News सम्पादकीय

कोरोना कालमें सकारात्मकता जरूरी


प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने हालमें परीक्षा तनावको लेकर देशके छात्रोंको संबोधित किया। कोरोनाकी जोरदार वापसीने हमारे बच्चोंके मानसिक स्वास्थ्यको प्रभावित किया है। इस समय ज्यादा स्कूल बंद हैं। इस तनावके माहौलमें समाजको बच्चोंकी मानसिक हालतको ध्यानमें रखनेकी जरूरत है। अभिभावक उनको ज्यादा वक्त दें। कोविडके दौरमें अभिभावकोंको असीमित चिंताएं घेरे रहती हैं। यह कड़वा सच है कि कोरोना कालमें घरपर रहकर बच्चे चिड़चिड़े हो गये हैं। ६ से १२ सालके बच्चोंपर ज्यादा असर देखनेको मिल रहा है। बच्चोंमें भी डिप्रेशनके लक्षण दिख रहे हैं। खेलकूद बंद होनेसे बच्चोंकी दिनचर्या बदली है। बच्चोंके बर्तावमें बदलाव दिख रहा है। स्कूल न जानेसे भी बच्चोंपर असर पड़ रहा है। लेकिन हम सबके लिए बच्चोंकी सेहत स्कूल जानेसे कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसके चलते बच्चोंका बाहर खेल-कूद, मिलना-जुलना नहीं हो पा रहा है। बाजार, मॉल, रेस्टोरेंट जाना बंद है। छुट्टियोंमें बाहर घूमने जाना भी बंद है। बच्चे वर्चुअल और आर्टिफिशियल दुनियामें ही जी रहे हैं। उनकी पढ़ाईके लिए ऑनलाइन माथापच्ची हो रही है। बैठे-बैठे वजन बढ़ता जा रहा है। कोविड और मां-बापके चिंतित चेहरे बच्चोंके लिए भी तनावका कारण हैं। अकेलापन और बुरी खबरोंका तनाव भी बच्चोंपर हावी दिख रहा है। इन स्थितियोंमें बच्चोंमें चिड़चिड़ापन, ज्यादा गुस्सा, दुखी चेहरा आम बात होती जा रही है। बच्चोंमें अचानक कम या बहुत ज्यादा नींदकी शिकायतें भी मिल रही हैं। बच्चोंमें मायूसी, कोशिश किये बिना हार मान लेनीकी आदत देखनेको मिल रही है। इसके अलावा थकावट, कम एनर्जी, एकाग्रतामें कमीकी शिकायतें भी मिल रही हैं। बच्चोंमें गलतीपर खुदको ज्यादा कसूरवार ठहराना, सामाजिक गतिविधियोंसे दूरी बनाना, दोस्तों, रिश्तेदारोंसे कम घुलना-मिलना जैसे लक्षण भी देखनेको मिल रहे हैं। जानकारोंका कहना है कि छह सालसे बड़े बच्चोंमें डिप्रेशन संभव है। लेकिन सामान्य तनाव और डिप्रेशनमें अंतर होता है। सिर्फ चुपचाप, उदास रहना डिप्रेशन नहीं है। सब कुछ काफी स्लो बिना एंजॉय किये करना और किसी चीजमें रुचि नहीं है तो डिप्रेशन संभव है। एंग्जायटी अटैकमें डिप्रेशनका एलर्ट मिलता है लेकिन एंग्जायटी अटैक डिप्रेशनका प्रमाण नहीं है। शारीरिक, मानसिक, यौन शोषण, परिवारमें कलह, स्कूलमें मारपीट, अप्रिय घटना, जीवनशैलीमें अचानक बदलाव, कम उम्रमें रिलेशनशिप, बदलते समाजका बुरा प्रभाव और डिप्रेशनकी फैमिली हिस्ट्री डिप्रेशनकी वजह बन रहे हैं। इन स्थितियोंसे निबटनेके सुझाव हैं कि सबसे पहले बच्चोंको दुखी न होने दें। उन्हें बुरे अहसास मैनेज करना सिखायें। बच्चेके दोस्तोंकी जानकारी रखें। बच्चेको नजरअंदाज न करें। उनसे लगातार बात करते रहें। बच्चोंसे बातचीतमें आशावादी रहें। उनकी दिनचर्यामें फिजिकल एक्टिविटी शामिल होनी चाहिए। यह बिंदु छोटे नहीं हैं। इनका अभिभावकों द्वारा परिपालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोरोना कालमें हमारे अनेक शिक्षक भी तनावमें हैं। एक नये शोधमें यह बात सामने आयी है कि मध्य विद्यालयोंके ९४ प्रतिशत शिक्षक उच्च स्तरके तनावसे ग्रस्त रहते हैं, जिसका विद्यार्थियोंके परिणामपर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शोधके निष्कर्षमें आगे कहा गया है कि प्राथमिक विद्यालयके शिक्षकोंके बीच तनावका अध्ययन किये जानेपर यह बात सामने आयी है कि शिक्षकोंके तनावमें रहनेका छात्रोंके परिणामपर नकारात्मक असर हो सकता है।
