सम्पादकीय

हिंसक घटनाओंपर उदासीनता


 विष्णुगुप्त        

लंबे समयसे बिहारमें आईएसआईकी दिलचस्पी रही है, आईएसआईका खतरनाक नेटवर्क रहा है, आईएसआईने बिहारमें अपने मोहरे और गुर्गे पाल रखे हैं जिनका काम बिहारमें आतंकवादको फैलाना, धर्म परिवर्तन कराना है। पुर्णिया जिलेके मझुवा गांवमें गत १९ मईको भीड़ हमला कर देती है। इसमें दलितोंके ५० से अधिक घरोंको जलाकर राख कर दिया जाता है, दर्जनों दलित महिलाओंको पीट-पीटकर अधमरा कर दिया जाता है, बच्चोंको भी मार-मार कर घायल कर दिया जाता है, एक दलितकी सरेआम हत्या कर दी जाती है। हमलेमें दलितोंकी पूरी बस्तीको आगके हवाले कर स्वाहा कर दिया जाता है, बस्तीसे दलितोंको खदेड़ दिया जाता है। दलितोंको पूरी बस्तीको आग लगाकर स्वाहा कर देने और एक दलितकी हत्या कर देनेकी यह घटना कोई छोटी घटना नहीं थी। थोड़े देरके लिए सोचिये कि यदि ऐसी घटनाएं मुस्लिम आबादीके साथ घटती तो क्या होता? बिहार सरकार और भारत सरकार, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट किस प्रकारसे लाल-पीला होता। तमाम बुद्धिजीवी किस प्रकारसे आग उगलते, कम्युनिस्ट किस प्रकारसे नाचते-नाचते दिल्लीसे पूर्णियाके मझुवा गांव पहुंच जाते। पाकिस्तानकी मीडिया किस प्रकारसे अपना एजेंडा तय करता और हिंसक सक्रियता दिखाता, संयुक्त राष्ट्रसंघ सहित दुनियाकी सभी मानवाधिकार संघटन भारतके खिलाफ आग उगलते और भारतको एक खतरनाक देश घोषित करते, भारतको मुस्लिम आबादीकी सुरक्षा प्रदान करनेकी नसीहत भी देते, इसका अंदाजा आप लगा देते। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि मुस्लिम हमलेमें पीडि़त होनेवाले अपना सबकुछ गंवानेवाले लोग हिन्दू थे। इसलिए इनकी आवाज किसीने नहीं सुनी। बिहार सरकारसे लेकर दुनियाको नियंत्रित करनेवाले संघटन खामोश रहे।

इधर कुछ दिनोंमें बिहारमेें बम विस्फोटकी कई घटनाएं घटी हैं। इसकी सुई पाकिस्तान, बंगलादेश और अरबतक घूमती है। दरभंगाके रेलवे स्टेशनपर कई बम विस्फोट हुए। दरभंगा रेलवे स्टेशनपर बम विस्फोटकी घटना देशकी सुरक्षा एजेसिंयोंकी नींद उडानेवाली थी। यदि ऐसी घटना रेलवे स्टेशनसे बाहर होती तो फिर उस घटनाको बिहार सरकार दबा देती, उसपर पर्दा डाल देती। चूंकि बम विस्फोटकी घटना रेलवे स्टेशनपर हुई थी, इसलिए केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसियोंकी नींद हराम हुई। एनआईएने जब जांच शुरू की तब देशकी सुरक्षाके प्रति कितनी बड़ी साजिश रची गयी थीे, इसकी जानकारी मिली। एनआईएने उत्तर प्रदेशके कैरानासे कई लोगोंको गिरफ्तार किया। पकडे गये आतंकवादी आईएसआईके संपर्कमें थे। बिहारके बांका जिलेमें एक मस्जिद और मदरसेमें हुई बम विस्फोटकी घटनामें कई लोग घायल हुए और मुख्य आरोपी मौलवी खुद मारा गया। यह बम विस्फोट इतना घातक था कि मस्जिद और मदरसेकी छत उड़ गयी थी। कहा यह जाता है कि मस्जिद और मदरसेमें बम बनाने और हिंसाका प्रशिक्षण दिया जा रहा था। आईएसआईकी गुर्गे युवकोंको मस्जिद और मदरसेमें बम विस्फोट और अन्य हिंसक घटनाओंको अंजाम देनेके लिए प्रशिक्षण देते थे। यह बम विस्फोटकी घटना भी काफी सुर्खियां बटोरी थी। बम विस्फोटके दिनसे ही पुलिस इस घटनापर पर्दा डालनेका काम करती रहीं। परन्तु जब इस बम विस्फोटकी घटना काफी चर्चित हुई तब पुलिस थोड़ी सक्रिय हुई। परन्तु नतीजा कुछ भी नहीं निकला। यदि बिहार सरकार इस घटनाकी जांच एनआईएसे कराती तो फिर अपराधी और देशविरोधी साजिशमें लगे मुस्लिम आतंकवादियोंकी गर्दन मरोड़ी जा सकती थी।

परन्तु नीतीश कुमार अपनी सत्ताके लिए कट्टरपंथियोंको संरक्षण दिया है। नीतीश कुमारको वह बयान कौन भूल सकता था जिसमें उन्होंने एक आतंकवादीको बिहारकी बेटी कहा था। बिहारमें पिछले कई सालोंसे आईएसआई जड़ जमा चुकी है। मुबंईके आजाद मैदानमें शहीद जवान ज्योतिको तोडऩेवाला बिहारसे ही पकडा गया था, बिहारसे आईएसमें शामिल होनेके लिए सीरिया जानेका प्रयास करनेवाली महिलाकी कहानी भी जगजाहिर है। म्यांमारके विरोधमें बौद्ध समुदायको सबक सिखानेकी नीयतसे बम विस्फोट करनेकी बहुत बड़ी साजिश भी बिहारमें हो चुकी है। सबसे खतरनाक बात यहां ओवैसीकी सक्रियता की है। पिछले बिहार विधानसभा चुनावोंमें बिहारसे ओवैसीकी पार्टीको पांच सीटें मिली थी। ओवैसीके पाच विधायक उन्हीं क्षेत्रोंसे जीते थे जिन क्षेत्रोंमें रोहिंग्याओं और बंगलादेशी मुसलमानोंको एक साजिशके तहत बसाया गया है। फिर भी नीतीश कुमार सचेत नहीं हैं और कट्टरपंथको संरक्षण देनेका कार्य कर रहे हैं।