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सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट के अध्ययन में सामने आए ये तथ्य,


नई दिल्ली । कम तापमान और पराली का धुआं तो सर्दियों के सीजन में वायु प्रदूषण बढ़ाता ही है, स्थानीय कारक भी आग में घी का काम करते हैं। यह स्थिति भी अकेले दिल्ली-एनसीआर में नहीं बल्कि देशभर में देखने को मिल रही है। लचर सार्वजनिक परिवहन, खुले में कचरा जलाना और निर्माण कार्यों व सड़क किनारे से उड़ने वाली धूल प्रदूषण में इजाफे के सबसे बड़े कारण हैं। यह निष्कर्ष है सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) के उस अध्ययन का, जो पिछले छह-सात सालों के आंकड़ों को आधार बनाकर किया गया है। 2015 में पहली बार एयर इंडेक्स की गणना शुरू हुई।

2017 में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) लागू किया गया। सही तस्वीर सामने आने लगी तो प्रदूषण की रोकथाम के कदम भी उठाए जाने लगे। 2015 के बाद से बहुत खराब और गंभीर श्रेणी की हवा वाले दिन साल दर साल कम हुए हैं, जबकि तय मानकों (60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर ) के अनुरूप पीएम 2.5 वाले दिनों की संख्या में इजाफा हुआ है। -पीएम 2.5 के स्तर वाले दिन 2015 में 83 थे, जो 2021 में 151 रह गए हालांकि, 2020 में यह संख्या 174 थी -2017 में गंभीर श्रेणी वाले दिन 155 थे, जो 2021 में घटकर 91 रह गए-2015 से 2017 के दौरान पीएम 2.5 का औसत स्तर 103 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो 2019 से 2021 के दौरान 98 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पहुंच गया।