सम्पादकीय

अस्तित्वको जानना


बाबा हरदेव
इन अंगोंकी भिन्नता कभी एक-दूसरेसे टकराती नहीं है, सभी अंग एक-दूसरेके सहयोगी हैं, एक-दूसरेकी रक्षा करते हैं, एक-दूसरेके काम आते हैं। अंगुलियां बहुत संख्यामें होते हुए भी अल्पसंख्यावाली नाकको हानि नहीं पहुंचाती अपितु इसकी रक्षा करती हैं। सबसे ऊंचा रहनेवाला सिर सबसे नीचे रहनेवाले पांवकी अवहेलना नहीं करता। यदि पांवमें कांटा चुंभ जाय, तो सिर सहज झुक जाता है, पूरा शरीर उस पीड़ाको अनुभव करता है और शरीरके सभी अंग परस्पर एक-दूसरेका सहयोग करते हुए उस पीड़ाके कारणको दूर करनेका प्रयास करते हैं, कभी ऐसा नहीं होता कि हाथ उस समय पांवको छूनेसे इनकार कर दे या आंख उस स्थानको बतानेमें लापरवाही बरते कि कांटा कहां चुभा है। वास्तवमें मानव शरीर एक इकाईकी तरह काम करता है इसके विभिन्न अंगोंकी सांझेदारी सह अस्तित्वकी प्रतीक है। सभी एक-दूसरेपर निर्भर करता है और एक-दूसरेके सहयोगी हैं। यह सारी सृष्टि एक इकाई है, जड़-चेतन जगतका कण-कण एक-दूसरेपर आधारित है। पूरा ब्रह्मांड एक इकाईके रूपमें कार्य कर रहा है। इसमें कहीं भी कोई उथल-पुथल हो तो समस्त ब्रह्मांड ही प्रभावित होता है। इस प्रकार मनुष्यके भीतर ही अणु रूपमें यह विराट परमात्मा छिपा हुआ है। इसलिए मनुष्य जब इस बिंदुको पूर्ण सतगुरु द्वारा जान लेता है तो फिर मनुष्यके सिंधु होनेका उपाय शुरू हो जाता है। अब जबतक सह अस्तित्व छिपा हुआ होता है तब तक अनेकता होती है और जब सह अस्तित्व (अखंडता) प्रकट होता है तो अनेकता लीन हो जाती है। यदि हम पूर्ण सतगुरु द्वारा प्रभुको जान लें तो फिर हमारे जीवनमें एक आध्यात्मिक क्रांति घटित होती है और फिर मनुष्यको न कोई बेगाना और न कोई गैर-नजर आता है। फजा, मैकदा सांस आ गयी है इसलिए बेदिल, कभी रिंदोंने मैखानेमें बेगाने नहीं देखे। अब जबतक हम अनेकतामें एकता अथवा सह अस्तित्वका रहस्य जाननेकी कला पूर्ण सतगुरु द्वारा नहीं सीख लेते, तबतक हम सह अस्तित्वकी वास्तविकताको नहीं जान पायंगे, क्योंकि जबतक एकता और अखंडता तथा जीवनमें सह अस्तित्वका स्थान संभव नहीं। सचमें एकको जानो एक को मानो एक हो जाओ, जीवनमें सह अस्तित्वके स्थानको जाननेका यह महान सूत्र है।