सम्पादकीय

कोरोनाकालमें सनातन जीवन पद्धतिकी ओर विश्वकी नजर


अशोक ‘प्रवृद्’

जंजंगलों, पहाड़ों, नदी-नालों, सडकें, आकाश, समुद्र और समस्त संसारको अपना समझनेवाला संसारका सर्वाधिक शक्तिशाली जीव मनुष्य आज एक छोटेसे दिखाई नहीं पडऩेवाले सूक्ष्म जीवसे डरकर घरोंमें कैद होनेको विवश है। इतना सूक्ष्म कि सूक्ष्मदर्शीसे भी दिखाई नहीं पडऩेवाले एक छोटे, महीनसे विषाणु अर्थात वायरसने अमेरिका, चीन, इटली, उत्तर कोरिया सहित समस्त विश्वको घरमें दुबकनेको विवश कर दिया और सम्पूर्ण विश्वकी अर्थव्यवस्थाको घुटनोंपर ला खड़ा कर दिया। भले ही अब लोगोंका भय इस सूक्ष्म विषाणुके प्रति कम होने लगा है और कोरोनारोधी टीकाएं भारत सहित कई देशोंमें निर्मित कर लोगोंको दी जाने लगी हैं, परन्तु कुछ कालके लिए तो गांव, कस्बे, शहर, घर-दूकान, बाग-बगीचा, क्रीडास्थल, बस, ट्रेन हवाई जहाज सब कुछ बंदप्राय हो गये थे। पाश्चात्य विज्ञान लाचार, बड़ी वाहनें खड़ी, आलीशान महंगे भवन खाली, धर्मस्थल बंद, धार्मिक क्रिया-कलाप बंद और दुनियाके प्रत्येक धर्मका अनुयायी मास्क लगाकर रहमकी भीख मांगने लगा, सभी प्रकारके ढोंगकी पोल खुल गयी और सबकी अकड़की हवा निकल गयी। आज भी स्थितिमें कोई खास बदलाव नहीं आया है और लोग सावधानी बरतते हुए अहतियातसे जीवन जीनेको अभिशप्त हैं। लाख सावधानीके बावजूद इस महामारीके दूसरे लहरने भारत सहित सम्पूर्ण विश्वको एक बार पुन: सोचनेपर विवश कर दिया है । ऐसा लगता है जैसे कि मानव द्वारा निर्मित सभी कृत्रिम सुख एवं आरामके तरीके इस महामारीके समक्ष परास्त हैं और यह सूक्ष्म-सा विषाणु कोरोनारोधी टीका बाजारमें आ जानेके बाद भी लाशें गिनवा रहा है, दूसरी ओर इन्सान द्वारा आविष्कृत सम्पूर्ण विज्ञानकी ताकत खड़े-खड़े उस विनाश लीलाको देखनेके लिए अभिशप्त नजर आ रहा है। अधिकांश जन दृश्य-श्रव्य माध्यमोंपर नित दिन होनेवाली कवायदोंको देखनेमें दिन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन यह आखिर कबतक चलेगा। यदि अब भी हमने प्रकृतिसे अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी अर्थात सनातन प्रकृतिके विरुद्ध जीवन जीनेकी अपनी आदत नहीं छोड़ी तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी मृत्युपर मृत्योपरान्त की जानेवाली सनातन कर्म करनेके लिए भी लोग नहीं बचेंगे।

