दोनों हाथ गंवा कर भी फुलवारी की बेटी ने जीते कई कप और मेडल
फुलवारीशरीफ। महज नौ साल में एक हादसे में अपने दोनों हाथ गंवा चुकी मासूम बच्ची तनु अब 15 बरस की हो चुकी है और दोनों कटे हाथों के बदले अपने पैरों से लिखकर तक़दीर बदलने के लिए वेताब है। लोग हाथों की उंगलियों के सहारे भविष्य के सपने बुनते हैं, लेकिन हाथ हादसे में गंवा चूंकि तनु अपने पैरों की उंगलियों के सहारे कई मेडल जीतकर अपने ऊंचे हौसले को साबित कर रही है। छोटी-सी उम्र में अपने दोनों हाथ गंवा चुकी तनु ने वह कर दिखाया है, जिसके लिए मजबूत कलेजे वालों का हौसला भी जवाब दे जाये।
तनु की मां शोभा देवी ने बताया कि तनु कुमारी अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और काफी हद तक अपनी दिनचर्या खुद ही पूरा करती है। पढ़ाई-लिखाई से समय बचने के बाद तनु अपने छोटे भाई-बहनों को भी पढऩा-लिखना सिखाती है। इतना ही नहीं पढ़ाई से समय निकालकर तनु खेल-कूद और पेंटिंग में भी अपने हुनर दिखाती है। बच्ची के पिता अनिल कुमार ने कहा कि अगर सरकार के तरफ से कुछ आर्थिक मदद मिल जाती है, तो बेटी का भविष्य बेहतर हो जाता।
पटना के फुलवारीशरीफ राष्ट्रीयगंज इलाके में रह रही, बच्ची तनु के परिवार और आसपास के लोगों ने बच्ची के हौसले को हमेशा बढ़ाते रहे, जिससे आज वह अपने पैरों को हाथ बनाकर अपनी तकदीर लिखने में आसमान को भी मुंह चिढ़ा रही है। बच्ची के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह उसके सपनों को उड़ान दे सकें। अब तो बस सरकार की नजरें इनायत की दरकार है, ताकि तनु अपने तक़दीर संवार सके। सरकारी मदद के अभाव में तनु और उसका परिवार गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर है।
परिवार में पिता अनिल पेठिया बाजार में गुड़ बेचकर घर चलाते हैं। इनकी बच्ची तनु जब 9 साल की थी, तो करंट प्रवाहित रॉड को पकड़ ली, जिससे बुरी तरह मासूम बच्ची के दोनों हाथ झुलस गये थे। इसके इलाज में डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया और दोनों हाथ काटने पड़ गये। इस घटना के बाद तनु गहरे सदमे में चली गयी और उसके परिवार वाले भी बच्ची का हौसला बनाये रखने के लिए कुछ नहीं कर पा रहे थे।
जब जिंदगी गुमनामी में गुम होने जा रही थी और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। अब आगे की जिंदगी कैसे कटेगी और कैसे वह पढ़-लिख सकेगी। दूसरे बच्चों को खेलते-कूदते और लिखते-पढ़ते देख तनु ने अपने पैरों को अपना भविष्य संवारने के लिए हाथों की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मासूम-सी जान में हौसलों ने पंख लगने शुरू हो गये। तनु ने हार नहीं मानी और हाथ के बदले पैर को ही अपना हाथ बना लिया।
तनु बताती है कि जब उसके करंट से हाथ जले थे, तो वह क्लास 4 में पढ़ती थी और आज पैरों के सहारे पढ़ाई करने लगी। अगले साल फरवरी में होने वाली मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी कर रही है। गांव आने के बाद भी तनु ने हार नहीं माना और अपनी जिंदगी को फिर से शुरू करने की ठानी। पढ़ाई के साथ-साथ लगातार खेलकूद में भी अपना जौहर दिखाती रही। अपने साहस के बूते तनु ने पटना के गर्दनीबाग स्कूल से कई प्रतियोगितायों में कई मेडल और शील्ड जीते। जिनमें जलेबी दौर, पेंटिंग आदि शामिल रहे। तनु का कहना है कि वह अपना पूरा ध्यान मैट्रिक की परीक्षा में अच्छे अंकों से पास करने पर लगाये हुई है।