सम्पादकीय

टीकाकरणका दूसरा चरण


राजेश माहेश्वरी

भारत जैसे देशमें जहां स्वास्थ्य सेवाएं बेहद सामान्य स्तरकी समझी जाती हैं वहां कोरोना जैसी घातक बीमारीका टीका रिकॉर्ड टाइममें बनाकर करोड़ोंकी आबादीके लिए टीकाकरण अभियान चलाना, चमत्कारसे कम नहीं है। इस कार्यको किसी भी स्तरपर मामूली नहीं माना जा सकता। देशमें टीकाकरण अभियानके पहले चरणकी शुरुआत इस वर्ष १६ जनवरीको हुई। प्रथम चरणमें स्वास्थ्यकर्मियों यानी डाक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स और स्वास्थ्यसे जुड़े लोगोंको वैक्सीन दी गयी थी। साथ ही फ्रंटलाइन वर्कर्स यानी पुलिसकर्मियों, पैरामिलिट्री फोर्सेज और सैन्यकर्मियोंको भी टीका लगाया गया। अबतक भारतमें एक करोड़से ज्यादा लोगोंको कोरोनाका टीका दिया जा चुका है। यह अलग बात है कि विपक्षी दलोंने वैक्सीनकी विश्वसनीयतापर सवाल उठाये और स्वदेशी वैक्सीनको बदनाम करनेकी कोशिश की। बड़ी बात यह हुई कि दुनियाके विकसित देशोंके साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए भारतने करोड़ों टीके न सिर्फ घरेलू उपयोगके लिए बना लिये, अपितु उनके निर्यातकी गुंजाइंश भी निकाल ली। जमीनी सचाई यह है कि दुनियाके कई विकसित और विकासशील देश हमारी वैैक्सीनको खरीद रहे हैं। दुनियाके तमाम देशोंमें भारतीय वैक्सीनके बलबूते ही कोरोना महामारीसे लड़ाई लड़ी जा रही है। हमारे देशमें कोरोनापर खूब राजनीति हो रही है लेकिन हमारा टीकाकरण अभियान देशके लिए बड़ी उपलब्धि है। दूसरे चरणमें अब आम लोगोंको वैक्सीन मिलेगी। सरकारका लक्ष्य जुलाईतक ३० करोड़ लोगोंको वैक्सीन देनेका है। कोविड-१९ टीकाकरणके दूसरे चरणमें ६० सालसे ज्यादा उम्रके लोगोंको वैक्सीन लगेगी। इसके अलावा ४५ सालसे अधिक उम्रके उन लोगोंको भी वैक्सीन दी जायगी जो किसी न किसी गंभीर बीमारीसे ग्रसित हैं। केंद्र सरकारके मुताबिक, दूसरे चरणमें करीब दस करोड़ लोग ६० सालसे ज्यादा उम्रके हैं।

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल २०१८ के आंकड़ोंके मुताबिक देशमें केवल २३,५८२ सरकारी अस्पताल है जिनमें लगभग ७,१०,७६१ बेड हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रोंके २,७९,५८८ बेड वाले १९,८१० अस्पताल शामिल हैं। वहीं, शहरी क्षेत्रोंमें ४,३१,१७३ बेडवाले ३,७७२ अस्पताल हैं। इसके अलावा २,९०० ब्लड बैंक है। हालत यह है कि देशमें दस लाखकी आबादीपर मुश्किलसे तीन ब्लड बैंक हैं। आंकड़ोंके मुताबिक, भारतकी ७० फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रोंमें रहती है। विश्व स्वास्थ्य संघटनके आंकड़ोंके अनुसार भारतमें १४ लाख डाक्टरोंकी कमी है, इसके बावजूद हर साल केवल ५५०० डाक्टर भर्ती हो पाते हैं। देशमें विशेषज्ञ डाक्टरोंकी ५० फीसदीसे भी ज्यादा कमी है। ग्रामीण इलाकोंमें तो यह आंकड़ा ८२ फीसदीतक पहुंच जाता है। भारतका सार्वजनिक स्वास्थ्यपर खर्च जीडीपीके मुकाबले अब भी एक फीसदीके आसपास है। दूसरे विकसशील देशोंकी बराबरीके लिए हमें काफी कुछ करना होगा, जहां औसत खर्च लगभग दोसे ढाई फीसदी है। लेकिन तस्वीरका दूसरा पक्ष यह भी है सरकारके प्रयासोंके बदौलत ही सीमित साधनों और संसाधनोंके बावजूद कोरोनापर काफी हदतक प्रभावीरूपसे काबू पाया जा सका।

