशमन टीमको परिश्रम करना पड़ा। इस हादसेमें नौ लोगोंको सुरक्षित निकाला गया। मृतकोंमें उत्तर प्रदेश और बिहारके तीन लोग शामिल है जबकि दो लोग पुणेके ही रहनेवाले थे। राष्टï्रपति रामनाथ कोविन्द, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी, स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन सहित महाराष्टï्रके मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरेने भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हंै। यह घटना अत्यन्त ही गम्भीर है और इससे सबक लेनेकी भी जरूरत है। महाराष्टï्रकी सरकारने घटनाकी जांचका आदेश दिया है। कोरोनाकालमें हुई इस घटनाकी गहन जांच होनी चाहिए जिससे कि वास्तविकताका पता चल सके। प्रारम्भिक तौरपर इसे शार्ट सर्किटका मामला माना जा रहा है लेकिन इससे पूरी तरह सन्तुष्टï नहीं हुआ जा सकता है। हर पहलूपर पैनी नजरके साथ जांच होनी चाहिए। इस समय विश्वके अनेक देशोंमें भारतके कोरोना टीकेकी मांग बढ़ गयी है। इस टीकेको सुरक्षित और कारगर माना जा रहा है। भारतमें टीकाकरण अभियान शुरू हो गया है और अनेक देशोंमें भारतीय टीकेकी आपूर्ति भी की जा रही है। ऐसी स्थितिमें सीरम इंस्टीट्यूट परिसरमें भीषण अग्निकाण्डको सामान्य घटनाके रूपमें स्वीकार करना उचित नहीं होगा। भारतमें अनेक कम्पनियोंमें कोरोना टीकेपर कार्य हो रहा है। दो टीकोंको स्वीकृति मिलनेके बाद उसके टीके लगाये जा रहे हैं। निकट भविष्यमें अभी कई टीके आनेकी सम्भावना है। एक खुराकवाला टीका भी तैयार किया जा रहा है, जो शीघ्र आ सकता है। इसलिए इन सभी टीका उत्पादन इकाइयोंकी सुरक्षाकी जांच प्रतिदिन होनी चाहिए जिससे कि कोई अप्रिय घटना नहीं होने पाये।
रहस्योद्घाटन आवश्यक

राष्टï्रके गौरव नेताजी सुभाष चन्द्र बोसकी १२५वीं जयंती आज पूरे देशमें पराक्रम दिवसके रूपमें मनायी जा रही है, लेकिन उनके मौतका रहस्य आज भी अनसुलझी पहेली बना हुआ है। १८ अगस्त १९४५ के दिन नेताजी कहां लापता हो गये और उनका आगे क्या हुआ, यह भारतीय इतिहासका सबसे बड़ा अनुत्तरित प्रश्न बन गया है। देशके अलग-अलग हिस्सोंमें नेताजीको देखने और उनसे मिलनेका दावा करनेवाले लोगोंकी कमी नहीं है। फैजाबादके गुमनामी बाबासे लेकर छत्तीसगढ़के रायगढ़तकमें नेताजी होनेको लेकर कई दावे किये गये, लेकिन इन सभीकी प्रामाणिकता संदिग्ध है। नेताजीकी मौतके रहस्यपर पर्दा उठानेके लिए स्वतंत्रताके पश्चात १९५६ और १९७७ में आयोगका गठन भी किया गया। आयोगने अपनी रिपोर्टमें हवाई दुर्घटनामें नेताजीके मारे जानेकी जानकारी सरकारको दी थी लेकिन उस रिपोर्टसे देशके लोगोंका संशय दूर नहीं हुआ। १९९९ में मनोज मुखर्जीके नेतृत्वमें तीसरा आयोग बनाया गया, जिसे २००५ में ताइवानकी सरकारने बताया कि १९४५ में ताइवानकी भूमिपर कोई हवाई जहाज दुर्घटना नहीं हुई थी, जिससे उनकी मौतपर रहस्यका पर्दा और गहरा गया, क्योंकि मुखर्जी आयोगने जो सरकारको अपनी रिपोर्ट दी है, उसमें नेताजीकी मृत्यु उस विमान दुर्घटनामें होनेका कोई सबूत नहीं है। आईसीएसकी नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता आन्दोलनमें कूदे नेताजीके सामथ्र्यसे विदेशी शासक जहां खौफ खाते थे, वहीं स्वतंत्रताके बाद देशी सत्ताधीश जनमानसमें उनके व्यक्तित्व और कृतित्वके अमिट प्रभावसे घबराते थे। ऐसेमें उनकी मृत्यु किन परिस्थतियोंमें हुई इस रहस्यसे पर्दा उठना जरूरी है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी भी चाहते हैं कि उनकी मृत्युका रहस्य सबके सामने आये और यह केन्द्र सरकारकी जिम्मेदारी है कि वह इस रहस्यको उद्घाटितकर देशकी जनताको बताये कि नेताजीकी मौत किन परिस्थतियोंमें हुई। सभी देशवासी उनका सम्मान करते हैं और उनका व्यक्तित्व और कृतित्व लोगोंके दिलो दिमागमें रचा बसा है, ऐसेमें उनकी मौतका रहस्य जनताके सामने लाया जाना जरूरी है।