सम्पादकीय

स्वास्थ्य सेवाओंमें सुदृढ़ नर्स


योगेश कुमार सोनी  

पिछले वर्ष इंटरनेशनल नर्स-डे २०२० की थीमको नर्सिंग द वल्र्ड टू हेल्थ जो विश्व स्तरपर नर्सोंकी भूमिकाको मद्देनजर रखते हुए बनायी गयी थी। पूरी दुनियाके नर्सिंग स्टाफमें ९२ प्रतिशत महिला एवं आठ प्रतिशत पुरुष हैं। नर्सोंका योगदान हमेशासे सराहनीय रहा है लेकिन कोरोना कालमें दुनियाने इस पेशेकी ताकत, हौसले एवं मेहनतको बखूबी पहचाना। मेडिकल क्षेत्रमें डाक्टरोंकी भूमिका नायककी तरह मानी जाती है लेकिन धरातलपर उतरकर मरीजोंकी सेवा करनेका श्रेय नर्सिंग स्टाफको जाता है। उपचारके दौरान मरीजोंके पास ज्यादा समय नर्सिंग स्टॉफ ही रहता है और बीते वर्षसे लेकर अबतक यह लोग अपनी जानपर खेलकर जनताकी सेवा कर रहे हैं। यहां सेवा शब्दसे तात्पर्य है कि बशर्ते इनको अपनी कामका मेहनताना मिलता है लेकिन जब यह पता चल जाय कि जिस काममें जानका जोखिम बहुत ज्यादा है और बावजूद इसके आप मुस्कुराते हुए अपने कामको अंजाम दे रहे हो तो वह प्रशंसनीय माना जाता है। कोरोना कालमें कुछ जगह यह देखा गया कि डाक्टर विडियो कॉलपर स्थितिनुसार मरीजोंको दवा बताकर इलाज कर रहें हैं लेकिन नर्सिंग स्टाफका ऐसे काम नहीं चलता वह हर परिस्थितिमें डटकर अपना किरदारको बखूबी निभा रहे हैं।

भारत समेत एशियाई देशोंमें महिला नर्सको सिस्टर एवं पुरुषको ब्रदर भी बोलते हैं। इस बातको पूरी दुनियाने माना है कि समर्पण, होशियारी, अच्छा व्यवहार एवं इसके अलावा समयकी पाबंदी केवल यहांकी महिलाओंमें ही देखी जाती है। दक्षिण भारतमें यदि केरलकी बात की जाय तो यहां नर्सिंगकी पढ़ाईको बहुत महत्व दिया जाता है। केरलमें नर्सिंगकी पढ़ाई बहुत आम है और इसको बहुत पसंद किया जाता है। नर्सोंकी शिक्षाके आधारपर केरल सर्वाधिक साक्षरतावाला राज्य भी माना जाता है। यहांकी नर्सोंकी वजहसे हमारे देशको सम्मान मिलता है। बहुत कम लोगोंको यह पता होता है कि नर्सिंग स्टॉफकी सैलरी बहुत कम होती है लेकिन किसी भी स्थितिमें उनके चेहरेपर शिकन देखनेको नहीं मिलती। यह लोग मरीजसे लेकर उनके तीमारदारतक अपना व्यवहार ऐसी रखते हैं मानो वह उनकी घरके सदस्य ही हों। बीते वर्ष इनके आंकड़ोंपर नजर डाली थी जिसमें यह पता चला था कि वल्र्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन, इंटरनेशनल काउंसिल आफ नर्स और नर्सिंग नाउकी सयुंक्त रिपोर्टमें बताया गया है कि विश्वमें केवल लगभग दो करोड़ अस्सी लाख नर्स ही हैं। २०१३ और २०१९ के बीच नर्सिंगकी संख्यामें ४१ लाखकी वृद्धि हुई, लेकिन दुनिया अभी लगभग ५२ लाख नर्सिंग स्टॉफकी कमीसे जूझ रहा है। अफ्रीका, बेल्जियम, ब्रितानी, जर्मन एवं दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्य क्षेत्रके साथ लैटिन अमेरिकाके कुछ हिस्से नर्सिंग स्टाफकी भारी कमीसे अपना यहांकी स्वास्थ्य सेवाको बेहतर नहीं कर पा रहे हैं। यहां नर्सोंको एक शिफ्ट १२ घटोंसे भी अधिक होती है। आंकडोंके अनुसार दुनियाकी ७८ प्रतिशतसे अधिक नर्सें उन देशोंमें काम करती हैं, जिनमें दुनियाकी आधी आबादी रहती है इसके अलावा हर आठ नर्सोंमेंसे एक नर्स देशके अलावा किसी उस देशमें काम कर रही है, जहां वह रहनेवाली है या जहां उसने नर्सिंगकी शिक्षा प्राप्त की है। इस आंकड़ेके अनुसार जिन देशोंमें इस समय नर्सों कमी हैं उन देशोंको प्रति वर्ष औसतन आठ प्रतिशत नर्सोंकी संख्या बढ़ानी होगी, इससे प्रति वर्ष लगभग भारतीय करेंसीके हिसाबसे ७३४ रुपये प्रति व्यक्ति ही खर्च होगा।