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस एक निर्जीव पदार्थ है। वह वायरस प्रकृतिमें घटनेवाले नियमोंके अनुसार छूतका रोग बनकर वायरसके सम्पर्कमें आनेवाले लोगोंको रोगका शिकार बनाता है। इस प्रकार संक्रमित हुए लोगोंका जीवन खतरेमें पड़ जाता हैं। टीका उपलब्ध होनेके बावजूद आज भी रोगके लक्षणोंके अनुसार इन्फैक्शन दूर करनेकी औषधियां दी जा रही हैं। कुछ लोगोंको उनकी शारीरिक शक्ति, सामथ्र्य व इम्यूनिटी के अनुरूप लाभ भी हो रहा है। वर्तमान संसार में प्रचलित चिकित्सीय पद्धतियों और इलाजके तरीकोंसे इलाजकी उपलब्धताके बाद भी इस वैश्विक महामारीको लम्बी अवधितक चकमा नहीं दिया जा सकता है। यह परम सत्य है कि जबतक हम समस्त संसारको अपना मानते हुए इस चराचर जगतमें निवास करनेवाले सभी जीव-जन्तुओंको अपना समझकर उससे प्राकृतिक लगाव अनुभव नहीं करेंगे, तबतक प्रकृति भी हमें अपना समझ हमसे लगाव नहीं करेगी और हमसे दुश्मनागत निभायगी ही, वह अपना बदला लेगी ही और झटकेमें मानवके अहंकार, इन्सानके गुरुर को तोड़ेगी ही, इसमें कोई शक नहीं। क्योंकि प्रकृति भी भला अपने दुश्मनको अपना क्यों समझेगी। सम्पूर्ण संसारमें त्राहिमाम मचानेवाली कोरोना वायरसके विश्वके अन्य देशोंकी अपेक्षा भारतमें कम प्रसार एवं संक्रमण और भारतको इस वायरसके संक्रमणसे बचावमें मिलती साक्षात लाभको देखकर अखिल जगतकी नजर भारत,  भारतीय और भारतीयताकी ओर लगी हुई है और सभी इस बातके आग्रही हो रहे हैं कि भारतके मानवतावादी एवं परहित दृष्टिकोण एवं भावनाओंसे युक्त व्यवहारसे ही संसारमें स्वस्थता, सबलता और दीर्घायुता प्राप्त किया जा सकता है। कोरोना कालमें सरकारके द्वारा उठाये गये कुछ जन सचेतक प्रतीकात्मक कदमके साथ ही मात्र रहन-सहनके निर्देशोंके अनुपालनसे ही भारतीयोंके शारीरिक शक्ति, सामथ्र्य एवं इम्यूनिटीके अनुरूप प्रभाव एवं मिलती लाभको देखकर पाश्चात्य संस्कृतिके पक्षधर भी नमस्कार, यज्ञ, हवन, अग्निहोत्र, योग, प्राणायाम, समाधि, शवदाह आदि सनातन वैदिक सभ्यता-संस्कृति, रहन-सहन, भोजन, चिकित्सीय पद्धतियोंमें ही अपना सुख एवं अपनी भलाई ढूंढऩे लगे हैं। वायरस संक्रमणसे बचावके सर्वश्रेष्ठ उपायोंमें शामिल-सामजिक दूरीकी अति आवश्यकताके इस कालमें लोगोंके आपसमें मिलनेपर की जानेवाली अभिवादनकी भारतीय नमस्कार प्रथा अर्थात नमस्ते करनेकी परम्पराको सम्पूर्ण विश्व अपनानेको बाध्य हो चुका है। हालके दिनोंमें विश्वके दर्जनों प्रमुख हस्तियोंके अपने मजहबोंको त्याग सनातन वैदिक धर्मकी ओर उन्मुख होनेसे भी यह स्पष्ट है कि समस्त संसारके लोग पाश्चात्य जीवनशैलीका त्याग कर सनातन वैदिक धर्मकी ओर पुनर्वापसी करते हुए नमस्कार, वैदिक मन्त्रका उच्चारण, यज्ञ, योग, समाधि, हवन आदि सनातन वैदिक जीवन पद्धतिकी ओर आकर्षित होने लगे हैं और इन सब वैदिक पद्धतिको अपनी जीवनमें शामिल करनेको आतुर नजर आने लगे हैं।

हमारे देश भारतमें अतिप्राचीन कालसे रोगोंके उपचारके लिए आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति प्रचलित है। परमेश्वरोक्त ग्रन्थ वेदके विधि-विधानोंके अनुसार सृष्टिके आरम्भसे वायु, जल, वातावरण, पर्यावरण, मन, बुद्धि, आत्मा आदिकी शुद्धि सहित रोगोंके निवारण हेतु अग्निहोत्र वा देवयज्ञ करनेकी प्राचीन परिपाटी है। वैदिक मान्यतानुसार प्रत्येक शिक्षित एवं सुबुद्ध गृहस्थ व्यक्तिको अपने परिवारमें प्रात: एवं सायं अग्निहोत्र देवयज्ञ अवश्य करना चाहिए। इस यज्ञसे बाह्य एवं आन्तिरिक शुद्धि सहित वायु, जल, वातावरण एवं शरीरके भीतरके अनेक हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं एवं जीवाणुओंका नाश होता है। सनातन वैदिकधर्मी इस वैदिक परम्पराका निर्वाह करते हैं। इससे परिवारमें रोग नहीं होते और परिवार साध्य, असाध्य एवं गम्भीर प्रकृतिके रोगोंसे बचा रहता है। यज्ञ करनेवाले प्राय: सभी लोग स्वस्थ, बलवान, दीर्घायु एवं सुखी होते हैं। उनकी आध्यात्मिक, भौतिक एवं सामाजिक उन्नति अन्य व्यक्तियोंकी तुलनामें अधिक होती है। संयम तथा अधिकतम स्वच्छतासे युक्त जीवन व्यतीत करनेसे इनमें प्राय: रोग नहीं होते और यदि हो जाते हैं तो वह यज्ञ करने एवं साधारण उपचारसे दूर किये जा सकते हैं। समय-समयपर अग्निहोत्र यज्ञके कई चमत्कार भी देखे गये हैं। विद्वानोंने वृहद यज्ञ कराकर वायु एवं जल शुद्धि सहित दुर्भिक्ष पडऩेपर अनेक बार वर्षा भी कराने और जन्मसे गूंगे, बहरे और हृदय आदि रोगोंसे ग्रस्त रोगियोंको भी ठीक कर यज्ञ और अग्निहोत्रके चमत्कार सिद्ध कर दिये हैं । यज्ञमें देशी गायके शुद्ध घृत सहित देशी शक्कर, सूखे फलों तथा वनोंमें उपलब्ध स्वास्थ्यप्रद नाना प्रकारकी ओषधियोंसे आहुतियां देने का विधान है। गोघृत एवं अन्य हव्य पदार्थ विष एवं रोगनाशक होते हैं। इनसे वायु मण्डलके रोगकारी कीटाणु, अनेक प्रकारके वायरस एवं बैक्टीरिया आदि नष्ट होते हैं। यज्ञ करनेसे यज्ञ-सामग्रीकी गुणवत्ताके अनुरूप कोरोना जैसे वायरसपर भी कुछ न कुछ प्रभाव पडऩेकी अवश्य ही उम्मीद है। इस यज्ञानुष्ठानको कोरोनासे बचने एवं उसे दूर करनेके साथ ही अन्य सभी प्रकारके भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करनेके लिए भी प्रतिदिन प्रात: एवं सायं किये जानेकी आवश्यकता है। इससे हमारे सभी पड़ोसियों एवं देशवासियोंको लाभ होगा। यह सर्वविदित है कि यज्ञमें दग्ध यज्ञीय पदार्थसे निर्मित अत्यन्त सूक्ष्म, हल्के सुगन्धित एवं रोगरहित यज्ञीय वायु हमारे बाह्य वायुमण्डलमें मिलकर देश-देशान्तरमें फैल जाता है। यज्ञ करते हुए कोरोनासे संक्रमित व्यक्तिको भी यज्ञीय प्रभावसे लाभ हो सकनेकी सम्भावनासे इनकार नहीं किया जा सकता है।

