News सम्पादकीय

महामारीसे मुक्तिकी आस


प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने ठीक कहा कि जब कोरोनाका पहला दौर आया था तो लोगोंको भ्रम हो गया था कि हमने अपने देशमें इस बीमारीपर विजय प्राप्त कर ली है। परन्तु शीघ्र ही हमें पता चल गया कि यह हमारी बहुत बड़ी गलतफहमी थी। किसीने सपनेमें भी नहीं सोचा था कि कोरोनाका इतना भयानक दौर भारतमें आ जायगा। प्रधान मंत्रीने प्रवासी मजदूरोंसे आग्रह किया कि वह अपने कार्यस्थलोंको छोड़कर नहीं अपने गांव न जायं। क्योंकि देर या सबेर भारत सरकार और राज्य सरकारें इस मुसीबतपर विजय प्राप्त कर ही लेंगी। परन्तु कहते हैं कि दूधका जला म_ा भी फूंक कर पीता है। प्रवासी मजदूरोंको दिल्ली या मुम्बई जैसे महानगरोंमें रोजगारका कोई साधन नहीं मिल रहा है। किसीको यह भी पता नहीं है कि यह लॉकडाउन कितने दिनोंतक चलेगा और कितने दिनोंमें कोरोनासे राहत मिलेगी। पहलेकी तरह ही हजारों प्रवासी मजदूर बस और ट्रेनके अभावमें पैदल ही बिहार और उत्तर प्रदेशकी ओर जा रहे हैं। परन्तु उनका सोचना भी एक तरहसे सही है कि दिल्ली, मुम्बई या गुजरातमें जहां कल-कारखाने बन्द हो रहे हैं वह कहां खाली बैठकर अपना जीवनयापन कैसे करेंगे। उनके पास मकान मालिकोंको मकानका किराया देनेतकके लिए पैसे नहीं है। कोई निश्चित रूपसे उन्हें नहीं बता सकता है कि कोरोनाका भयावह रूप कब समाप्त होगा। अधिकतर मजदूर यही सोचते हैं कि पैदल चलकर भी वह कुछ सप्ताहमें अपने गांव पहुंच ही जायंगे जहां परिवारवालोंके साथ रहकर नमक रोटी खाकर गुजारा कर लेंगे।
दिल्लीके मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिज बैजलने बार-बार समाचारपत्रोंमें विज्ञापन देकर प्रवासी मजदूरोंसे आग्रह किया है कि वह विपत्तिकी इस घड़ीमें उन्हें छोड़कर अपने गांव नहीं जायं। परन्तु प्रवासी मजदूरोंकी अपनी भी लाचारी है। उन्हें भविष्य अंधकारमय दीख रहा है। अब तो यह स्पष्ट हो गया है कि देशके महानगरोंमें वैक्सीनकी भयानक कमी है और आक्सीजनके सिलेंडर भी नहीं मिल रहे हैं। इसलिए इन शहरोंमें तड़प कर मर जानेसे अच्छा है अपने गांव चले जायं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कोरोनाका यह दौर भयानक और अप्रत्याशित है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंहने सेनाके शीर्ष अधिकारियोंको कहा है कि वे सेनासे कहें कि कोरोनासे पीड़ित लोगोंकी यथासंभव मदद की जाय। केवल दिल्ली, मुम्बई जैसे शहरोंमें ही कोरोनाका भयानक प्रकोप नहीं है, बल्कि देशके अन्य शहरों यहांतक कि गांव और देहातमें भी कोरोनाने अपने पैर पसार लिये हैं। सबसे दुखद बात यह है कि कोरोनासे निजात पानेके लिए डाक्टर जो दवाई लिखते हैं वह दवाई बाजारमें मिलती ही नहीं है। प्रवासी मजदूरोंका कहना है कि घुट-घुटकर इन शहरोंमें मरनेसे तो अच्छा है वह पैदल चलकर ही गांव-देहातमें अपनोंके पास पहुंच जायं। महाराष्ट्रमें हालमें आक्सीजनकी सप्लाई रुकनेके कारण २४ से ज्यादा कोरोना मरीजोंकी मौत हो गयी। अभी रेलमंत्री पीयूष गोयलने देशमें आक्सीजन गैसकी सप्लाईके लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस गाड़ी चलायी हैं। परन्तु मरीजोंमें आक्सीजनकी जितनी मांग है उसके सामने आक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनकी क्षमता बहुत कम है। एक मरीजको एक दिनमें १५ से २० किलो ऑक्सीजनकी आवश्यकता होती है। प्रश्न यह है कि इतनी भारी मात्रामें सरकार ऑक्सीजन लायगी कहांसे? यह ठीक है कि सरकारने आदेश दे दिया है कि उद्योगोंको दी जानेवाली आक्सीजन गैसकी सप्लाई रोक दी जाय और उसे स्वास्थ कार्योंमें लगा दिया जाय। परन्तु कुल मिलाकर स्थिति अत्यन्त ही निराशाजनक है। प्रधान मंत्रीका यह सोचना शत-प्रतिशत सही है कि यदि मजदूर महानगरोंसे चले जायंगे तो यहांके कल-कारखानों और व्यवसायोंपर भयानक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
प्रधान मंत्रीने लोगोंको भरोसा दिलानेके लिए कहा है कि उन्होंने देशमें बननेवाली वैक्सीनकी दो मशहूर कम्पनियोंको युद्ध स्तरपर वैक्सीनके टीके बनानेके आदेश दिये हैं। परन्तु प्रश्न यह है कि इतने बड़े देशमें बड़े पैमानेपर वैक्सीनका निर्माण क्या संभव हो पायगा। प्रधान मंत्रीने देशको संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने आगामी एक मईसे १८ वर्षसे अधिक आयुके सभी लोगोंको टीका दिये जानेके आदेश दे दिये हैं। परन्तु भारतकी जनसंख्या इतनी बड़ी है कि लाख प्रयासके बावजूद भी करोड़ों लोगोंको आसानीसे वैक्सीन नहीं मिल पायगा। इससे पहले जब कोरोनाका पहला दौर था उसमें बच्चे संक्रमित नहीं हुए थे। परन्तु अब बहुत बड़ी संख्यामें बच्चे और युवक लापरवाहीके कारण बहुत बड़़ी संख्यामें संक्रमित हो रहे हैं। यह अत्यन्त ही चिन्ताजनक बात है। क्योंकि कम उम्रके बच्चोंको ज्यादा ताकतवर दवा नहीं दी जा सकती है। कुल मिलाकर स्थिति अत्यन्त ही विस्फोटक और भयावह है और किसीको यह सूझ नहीं रहा है कि इस महामारीसे कब मुक्ति मिलेगी? उचित तो यह है कि जिन लोगोंने टीका लगवा लिया है वह भी अपने घरोंसे अनावश्यक बाहर न निकलें और परिवारके अन्य लोगोंको भी अनवाश्यक रूपसे घरसे बाहर न निकलने दें। परिवारका हर सदस्य दिन-रात मास्क लगाकर रखे और ईश्वरसे प्रार्थना करे कि इस महामारीसे जल्दी मुक्ति मिल जाय। सैंकड़ों मशहूर लोग इस बीमारीसे गस्त हो गये हैं और यह नहीं कहा जा सकता है कि अब उनका भविष्य क्या होगा? ऐसेमें विपक्षी दलोंको सरकारपर दोषारोपण नहीं कर चाहिए और संयुक्त रूपसे मिलकर इस त्रासदीसे छुटकारा पानेका प्रयास करने चाहिए।