सम्पादकीय

दिशानिर्देशोंका पालन ही विकल्प


डा. गौरीशंकर राजहंस

अभी हालतक सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। अचानक ही कोरोनाका नया दौर शुरू हो गया और यह इतना भयंकर है कि किसीको समझमें नहीं आ रहा है कि इससे कैसे निबटा जायगा। लोग धड़ाधड़ अपने व्यवसाय और कारखाने बन्द कर रहे हैं तथा बिहार और उत्तर प्रदेशके मजदूर सिरपर अपनी गठड़ी लादे हजारोंकी संख्यामें महाराष्ट्र और दिल्लीसे मजबूर होकर अपने गांवकी ओर भाग रहे हैं। उन्हें एक साल पहलेकी स्थिति याद आ रही है जब इसी प्रकार कोरोनाका प्रकोप बढ़ा था और लोग मजबूर होकर अपना बचा सामान लेकर गांवकी ओर तेजीसे पलायन कर रहे थे। आज महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश और पंजाबके हालात अत्यन्त ही दुखद हैं। यह प्रवासी मजदूर अत्यन्त दुखी होकर अपने गांव लौट रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि उनका भविष्य अब क्या होगा। उन्हें अपने अनुभवसे यह पाया कि हजारों किलोमीटर पैदल चलकर पैरोंमें पड़े बड़े-बड़े छाले और भयंकर घाव सहकर अपने गांव पहुंचे तब उन्होंने यह पाया कि वहां भी उनके जीवनयापनकी कोई सुविधा नहीं थी। बहुतसे प्रवासी मजदूर तो भूख और बीमारीके कारण गांव पहुंचते-पहुंचते मारे गये। अब उनके सामने यह बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया है कि अब भविष्यमें उनका क्या होगा? इस बीच यह खबर आयी है कि कोरोनाका इलाज करनेवाले ज्यादातर अस्पतालोंमें मरीजोंके बिस्तरोंकी भयानक किल्लत आ गयी है। अनेक अस्पतालोंमें ऑक्सीजनकी भारी कमी हो गयी है। लोग अपने शरीरपर ऑक्सीजनका सिलेंडर लगाकर जब अस्पताल पहुंचते हैं तो वहां भी उन्हें घोर निराशा होती है। क्योंकि वहां भी उन्हें देखनेवाला कोई नहीं होता है। ज्यादातर मरीज तो तड़प-तड़प कर अस्पतालोंकी दहलीजपर ही दम तोड़ देते हैं।

सरकारने यह प्रबंध किये हैं कि अधिकसे अधिक लोगोंको कोरोनाका टीका लगाया जाय। परन्तु भारतकी जनसंख्या इतनी अधिक है कि सब लोगोंको टीका लगाना इतना संभव नहीं है। फिर वैक्सीनके टीकोंकी इतनी आवक भी नहीं हो रही है। चारों और तबाहीका मंजर है और किसीको समझ नहीं आ रहा है कि इस हाहाकरसे आखिर कब छुटकारा मिलेगा। सबसे अधिक दुर्भाग्यकी बात तो यह है कि कोरोनासे बचनेके लिए सरकारने जो प्रोटोकोल निर्धारित किया है उसका ज्यातार पालन नहीं हो रहा है। आये दिन विभिन्न टीवी चैनलोंपर यह दिखाया जा रहा है कि अधिकतर संक्रमित राज्योंमें लाखोंकी संख्यामें लोग बिना मास्क पहने और बिना सामाजिक दूरीका पालन किये, बेपरवाह होकर सड़कोंपर घूम रहे हैं। इसका असर तो निश्चित रूपसे लोगोंपर पडऩा ही है और यदि किसी परिवारका एक व्यक्ति बीमारीसे संक्रमित हो जाता है तो उसके बाकि सदस्य भी देर या सबेर संक्रमित हो ही जाते हैं और वह बिना उपचारके असमय ही कालके ग्रासमें चले जाते हैं। स्थिति अत्यन्त ही गंभीर और भयावह है और किसीको यह नहीं समझ आ रहा है कि आखिर इस समस्यासे देश कब उबरेगा।