कोरोना रोगियोंको पाश्चात्य चिकित्सा पद्धतियोंसे इलाज किये जानेके साथ घरोंमें यज्ञके आयोजनोंसे सभी रोगोंके रोगियोंको लाभ होगा। यज्ञ शुभ एवं श्रेष्ठतम कर्म होनेसे हमारे संचित कर्मोंमें भी वृद्धि होगी और इसका लाभ हमें इस जन्म एवं भावी जन्मोंमें सुखोंके रूपमें होगा। कोरोना रोगको स्वच्छ रहकर, लोगोंसे निकटता न बनाकर एवं दूरी रखकर, जल तथा घरके अन्दर एवं बाहरका वातावरण यज्ञसे शुद्ध एवं सुगन्धित बनाकर दूर या कम किया जा सकता है। यज्ञमें इन सब बातोंका ध्यान रखा जाता है। हमारे देशमें प्राचीन कालसे परिवारके लोगोंके द्वारा एक थालीमें एक साथ भोजन नहीं करनेकी परम्परा है। घरके सभी सदस्य पृथक थालों एवं पात्रोंमें भोजन एवं जल ग्रहण किया करते हैं। बाहरके कीटाणु, रोगाणु घरमें प्रवेश न कर सकें, इसलिए सभी हाथ-मुंह धोकर घरमें प्रवेश करते हैं। भारतीयोंको प्राचीन कालसे ही यह पता है कि एक थालीमें भोजन करनेपर एक व्यक्तिके कुछ अज्ञात कीटाणु दूसरे व्याक्तिके शरीरमें प्रविष्ट होकर उसको हानि पहुंचा सकते हैं। इसीलिए जीवनमें और यज्ञमें ऐसी सभी सावधानी बरती जाती हैं। यज्ञ और यज्ञमय जीवन वर्तमान और भविष्यमें भी स्वस्थ, सबल, दीर्घायु बने रहनेकी एक प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण जीवन पद्धति है। विगत शताब्दियोंसे ही सेकुलरिज्मके नामपर अग्निहोत्र यज्ञ, हवन आदिका सरकारी स्तरसे प्रचार न होने तथा यज्ञ करनेवालोंको सम्मान न मिलनेसे जन-जनको स्वस्थ रखनेवाली यह वैदिक विज्ञानसम्मत प्रक्रियाके प्रचलनको धक्का पहुंचा है। परमात्मा प्रदत्त इस अवसरका सदुपयोग करते हुए यज्ञमें गायका शुद्ध घृत एवं शुद्ध हवन सामग्रीका प्रयोग करके कोरोना वायरस और अन्य सभी साध्य एवं असाध्य रोगोंसे बचा जा सकता है। कोरोना रोगपर यज्ञके प्रभावका वैज्ञानिक रीतिसे शोध एवं अध्ययन किये जानेसे अवश्य ही उत्साहवर्धक परिणाम मिलनेकी उम्मीद है।