रिपोर्टमें ऐसा सामने आया है कि टीकाकरणको लेकर भी उदासीनता दिखाई दे रही है। कोरोनाका यह टीका दो चरणोंमें लगता है। पहले टीकाकरणके बाद एक निश्चित अवधिमें उसकी दूसरी खुराक लेना अनिवार्य है अन्यथा वह प्रभावहीन हो जायगा। इस संबंधमें जो जानकारी मिल रही है वह चिंताका कारण है। फ्रंट लाइन कोरोना कार्यकर्ताओंकी सूचीमें जिन लोगोंको शामिल किया गया था, उनमेंसे बड़ी संख्यामें ऐसे निकले जो तय तिथिपर टीका लगवाने आये ही नहीं। इनमें चिकित्सा क्षेत्रके भी काफी लोग थे। इसी तरहके उदाहरण अन्य वर्गोंमें भी देखने मिले। इन लोगोंकी गैर-जिम्मेदारी समाजके लिए कितनी खतरनाक साबित हो सकती है। विशेष रूपसे जब कोरोनाका संक्रमण तेजीसे वापस लौट रहा है। बदलावकी रणनीतिके तहत सरकारी अस्पतालोंमें मुफ्त टीका लगानेके साथ ही निजी अस्पतालोंमें निर्धारित राशि देकर टीकाकरणकी पहल भी सार्थक है।

इससे जहां टीकाकरणमें गति आयगी, वहीं उन लोगोंको सुविधा हो सकेगी जो लंबी कतारोंसे बचना चाहते हैं। वहीं सरकारी अस्पतालोंमें टीकाकरण अभियानपर दबाव कम होगा। जो लोग सक्षम हैं उन्हें टीकेका मूल्य चुकाना चाहिए। शासकीय केन्द्रोंमें नि:शुल्क और निजीमें सशुल्क टीकाकरणकी व्यवस्था संतुलित सोचका अच्छा उदाहरण है। जरूरी है कि टीकेकी अगली खुराक लेनेके प्रति पूरी गम्भीरता एवं जिम्मेदारी रखी जाय क्योंकि उसके बिना पहली खुराक तो बेकार जायेगी ही कोई जरूरतमंद उससे वंचित रह जायगा। कोरोना वैक्सीनेशन अभियानमें प्राइवेट सेक्टरकी बड़े पैमानेपर भागीदारी भी आवश्यक होगी। सरकारने भी टीकाकरणकी गति बढ़ानेके उपायोंपर विचार कर रही है। कोरोनाने बीते कुछ दिनोंमें जिस तरहसे दोबारा दस्तक दिया है उसे देखते हुए जरूरी है कि ज्यादासे ज्यादा लोग टीका लगवाकर खुद भी सुरक्षित हों और दूसरोंके लिए भी खतरा पैदा न करें। राजनीतिक दलोंका भी फर्ज है कि वह जनताको जागरूक करते हुए टीका लगवाने प्रेरित करें। विश्व स्वास्थ्य संघटनका अनुमान है कि संक्रमणको रोकनेके लिए कमसे कम ६५-७० प्रतिशत लोगोंको वैक्सीन लगानी होगी। देश-दुनियामें जिस तरह कोरोनाके नये-नये स्ट्रेन सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए टीकाकरण ही अंतिम उपाय है। सरकारी मशीनरीमें आयी शिथिलता तथा आर्थिक बेचैनीके कारण, जनता यह नहीं चाहेगी कि फिरसे लॉकडाउन जैसे उपाय थोपे जायं। ऐसेमें फिरसे बचावके मूल मंत्र अपनानेका सहयोग यदि जनताको दिखाना है तो सरकारको भी नये सिरेसे चौकसी और पहरेदारी बढ़ानी होगी। जबतक वैक्सीनके लक्ष्योंमें अधिकतम आबादी सूत्रधार नहीं बनती, चहल-पहलकी हर सतहपर शैतान कोरोनाके कदम बिना सुरागके भी अनुभव करने होंगे। यदि कोरोनाकी नयी लहर देशमें फैलती है तो अर्थव्यवस्थाको सबसे बड़ा नुकसान होगा। इस क्रममें संभवत: वर्षोंका समय लग सकता है।