दिल्लीमें देखते ही देखते प्रतिदिन संक्रमित होनेवाले मरीजोंकी संख्या १३ हजारतक पहुंच गयी है और संभव है कि यह और वृद्धि करेगी। दिल्लीके मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवालने कहा है कि वह कोरोनापर निमंत्रण पानेके लिए सभी संभव प्रयास कर रहे हैं। परन्तु दुर्भाग्यकी बात है कि प्रतिदिन आसपासके राज्योंसे दिल्लीमें कोरोनाके असंख्य मरीज दिल्ली इलाजके लिए पहुंच रहे हैं। मानवीय मूल्योंका विचार करते हुए इन्हें वापस नहीं लौटाया जा सकता है। परन्तु इनके उपचारके लिए इस आपात स्थितिमें बिस्तरोंकी पर्याप्त व्यवस्था भी करना संभव नहीं हो रहा है। मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवालने कहा कि दिल्लीमें लोगोंका जीवन बचानेके लिए रातका कफर््यू तो लगा दिया गया है परन्तु वह बहुत कारगर साबित नहीं हो रहा है। जानकारोंका कहना है कि इसके पहले जब कोरोनाकी लहर आयी थी उस समय गांव-देहात अछूता था। परन्तु अब यह संक्रमण तेजीसे गांव और देहातमें भी अपने पैर पसार रहा है। यही नहीं, पलायन करके जो मजदूर शहरोंसे गांव-देहातमें जा रहे हैं वह निश्चित रूपसे इस वायरसको वहां पहुंचा रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति यह बनती है कि जहांतक संभव हो लोगोंको कोरोनाका टीका शीघ्रातिशीघ्र लगवा लेना चाहिए और इन अफवाहोंपर ध्यान नहीं देना चाहिए कि जिन लोगोंने टीका लगवा लिया है उन्हें फिरसे कोरोना बीमारी हो रही है।

ऐसा देखा गया है कि जिन अस्पतालोंमें डाक्टरोंने दुबारा टीका लगवाया वह संक्रमित तो हो गये परन्तु उनका संक्रमण बहुत खतरनाक नहीं रहा और सरकारकी ओरसे इन मरीजोंको सलाह दी गयी कि मामूली संक्रमण होनेपर अस्पताल आनेके बजाय घरमें ही वह अपने आपको आइसोलेटपर इलाज करवायें। ऐम्सके एक प्रतिष्ठित डाक्टरने कहा है कि आजादीके बाद इस तरहका भयानक संक्रमण कभी नहीं फैला था। इसकी पहले कल्पना भी नहीं की गयी थी। अत: किसीको सूझ ही नहीं रहा है कि इस भयानक संक्रमणसे कैसे छुटकारा मिलेगा। कुल मिलाकर स्थिति यह बनती है कि लोगोंको कोरोना प्रोटोकोलका सम्मान करते हुए अपने आपको इससे बचाये रखना चाहिए और टीका लगवानेके बाद भी सामाजिक दूरी बनाते हुए मुंह और अपने नाकको पूरी तरह ढककर रखना चािहए। बच्चों और बुजुर्गोंका विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह एक ऐसी आपदा है जिसमें एक-दूसरेपर दोषारोपण करनेसे कोई लाभ नहीं मिलेगा। मिल-जुलकर इस भयानक संकटसे छुटकारा पानेके संयुक्त प्रयास करने चाहिए। इस अफवाहको बल नहीं दिया जाना चाहिए कि देशमें कोरोनाके टीकोंकी कमी है। सरकारकी बातोंपर भरोसा रखना चाहिए और मिल-जुलकर कोरोनासे मुकाबला करना चाहिए।