दुनियाभरकी सरकारें नर्सिंगके क्षेत्रको आगे बढ़ाये रखनेके लिए प्रोत्साहित करती हैं लेकिन इनके लिए उतना काम नहीं किया जाता, जितना होना चाहिए। कोरोना कालमें नर्सोंकी गंभीरता समझते हुए पूरी दुनियाको यह समझना होगा कि इस शानदार पेशेको बढ़ानेके लिए इसको और बेहतर बनानेकी जरूरत है। अच्छी सैलरी एवं तमाम सरकारी सुविधाएं देनेकी जरूरत है। नर्सोंको सरकारी सुविधाके नामपर कुछ नहीं मिलता और प्राइवेट सेक्टरमें काम करनेवाली नर्सोंको तो किभी प्रकारका लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। जबकि यहां हर नर्सको समानपटलपर एक जैसी सुविधा देनेकी आवश्यकता है। हमारे देशमें सरकारी अस्पतालोंकी नर्सोंकी सैलरी फिर भी सम्मानजनक हैं लेकिन प्राइवेट अस्पतालोंमें काम करनेवाले नर्सिंग स्टॉफको बहुत कम पैसा मिलता है। अधिक संस्थानोंमें दस हजारसे बीस हजार रुपयेतक ही वेतन मिलता है। यदि महानगरोंकी बात करें तो यह लोग बेहद कठिनाइयोंके साथ जीवन-यापन करते हैं। कुछ लोग तो रंग एवं भाषाकी वजहसे इनका मजाक भी बनाते हैं लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि जिस आधारपर आप डाक्टरको भगवान कहते हैं यह उन ही भगवानका सबसे बड़ा आधार यह लोग होते हैं। संघर्ष, तपस्या, मेहनत एवं ईमानदारीका पर्यायवाची यह पेशा किसी भगवानके रूपसे कम नहीं। बहुत कम लोगोंके पास यह जानकारी होगी कि कोरोना कालमें मेडिकलके क्षेत्रमें अबतक जितनी मौतें हुई हैं उसमें आधीके लगभग नर्सिंग स्टॉफ भी शामिल है। कोरोनाकी दूसरी लहरमें स्थिति कितनी भयावह है फिर भी यह लोग अपने कामको ही पूजा मानकर कर रहे हैं। लेकिन कुछ निजी अस्पतालोंमें इनके प्रति अमनावीय व्यवहार देखा गया। एक नर्सको कोरोना हो गया था और वह जिस अस्पतालमें काम कर रही थी, उपचारके दौरान उसकी वहीं मौत हो गयी और अस्पतालने उसके परिजनोंसे पूरा पैसा वसूल करके तब उसकी बॉडीको सौंपा। ऐसी ही घटनाको ध्यानमें रखनेकी जरूरत है कि नर्सिंग स्टाफको एक ऐसी गारंटी देनेकी जिससे इस पेशेसे प्रभावित होकर आनेवाले पीढिय़ां इस ओर रुचि लें। यदि कमेटी करके इनके लिए कोई ऐसी रणनीति बन गयी तो निश्चित तौरपर दुनियाभरमें नर्सोंकी कमी खत्म होगी एवं स्वास्थ्य सेवाओंमें भी सुदृढ़ होगी। समयके रहते यदि चीजोंकी गंभीरता समझी जाय तो बेहतर होता है और इस समय नर्सिंग स्टाफको लेकर भी ऐसी स्थिति है चूंकि जिस तरह कोरोनाने पूरी दुनियाको अपनी जदमें ले लिया तो इस आधारपर कठिन समयके लिए तैयार रहना होगा।