तारकेश्वर मिश्र
धारा ३७० हटनेके बाद तीसरा मौका है जब सरकारने २४ विदेशी राजनयिकोंको जम्मू-कश्मीरका दौरा करवाया। राजनयिकोंने स्थानीय स्तरसे लेकर सेना, सुरक्षा बलों और पुलिसके जरिये सुरक्षा-व्यवस्थाकी थाह ली।
अक्तूबर २०१९ में यूरोपीय देशोंके प्रतिनिधिमंडलने घाटीका दौरा किया था और विपक्षने इसे गाइडेड टूर बताया था। पिछले साल ९ जनवरीको नयी दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत समेत १६ विदेशी राजनयिकोंने घाटीका दौरा किया था और इसके बाद १२ फरवरी २०२० को २५ विदेशी राजनयिकोंका दूसरा प्रतिनिधिमंडल भी जम्मू-कश्मीरका दौरा कर चुका है। पहलेके दोनों दौरेका आयोजन केंद्र सरकारने किया था। अगस्त २०१९ में विशेष राज्यका दर्जा हटाये जानेके बाद विदेशी राजनयिकोंका यह तीसरा आधिकारिक दौरा था। विपक्ष सवाल कर रहा है कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं ले जा रही है। गौरतलब है कि ओआईसीके महासचिवकी विदेश मंत्रियोंकी परिषदके ४७वें सत्रमें रखी गयी रिपोर्टमें जम्मू-कश्मीरकी स्थितिका जिक्र किया गया था और कहा गया था, क्षेत्रके जनांकिक और भौगोलिक समीकरणको बदलनेकी दिशामें पांच अगस्त २०१९ का भारत सरकारके फैसले और लगातार बाधित गतिविधियों और जारी प्रतिबंधों तथा मानवाधिकारोंके उल्लंघनने अंतरराष्ट्रीय समुदायको नये प्रयासोंके लिए जागृत किया है। भारतने हालांकि, पाकिस्तानका नाम लिये बिना कहा था कि यह दुखद है कि ओआईसी एक ऐसे खास देश द्वारा खुदके मंचका लगातार इस्तेमाल होने दे रहा है जिसका धार्मिक सहिष्णुता, कट्टरपंथ, अल्पसंख्यकोंके दमन, भारत विरोधी दुष्प्रचार करनेका बेहद खराब रिकॉर्ड है।
वहीं जम्मू-कश्मीरमें हालमें हुए विदेशी प्रतिनिधियोंके दौरेको लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। अब परराष्टï्र मंत्रालयकी ओरसे इन सभी सवालोंका जवाब दिया गया है। परराष्टïर मंत्रालयकी ओरसे कहा गया है कि इस दौरेका मकसद जम्मू-कश्मीरमें जमीनी स्तरपर हो रहे बदलावको दिखानेका था। परराष्टï्र मंत्रालयने जानकारी दी है कि नयी दिल्लीमें मौजूद कुल २४ विदेशी हेड आफ मिशनने १७-१८ फरवरीको जम्मू-कश्मीरका दौरा किया था। इनमें बंगलादेश, बेल्जियम, ब्राजील, नीदरलैंड, इटली, फ्रांस, फिनलैंड, स्पेन जैसे देशोंके प्रतिनिधि भी शामिल थे। इससे पहले भी दो ग्रुपोंने इसी तरहका दौरा किया हुआ है। परराष्टï्र मंत्रालयका कहना है कि लोगोंमें जम्मू-कश्मीरकी ताजा स्थितिको जाननेके लिए उत्सुकता है यही कारण है कि प्रतिनिधियोंको वहांकी सचाई बतानेके दौरा किया गया। अपने दौरेमें इन प्रतिनिधियोंने श्रीनगर, बडगाम और जम्मूका दौरा किया। परराष्टï्र मंत्रालयके मुताबिक, इस दौरान प्रतिनिधियोंने जम्मू-कश्मीरके आम लोगोंसे भी बात की। इसके अलावा श्रीनगरमें प्रतिनिधियोंने हालके चुनावमें जीते हुए लोगोंसे भी मुलाकात की। अपने दौरेके अंतमें विदेशी राजनयिकोंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हासे भी मुलाकात की थी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि धारा ३७० को हटानेके बादसे कश्मीरमें हालात तेजीसे बदले हैं। कश्मीरमें पर्यटक लौट रहे हैं, यह बीती सर्दियों, बर्फबारी और मौजूदा मौसममें भी सैलानियोंकी चहल-पहलसे सत्यापित होता है। अब पाकिस्तानके आह्वानपर कश्मीर घाटीके बाजार, डल झीलके शिकारे और आम कारोबारी गतिविधियां बंद नहीं की जातीं। बेहद सुखद है