सम्पादकीय

हस्तक्षेपसे इनकार


सर्वोच्च न्यायालयने विगत २६ जनवरीको गणतंत्र दिवस समारोहके दौरान दिल्लीमें हुई हिंसा और राष्ट्रीय ध्वजके अपमानके मामलोंकी न्यायिक जांच करनेसे इनकार कर दिया है और स्पष्ट शब्दोंमें कहा है कि सरकारको उचित काररवाई करने देना चाहिए। बुधवारको न्यायिक जांच करानेकी मांग करनेवाली जनहित याचिकाओंपर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रह्मïण्यमकी पीठका यह भी कहना है कि सरकार मामलेकी जांच कर रही है और कानून अपना काम करेगा। शीर्ष न्यायालयमें दाखिल याचिकाओंमें कहा गया है कि पूरे मामलेकी जांचके लिए सर्वोच्च न्यायालयके सेवानिवृत्त न्यायाधीशकी अध्यक्षतामें उच्च न्यायालयके दो न्यायाधीशोंका तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित होना चाहिए। साथ ही हिंसा और तिरंगे ध्वजके अपमानके लिए जिम्मेदार व्यक्तियोंके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी जाय। उल्लेखनीय है कि गणतन्त्र दिवसके दिन किसानोंकी ट्रैक्टर रैली बेकाबू हो गयी थी और आईटीओसे लालकिलेतक जमकर हंगामा हुआ था। इस घटनासे पूरा देश शर्मसार हो गया और सर्वत्र इसकी निन्दा भी की गयी। स्वतन्त्र भारतके इतिहासमें किसी राष्ट्रीय पर्वपर ऐसी घटनाएं पहले कभी नहीं हुई थीं। यह बात सही है कि केन्द्र सरकार इस दुखद घटनाके लिए जिम्मेदार लोगोंके खिलाफ सख्त काररवाई कर रही है और इसके अच्छे परिणाम आनेकी सम्भावनाएं भी बढ़ी हैं। जांच कार्यमें समय भी लगना स्वाभाविक है। ऐसी स्थितिमें सर्वोच्च न्यायालयका यह कथन उचित है कि  पहले सरकार अपना कार्य करे। कानूनको अपना कार्य करने देना चाहिए। शीर्ष न्यायालय न्यायिक जांचके मामलेमें अभी हस्तक्षेप करना उचित नहीं मानता है। वैसे न्यायिक जांचकी मांग करनेवालोंके तर्क भी कमजोर नहीं हैं। न्यायिक जांचमें निष्पक्षताका पक्ष काफी मजबूत होता है और लोगोंका ऐसी जांचके प्रति विश्वास भी अधिक होना स्वाभाविक है। यदि केन्द्र सरकार निष्पक्षता और पारदर्शिताके साथ त्वरित गतिसे जांच और अन्य आवश्यक कार्य करती है तो उसके लिए सरकारको पूरा अवसर दिया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालयने इस सम्बन्धमें प्रधान मन्त्रीके बयानोंको भी संज्ञानमें लिया है। इसलिए सरकारको फिलहाल अपना कार्य करने देना चाहिए।

इंसानियतकी मिसाल

कभी आंसू गैसके गोले, कभी लाठीचार्ज, कभी प्रदर्शनके बीच पानीकी बौछार तो कभी ट्रैफिकपर नोंकझोंक अक्सर पुलिसको लेकर ऐसी ही तस्वीरें सुर्खियां बनती हैं, लेकिन आन्ध्रप्रदेशके श्रीकाकुलम जिलेसे ऐसी तस्वीर सामने आयी है, जो पुलिसकी बनी छविपर मानवताका गहरा रंग पोत देती है, आंखे नम हो जाती हैं और सम्मानमें पलकें झुक जाती है। श्रीकाकुलम जिलेमें तैनात महिला उप निरीक्षक के. शिरीशाने कर्तव्यनिष्ठा और मानवताका ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसके बाद हर कोई उसके जज्बेको सलाम कर रहा है। जिस लावारिस शवको छूनेसे हर कोई घबरा रहा था, उसे उस महिला दरोगाने न केवल अपने कंधेपर रखकर दो किलोमीटरतक ले गयी, बल्कि उसका अन्तिम संस्कार भी अपने हाथोंसे किया। इंसानियत और मानवता सबसे बड़ा धर्म है लेकिन आज निजी स्वार्थोंके आगे जहां संवेदनाएं दम तोड़ रही हैं, वहीं महिला दरोगाकी कर्तव्यनिष्ठाने यह साबित किया है कि इंसानियत आज भी कायम है। श्री काकुलम जिलेके पलासा कासीबुग्गाके आदिविकाट्टूर गांवमें एक खेतमें अज्ञात वृद्धकी लाश पड़ी थी। यह सूचना जब महिला दरोगाको हुई तो वह वहां पहुंची। शव गांवके खेतोंके पास था और वहांतक वाहन ले जानेका कोई मार्ग नहीं था। महिला दरोगाने स्थानीय लोगोंसे शवको पुलिस वाहनतक पहुंचानेके लिए मदद मांगी लेकिन कोई भी ग्रामीण आगे नहीं आया। ग्रामीणोंके शवको हाथ लगानेसे इनकार करनेपर महिला पुलिसकर्मीने लाशको अपने कंधोंपर उठा लिया और शव लेकर न केवल दो किलोमीटरका सफर पूरा किया, बल्कि उसका अन्तिम संस्कार भी सम्पन्न कराया। आज लोग विलासितापर हजारों, लाखों रुपये पानीकी तरह बहा देते हैं लेकिन किसीको एक रोटी नहीं खिला सकते, जबकि मानव सेवा ही नारायण सेवा है। यह अटल सत्य है। ऐसेमें महिला दरोगाकी कर्तव्यनिष्ठा प्रेरणा देनेवाली है। उसके जज्बेको शत-शत सलाम।