सम्पादकीय

नाभिकीय पर्यावरणका विध्वंसकारी परिणाम


आनन्दशंकर मिश्र

वैश्विक महामारीकी चपेटमें आनेवाले देश-दुनिया अब यह महसूस कर रहे हैं कि मौजूदा महामारी आपसी प्रतिद्वंदिताका ही परिणाम है। एक-दूसरेको पछाडऩेकी होड़में एटमी, रसायनिक, जैविक हथियारोंके निर्माण, अनुसन्धान एवं परीक्षण एवं उपयोगसे उपजे विध्वंसकारी परिणाम आज समूची पृथ्वीके लिए जानलेवा साबित हो रही है। इसके पीछे पूरी तरहसे नाभिकीय पर्यावरणको ही दोषी माना जा रहा है जिसके चलते वायुमण्डल प्रदूषित हुआ है। दरअसल प्राचीनकालमें नाभिकीय पर्यावरणका कोई अस्तित्व नहीं रहा। सम्पूर्ण विश्व विशेषकर भारतमें परस्पर स्नेह बनाकर लोग रहते थे। शिक्षाके विकासके साथ वैज्ञानिक प्रयोगशाला बनी और शुरू हुआ अनुसन्धान इसी अनुसन्धानके कारण शास्त्रों एवं अस्त्रोंकी दौड़ शुरू हुई। सभी अपनी शक्ति बढ़ानेकी चेष्टïामें लग गये और परिणामस्वरूप एटमी शास्त्रोंका निर्माण हुआ लेकिन इसपर विजयश्रीके बाद बड़े राष्टï्र जैविक एवं रासायनिक हथियारोंकी होड़में लग गये फलस्वरूप आपसी कटु प्रतिद्वन्दितामें जब जैविक रसायनोंका प्रयोग-परीक्षण चीन कर रहा तो असफल होनेपर कोरोना जैसी महामारीका जन्म हुआ, जो आज वैश्विक महामारी बनकर पूरी दुनियाको तबाह किये हुए है। अस्त्रों-शस्त्रोंकी दौड़ और आपसी प्रतिद्वंदिताने मानव जीवन एवं मानव मनको अस्त-व्यस्त कर दिया है।

शक्ति बढ़ानेकी चिन्ता प्रबल हो उठी है। शक्तिशाली-सर्वशक्तिमान बननेके लिए नये अस्त्रोंकी खोज की जाने लगी, फलस्वरूप आपसी प्रतिद्वन्दितामें पहले परमाणु बमका जन्म हुआ और उसके बाद रासायनिक शस्त्रोंका जन्म, लेकिन अब तो जैविक शस्त्रोंका जन्म हो गया जिससे पूरी दुनिया प्रभावित हो गयी। ६ अगस्त, १९४५ की सुबह २.४५ बजे हिरोशिमा जैसे खूबसूरत शहरपर परमाणु बमका मानवने विस्फोट कर दिया। इसके तीन दिन बाद ९ अगस्तको नागासाकीपर दूसरा विस्फोट किया गया। दोनों शहर जापानमें ही स्थित हैं। इन विस्फोटोंका नाभिकीय वायुमण्डलीय पर्यावरणपर इतना गहरा असर हुआ कि एक किलोमीटरके दायरेमें सभी जीव-जन्तु, मानव मर गये तथा पांच किलोमीटरके दायरेमें ६० प्रतिशत लोग मारे गये तथा १५ किलोमीटरके क्षेत्रमें बचे लोग मानसिक रोगी तथा लगातार जन्मदर संख्या विकलांगके रूपमें जन्म लेने लगी। जिस विज्ञानको मानवने जन्म देकर एटमी शस्त्रोंका निर्माण किया वही शस्त्र मानव मात्रके लिए सबसे बड़ा विध्वंसकारी साबित हो रहा है।