अमेरिकी अध्ययनके अनुसार कई शिक्षकोंको वह समर्थन नहीं मिल रहा है, जो उन्हें अपनी नौकरीके तनावसे पर्याप्त रूपसे निबटनेके लिए जरूरी है। मान लें तो हमारे शिक्षकोंको कोरोना तनावसे मुक्त रखना इस समय एक बड़ा प्रशासनिक और सामाजिक चैलेंज है। आम आदमीकी बात करें तो कोरोनाके देशमें फिरसे हावी होनेसे लोगोंको इस वक्त परेशान करनेवाली तीन मुख्य वजहें हैं। एक तो कोरोना वायरससे संक्रमित होनेका डर, दूसरा नौकरी और कारोबारको लेकर अनिश्चितता और तीसरा लॉकडाउनके कारण अकेलापन होना। इस तनावका असर शरीर, दिमाग, भावनाओं और व्यवहारपर पड़ता है। हर आदमीपर इसका अलग-अलग असर होता है। इससे निबटनेके लिए मानसिक मजबूतीका प्रयत्न महत्वपूर्ण है। परीक्षाके दौरान अभिभावक और शिक्षक भी उतने ही चिंतित और उत्सुक नजर आते हैं जितने कि छात्र। उनकी चिंताका भी एक ही मुद्दा है कि मेरा बच्चा अच्छे अंकोंसे उत्तीर्ण हो और यदि बच्चा अच्छे अंकोंसे उत्तीर्ण हो जाता है तो इसका मतलब है कि माता-पिता और शिक्षकने अपनी-अपनी जिम्मेदारियां भली-भांति निभायी हैं।
इसमें अभिभावकों और शिक्षकोंकी बहुत बड़ी भूमिका है। बच्चे अक्सर अपने माता-पिता एवं शिक्षकोंकी उम्मीदोंपर खरा उतरना चाहते हैं, लेकिन शिक्षकों और अभिभावकोंको यह ध्यानमें रखना चाहिए कि उनकी उम्मीदोंकी वजहसे बच्चेके दिमागपर अनावश्यक दबाव न पड़े। परीक्षाके दिनोंमें बच्चोंके मनमें तनावका एक मुख्य कारण हरदम पढ़ाईकी बात करना होता है। दरअसल एक ओर बच्चे पहले ही पढ़ाईको लेकर चिंतित रहते हैं, वहीं दूसरी ओर घरका माहौल भी कुछ ऐसा होता है जिससे बच्चेका तनाव बढ़ता जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप बच्चेसे हरदम पढ़ाईकी ही बात न करें, बल्कि उसके साथ थोड़ी देर टहलें या फिर खेलें। अन्य एक्टिविटी करनेसे बच्चेका मूड फ्रेश होता है, जिससे वह बेहतर तरीकेसे परफॉर्म करते हैं। अमूमन माता-पिता बच्चोंसे सिर्फ पढ़ाईकी ही बात करते हैं, जिससे बच्चा परेशान हो जाता है। यकीनन इस समय बच्चोंको अतिरिक्त पढ़ाई करनेकी जरूरत होती है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप एक स्टडी प्लान बनायें। मसलन बच्चा पूरे दिनमें कितनी देर पढ़ाई करेगा और उसे कितनी देरका ब्रेक लेना है। एक बारमें वह कितने पार्टको कवर करेगा, इन सबकी प्लानिंग पहले ही कर लें। इस तरह जब आप पहलेसे ही सारी प्लानिंग कर लेंगी तो इससे बच्चोंका भी तनाव कम होगा। परीक्षाके दिनोंमें बच्चोंका खान-पान भी काफी अहम होता है। इस दौरान बच्चोंको अतिरिक्त भूख लगती है। लेकिन आप बच्चोंको हैवी या तला हुआ फूड खिलानेकी जगह थोड़ी-थोड़ी देरमें कुछ न कुछ खानेको दें। साथ ही लिक्विडकी मात्रा अधिक रखें और उसे हेल्दी स्नैक्स जैसे रोस्टेड बादाम या मखाना आदि दें। इतना ही नहीं, उनका संतुलित खान-पान बच्चोंके तनावको दूर करता है। यदि बच्चा पढ़ाईको लेकर अतिरिक्त तनावमें है तो आप उसके साथ मिलकर कुछ रिलैक्सेशन एक्टिविटी कर सकते हैं।