कि करीब ३१ सालोंके बाद शीतलनाथ भैरव मंदिरके कपाट खुले हैं, आरतीके सुर ध्वनित हो उठे हैं और घंटेकी आवाज आस्थाकी नयी चेतना जगा रही है। जम्मू-कश्मीरमें सरकारी भर्तियां जारी हैं। नौजवानोंमें हौसला है और वह सेना तथा पुलिसका हिस्सा बनकर बचे-खुचे आतंकवादका अस्तित्व मिटा देना चाहते हैं। बेशक जम्मू-कश्मीरमें सब कुछ सामान्य नहीं है। लोकतंत्रमें सामान्य हालात होना असंभव है, क्योंकि विरोधकी आवाजें बुलंद रहती हैं। सरकार और प्रशासनके स्तरपर कुछ विसंगतियां भी हो सकती हैं। जम्मू-कश्मीरसे अनुच्छेद ३७० के तहत विशेष दर्जा खत्म किये जानेके मुद्देको पाकिस्तान कई विदेशी मंचोंपर उछाल चुका है। हालांकि, उसे अबतक सफलता नहीं मिली है।
करीब १८ महीने बाद बीते दिनों जम्मू-कश्मीरमें ४जी इंटरनेट सेवा बहाल हुई थी, जिसकी लंबे समयसे नागरिक समाजके लोग, छात्र, व्यापारी और पत्रकार मांग करते आ रहे थे। सरकारने ५ अगस्त २०१९ को इंटरनेट सेवा बंद कर दी थी। इसी दिन केंद्रने राज्यका विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। जम्मू-कश्मीरके दो जिलों गांदरबल और उधमपुरको छोड़कर राज्यमें मोबाइल इंटरनेटपर रोक लगी हुई थी। हालांकि पिछले सालकी शुरुआतमें २जी इंटरनेट सेवा बहाल कर दी थी। जमीनी सचाई यह है कि जम्मू-कश्मीरका जीडीपी अभी पटरीपर नहीं लौटा है, लेकिन आर्थिक नुकसान करीब १६ फीसदी घट गये हैं। सबसे अहम यह है कि मोदी सरकार भी कश्मीरी पंडितों और हिंदुओंका पुनर्वास नहीं कर सकी है। वह अब भी जम्मूमें स्थापित शिविरोंमें रहनेको विवश हैं या राजधानी दिल्ली समेत कुछ अन्य बड़े शहरोंमें बसे हैं। यह सरकारी दावा है कि सरकार हिंदू परिवारोंको आर्थिक मदद दे रही है। कश्मीरी पंडित और हिंदू इस्लामी जेहाद और सरकारी लीपापोती, वादाखिलाफीके बीच पिस रहे हैं। फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि जो कश्मीर बदल रहा है, नये भारतका जो नया कश्मीर उभर रहा है, क्या भारत सरकार उसपर विदेशी राजनयिकोंके सर्टिफिकेट लेना चाहती है?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विदेशी राजनयिकोंकी आम नागरिकोंसे कितनी मुलाकातें ऐसे प्रवासके दौरान होती हैं, यह किसीसे छिपा नहीं है। सरकारी पक्ष कुछ भी दावे करता रहे। सवाल यह है कि क्या यह विदेश नीति और कूटनीतिका हिस्सा था? भारतपर उसके विरोधी मानवाधिकार हननके जो आरोप लगाते रहे हैं और संयुक्त राष्ट्रके स्तरपर भी ऐसे आयोगकी टिप्पणियां हम झेलते रहे हैं, क्या यह राजनयिक भारतके प्रवक्ता बनकर दुनियाभरमें हमारी असलियतका खुलासा और पैरोकारी करेंगे? क्या इनसानके मूल अधिकारोंका प्रमाण-पत्र इन देशोंसे ही भारतको मिलेगा? क्या इन देशोंमें मानवाधिकार बिल्कुल सुरक्षित हैं? कश्मीर हमारा है और रहेगा। जैसे भी हालात हैं, हम सभी मिल-जुलकर उन्हें बेहतर बनायंगे। कश्मीरका विदेशीकरण किया जाय अथवा विदेशी राजनयिकोंके जरिये अपनी बात कहनी पड़े, यह हमें भारतके पक्षमें नहीं लगता। सरकारकी कोशिश है यह जतानेकी है कि कश्मीर घाटीमें सामान्य हालात तेजीसे पटरीपर लौट रहा है। हालांकि विपक्ष सरकारसे सवाल कर रहा है कि वह कश्मीरके मुद्देका अंतरराष्ट्रीयकरण क्यों कर रही है और विदेशी राजनयिकोंके दलको वहां क्यों ले जाना चाहती है। असदुद्दीन ओवैसीने लोकसभामें पिछले दिनों सवाल किया कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल घाटी क्यों नहीं ले जाती।