पटना

समस्तीपुर: रेडियो वाले मुखियाजी की प्रतिमा का अनावरण आज


समस्तीपुर (आससे)। आकाशवाणी पटना से प्रसारित होने वाले ‘चौपाल’ कार्यक्रम के मुखियाजी के रूप में साढ़े तीन दशक तक आवाज की दुनिया में कमांडिंग टोन के जादूगर रहे स्वर्गीय गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’ की कांस्य प्रतिमा उनके पैतृक गांव समस्तीपुर जिले के नीरपुर-मुजौना में लगी है। प्रतिमा का अनावरण उनकी 19वीं पुण्यतिथि पर बुधवार को होगा।

गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’ 1964 में ‘चौपाल’ के मुखियाजी के रूप में आकाशवाणी की सेवा में आये और देखते ही देखते आवाज की दुनिया में कमांडिंग टोन के महानायक बन गये। यह, वह जमाना था, जब टेलीविजन की कल्पना भी नहीं हुई थी। जमाना रेडियो का था और उस पर शाम को साढ़े छह बजे से प्रसारित होने वाले ‘चौपाल’ और उसके मुखियाजी का जादू श्रोताओं के सिर चढ़ कर बोला करता था। रेडियो के श्रोता आवाज से उनके इतने दीवाने थे कि उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहते। ‘चौपाल’ हर आयुवर्ग के श्रोताओं के बीच लोकप्रियता की बुलंदी को छू रहा था। फौजी भाइयों को हर मंगलवार को ‘चौपाल’ में फरमाइशी गीतों का कार्यक्रम ‘मन चाहे गीत’ का इंतजार रहता, तो शुक्रवार को बच्चों को ‘घरौंदा’ का।

‘लोहा सिंह’ नाटक का इंतजार श्रोताओं को बेसब्री से रहता। विशेष अवसरों पर तो गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’ के संगीत रूपक का जादू श्रोताओं पर ऐसा चलता कि वे उसमें विभोर हो जाते। गौरीकान्त चौधरी ‘कान्त’ के रेडियो नाटक श्रोताओं के बीच इतने लोकप्रिय होते कि उसके प्रसारण के अगले ही दिन से पुन: प्रसारण के लिए फरमाइशों का दौर शुरू हो जाता। उन्होंने श्रोताओं के लिए तीन सौ से अधिक रेडियो नाटक और संगीत रूपक लिखे। अपने लिखे रेडियो नाटक में मुख्य भूमिका में खुद होते। अपने लिखे संगीत रूपक के सूत्रधार भी स्वयं होते।

1993 में जब वे रेडियो की सेवा से रिटायर हुए, तो आकाशवाणी ने उन्हें संविदा पर ‘चौपाल’ में ‘मुखियाजी’ बने रहने का प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया। हिंदी और मैथिली में उन्होंने दर्जन भर से अधिक किताबें भी लिखीं। किताबों में चानन (कविता संग्रह), ताईचुंग बोल उठा (आंचलिक उपन्यास), पानक पात (कथा संग्रह), वंशी क्यो टेरय (कविता संग्रह) और विश्वामित्र (महाकाव्य) काफी लोकप्रिय हैं। आकाशवाणी से सेवानिवृति के बाद 1999 में बिहार सरकार ने उन्हें मैथिली अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया। अध्यक्ष पद पर रहते हुए 29 दिसंबर, 2001 को आवाज की दुनिया का महानायक इस दुनिया से विदा हो गया।

उनकी स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए उनके ज्येष्ठ पुत्र डॉ. लक्ष्मीकान्त सजल ने पैतृक गांव नीरपुर-मुजौना में उनकी कांस्य प्रतिमा लगायी है। इसके अनावरण समारोह में बिहार बिहार विधान परिषद में सत्तारूढ़ दल के उपनेता डॉ. नवल किशोर यादव, राज्य सभा सदस्य रामनाथ ठाकुर, विधान परिषद के सदस्य प्रो. गुलाम गौस, विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन, पूर्व मंत्री अशोक सिंह, ‘आज’ के स्थानीय संपादक दीपक पांडेय एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. दीनानाथ साहनी सहित लेखक, पत्रकार, कलाकार और समाजसेवी शामिल होंगे।