आज तो कई विकसित राष्टï्रोंने अन्तरिक्षमें भी अपनी प्रयोगशाला स्थापित कर लिया है। चीनने सबको पछाड़ते हुए अहं ब्रह्मïास्मि बननेकी होड़में जैविक शस्त्रोंका प्रयोग कर पूरी दुनियाको तबहा करनेकी कोशिश की है। कोरोना जैसी महामारी पूरी दुनियाके वायुमण्डलमें प्रवाहित हो रही है और क्रमवार इसके उतार-चढ़ाव मानव जीवनको प्रभावित कर रही है। सच तो यह है कि यदि युद्धमें इस तरहके मामकीय पर्यावरणीय प्रदूषित शस्त्रोंका प्रयोग किया गया तो पृथ्वीका पर्यावरण पूरी तरह क्षत-विक्षत हो जायगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि भूमण्डलीय पर्यावरण असन्तुलित हो जायगा, चारों दिशाओंके गोलाद्र्धपर बसी जीव-जन्तुकी प्रजातियां नष्टï हो जायंगी। आंशिक बची प्रचातिके लोग दूषित वायुमण्डल, पर्यावरण प्रदूषण, जल-भोजन एवं उर्वरककी विषाक्त्तासे मर जायंगे। आज मनुष्य जिस पर्यावरणको अपने अनुकूल बना रहा है, वहीं पर्यावरणको पूरी तरह प्रतिकूल कर देंगे। आणविक, रासायनिक एवं जैविक अस्त्रोंके प्रयोगके पश्चात्ï वायुमण्डल इस कदर धूमिल हो जायंगे, जिसके चलते सूर्यके प्रकाश अवशोषित होकर पृथ्वीतक पहुंचनेमें असमर्थ हो जायंगे और पृथ्वीनी अन्धकार छा जायंगगा। पृथ्वीकी कृषि भूमि पूरी तरह बंजर हो जायगी। पृथ्वीपर आक्सीजनकी कमी हो जायगी। जन-सामान्यके जीवन विषाक्त होंगे और घुटनमें मानव शनै: शनै: मृत हो जायगा। वायुको श्ुाद्ध करनेवाली वनस्पति सूर्यका प्रकाश एवं जल मिलकर जो प्रकाश संश्लेषणकी क्रिया कर आक्सीजन निकालते थे, वह क्रिया नहीं हो सकेगी। शुद्ध वातावरणकी तलाशमें भागमभाग करनेवाला मानव नाना प्रकारकी बीमारियोंसे ग्रसित होकर मृत्युशैय्यापर पहुंच जायगा। ऐसे घटनाक्रमके बाद जीवनसे संघर्षरत मानवको प्रदूषित हवा, प्रदूषित भोजन एवं प्रदूषित जलपर निर्भर होना पड़ेगा जिससे तरह-तरहकी बीमारियां उत्पन्न होंगी, महामारी फैलेगी, यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलेगा। नाभिकीय एवं जैविक अस्त्रोंका प्रयोग किये जानेसे उसका भीषण प्रभाव महासागरोंपर भी पड़ेगा। हालांकि यह प्रभाव पृथ्वीके थलीय भागकी अपेक्षा कम होगा, क्योंकि इसपर रेडियो सक्रिय प्रदूषण कम होगा। सूर्यके प्रकाशकी कमी होनेसे सागरके परिस्थिति तंत्रपर घातक प्रभाव आयेगा।

विशेषकर उथले तटपरके जीव-जन्तुका अस्तित्व समाप्त हो जायगा। आज बड़े-बड़े राष्टï्रोंने आकाशमें भी वैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित कर ली है। इन्हें स्काईलैबके नामसे पुकारते हैं। वर्षों पूर्व हमारे देशके राकेश शर्माजी सर्वप्रथम स्काईलैबमें गये थे। इन नाभिकीय लैबोंमें अनुसन्धानके साथ शस्त्र निर्माण भी होंगे। इन लैबोंसे आकाशमें बनी ओजोन गैसकी छतरीको भी खतरा पहुंच रहा है। यह ओजोन छतरी सूर्य द्वारा निकली पराबैगनी किरणोंको अपने अन्दर सोख कर पृथ्वीके जीव-जन्तुको हानिकारक विकिरणोंके प्रभावोंसे काफी हदतक बचाती है। आजके नाभिकीय अस्त्र भयंकर प्रदूषणयुक्त हैं। एक सौ टनसे ज्यादा वजनदार एटम बमके अन्दर कई टन रसायन एवं बारूद भरे हैं। एक एटम बमक विस्फोट लगभग सौ किलोमीटरकी परिधिमें जहरीली गैसका धुन्ध बनाती है। थलपर ढाई सौ किलोमीटर और नभमें पांच सौ किलोमीटरकी एरिया प्रदूषित करता है। वायुमण्डल महीनोंतक प्रभावित रहता है। पृथ्वीका जैविक मण्डल पूरी तरह क्षत-विक्षत हो जानेसे प्रजनन क्रिया भी प्रभावित होती है। एकके बाद एक समुद्री, आकाशीय आपदा झेल रही  पृथ्वी अब प्रदूषणका बोझ उठा पानेमें सक्षम नहीं रह गयी। उसके बाद प्रतिद्वन्दिताकी होड़में एटमी, रासायनिक और अब जैविक शस्त्रोंका परीक्षण इस पृथ्वीके लिए सर्वथा घातक था, घातक है और हमेशा रहेगा। लेकिन कृत्रिम शक्तिसे अहं ब्रह्मïास्मि बने नामचीन राष्टï्रोंकी दादागिरी एवं अमानवीय कृत्य कोरोना जैसे महामारीको जन्म देती है। यही स्थिति रही तो पृथ्वीके हर मनुष्यको अपनी अज्ञानताका परिणाम स्वयं भुगतना होगा।