मुंबई। महाराष्ट्र में नई सरकार बने 33 दिन हो चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री शिंदे अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक मामलों पर लंबित मामलों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसके पक्ष में आएगा, यह उन्हें भी मालूम नहीं है। यही कारण है कि मंत्रिमंडल विस्तार अटका हुआ है। शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने शिंदे गुट के 16 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाल रखी है। शिंदे और उद्धव गुट ने चुनाव चिह्न धनुष-बाण पर दावा करते हुए भी चुनाव आयोग के सामने आवेदन कर रखा है। उद्धव गुट के वकील कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की इस सुनवाई पर भी रोक लगाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है। इन सभी मामलों पर तीन अगस्त को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर सकता है। लेकिन जरूरी नहीं कि वह कल ही इन मामलों पर फैसला भी सुना दे।
यदि सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला नहीं सुनाता तो महाराष्ट्र में असमंजस की स्थिति भी बरकरार रहेगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में लंबित करीब आधा दर्जन याचिकाएं न सिर्फ महाराष्ट्र का राजनीतिक भविष्य तय करनेवाली हैं, बल्कि भविष्य के लिए कुछ नए मानदंड भी तय करनेवाली हैं। माना जा रहा है कि शिंदे गुट ने महाराष्ट्र विधानमंडल एवं लोकसभा में दो तिहाई का आंकड़ा भले अपने पक्ष में जुटा लिया हो, लेकिन दलबदल कानून की अनुसूची 10 के अनुसार उन्हें असली शिवसेना होने की मान्यता और चुनाव चिह्न मिलना आसान नहीं है।
हाल ही में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने पार्टी मुखपत्र सामना को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि पहले दो तिहाई विधायकों के साथ अलग गुट स्थापित करना संभव था। अब वह कानून रद हो गया है। अब सिर्फ सदन में दो तिहाई संख्या के भरोसे अलग गुट की स्थापना संभव नहीं है। इसके लिए शिंदे गुट के विधायकों को किसी अन्य दल में शामिल होना पड़ेगा। तब वे खुद को शिवसेना का विधायक या सांसद नहीं कह पाएंगे। उद्धव ने जिस कानून का उल्लेख किया है, यदि सर्वोच्च न्यायालय ने उसी के अनुसार फैसला सुनाया, तो शिंदे गुट की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। ऐसी स्थिति में अपनी सदस्यता बचाने के लिए उनके पास किसी और दल में शामिल होने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचेगा।
बागी विधायक यह रास्ता अपनाना चाहें तो उनके पास दो विकल्प हैं। पहला कथित तौर पर उन्हें अब तक पर्दे के पीछे से समर्थन देती आ रही भारतीय जनता पार्टी और दूसरा शिंदे गुट का साथ देते आ रहे विधायक बच्चू कड़ू की प्रहार पार्टी। यह रास्ता आसान जरूर है लेकिन इसे अपनाने से पहले भाजपा को भी तात्कालिक लाभ के साथ-साथ भविष्य के भले-बुरे का ध्यान रखना होगा। यानी शिवसेना के जिन 40 विधायकों को वह अपने साथ विलय कराएगी, उनके क्षेत्रों में भाजपा संगठन एवं इन्हीं विधायकों के खिलाफ चुनाव लड़े अपने प्रत्याशियों की नाराजगी का खतरा उसके सामने भी बना रहेगा। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को यह कदम उठाने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा।
विलय के रास्ते पर दूसरा विकल्प बच्चू कड़ू की प्रहार पार्टी अथवा इन दिनों भाजपा के कुछ नजदीक दिख रही राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का है। प्रहार पार्टी के अध्यक्ष बच्चू कड़ू अब तक महाविकास आघाड़ी सरकार में मंत्री थे। वे शिवसेना के कोटे से ही मंत्री बने थे।
सवाल यह है कि शिवसेना के 40 बागी विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करने के बाद बच्चू कड़ू क्या शिंदे को अपना नेता मानने को तैयार होंगे। विलय के रास्ते में तीसरा विकल्प मनसे का है। कुछ दिनों पहले ही उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राज ठाकरे से मिलकर भी आए हैं। लेकिन मनसे सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री शिंदे की राज ठाकरे के साथ बहुत अच्छी केमिस्ट्री नहीं है। ऐसे में शिंदे राज ठाकरे को अपना नेता मानेंगे, इसमें संदेह है