काठमांडू(हि.स.)। नेपाली की संसद को समय से पहले ही भंग करने के मामले में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली फंसते हुए नजर आ रहे हैं। शुक्रवार को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रपति कार्यालय और सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने रविवार तक दोनों पक्षों से नेपाल के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने के लिए लिखित कारण बताने को कहा है। कोर्ट ने दोनों पक्षों से यह स्पष्टीकरण भी मांगा है कि अदालत संसद भंग करने की राष्ट्रपति के निर्णय को रद्द करने की मांग करने वाले याचिकाओं के पक्ष में आदेश क्यों नहीं जारी कर सकती। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई कानूनी आधार है जिससे कोर्ट याचिकाकर्ताओं द्वारा मांग के अनुसार निर्णय नहीं दे सकता है तो उसे अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से 3 जनवरी तक जमा करें। इन सभी याचिकाओं की सुनवाई नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने की। पांच सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति बिश्वंभर प्रसाद श्रेष्ठ, न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी, न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति हरि कृष्ण कार्की शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश राणा की एकल पीठ ने बुधवार को सभी रिट याचिकाओं को संवैधानिक पीठ को सौंप दिया था। संसद को भंग करने के सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए कुल 13 रिट याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी हैं। बुधवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकीलों ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए दलील दी कि प्रधानमंत्री ओली को तब तक सदन को भंग करने का अधिकार नहीं है, जब तक कि कोई वैकल्पिक सरकार बनाने की कोई संभावना नहीं हो। ओली की सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने ही कैबिनेट के इस फैसले का विरोध किया है। पार्टी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में किया गया है क्योंकि आज सुबह कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री उपस्थित नहीं थे। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है और राष्ट्र को पीछे ले जाएगा।
इसे लागू नहीं किया जा सकता। पीएम ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का दबाव था। मंगलवार को जारी इस अध्यादेश को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने भी मंजूरी दे दी थी। इसे लेकर पीएम ओली ने कल पार्टी के चेयरमैन पुष्प कमल दहल प्रचंड, दोपहर में सचिवालय के सदस्य राम बहादुर थापा और शाम को राष्ट्रपति भंडारी के साथ कई दौर की बैठक की थी। माना जा रहा है कि अध्यादेश को वापस लेने पर अड़े विपक्ष के साथ सहमति नहीं बनने के बाद बेइज्जती से बचने के लिए उन्होंने संसद भंग करने का फैसला किया है। पीएम ओली का कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन पुष्प कमल दहल प्रचंड के साथ कई मुद्दों पर विवाद था। दोनों नेताओं के बीच पार्टी की पहल पर पहले एक बार समझौता भी हुआ था। लेकिन, बाद में मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर फिर से खींचतान शुरू हो गई थी। ओली ने अक्टूबर में बिना प्रचंड की सहमति के अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया था। उन्होंने पार्टी के अंदर और बाहर की कई समितियों में अन्य नेताओं से बातचीत किए बगैर ही कई लोगों को नियुक्त किया था। दोनों नेताओं के बीच मंत्रिमंडल में पदों के अलावा, राजदूतों और विभिन्न संवैधानिक और अन्य पदों पर नियुक्ति को लेकर दोनों गुटों के बीच सहमति नहीं बनी थी। पीएम ओली अपने कैबिनेट के कुछ नेताओं का पोर्टफोलियो बदलने के साथ उन्हें फिर से मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन प्रचंड इसके सख्त खिलाफ थे। प्रचंड चाहते थे कि देश के गृहमंत्री का पद जनार्दन शर्मा को दिया जाए। इसके अलावा दहल चाहते हैं कि संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भी उनके किसी खास नेता को सौंपा जाए। नेपाल की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस भी संसद के शीतकालीन सत्र को जल्द से जल्द बुलाने की मांग कर रही थी। उनका कहना था कि इससे देश में कोरोना वायरस को लेकर पैदा हुई स्थिति पर बहस की जा सकेगी। वहीं, पीएम ओली के करीबियों को अंदेशा था कि इस सत्र को नेपाली कांग्रेस साजिश के तहत बुला रही है। उनका असली मकसद सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के बागी नेताओं के साथ मिलकर ओली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करना है। जिससे ओली को सत्ता से बाहर किया जा सके। ओली और प्रचंड के बीच जारी विवाद से सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अस्तित्व के ऊपर ही खतरा मंडराने लगा था। वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे बिष्णु प्रसाद पौडेल समेत कई नेताओं ने खुलेआम कहा था कि उनकी पार्टी में जल्द ही बंटवारा हो सकता है। ऐसी स्थिति में ओली सरकार को गिरती ही, पार्टी की एकता भी खत्म हो जाती। इसका सीधा नुकसान आगामी लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ता। माना जा रहा है कि इन्ही कारणों से पीएम ओली ने संसद को भंग करने का निर्णय लिया है। इस बीच प्रधानमंत्री ओली ने शुक्रवार शाम को कैबिनेट की बैठक बुलाई है। संभावना है कि प्रचंड नीत धड़े के सात मंत्रियों के इस्तीफे के बाद वह मंत्रिमंडल में फेरबदल कर सकते हैं। ओली मंत्रिमंडल में अब 18 सदस्य हैं जिनमें मंत्री और राज्य मंत्री शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि प्रधान मंत्री ओली की सिफारिश पर रविवार को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा प्रतिनिधि सभा भंग करने तथा मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा करने के बाद नेपाल में राजनीतिक संकट पैदा हो गया है।