सम्पादकीय

वर्षा जल संग्रहण जरूरी


डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा 

पिछले तीन चार सालसे देशमें मानसूनकी स्थिति अच्छी ही रही है। फिर भी वर्षा जलके संग्रहणमें खास सुधार नहीं आया है। अच्छे मानसूनके कारण कृषि उत्पादनके क्षेत्रमें हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं। इन्द्रदेवकी कृपा और अन्नदाताकी मेहनतका ही फल है कि देशमें अन्न-धनका भण्डार भरा हुआ है। कोरोनाकी भयावहताके बावजूद देशके किसी कोनेमें किसी भी व्यक्तिके लिए पेट भरनेके लिए अनाजकी कमी नहीं रही। केन्द्र और राज्य सरकारोंने जरूरतमंद लोगोंके लिए अन्नके गोदाम खोल दिये और घर बैठे राशन सामग्री उपलब्ध करायी। भारतीय मौसम विज्ञान विभागने पिछले दिनों देशमें आगामी मानसूनकी स्थितिको लेकर फारकास्ट जारी किया है। हालांकि एक समय था जब मौसम विभागकी भविष्यवाणी कुछ और कहती थी और वास्तविकतामें कुछ और होता था। परन्तु अब मौसम विभागका आंकलन बहुत हदतक सटीक होने लगा है। मौसम विभागने जहां एक और देशमें ९८ फीसदी बरसात होनेका पूर्वानुमान किया है तो उसने यह भी विश्वास दिलाया है कि अब मौसम विभाग एक माहके मानसूनकी स्थितिका आकलन भी करके बतायगा जिससे खेती-किसानीको सीधा-सीधा लाभ होगा। हालांकि पिछले दिनों निजी क्षेत्रकी संस्था स्काईमेटने भी मानसूनकी भविष्यवाणी करते हुए देशमें अच्छे मानसूनकी संभावना व्यक्त की है। देशमें दक्षिण पश्चिम मानसूनका सीधा असर होता है। खेती किसानी सारीकी सारी दक्षिण पश्चिम मानसूनपर निर्भर है। गये साल भी अच्छे मानसूनके चलते देशमें कृषि उपजका रेकार्ड उत्पादन हुआ है। आशा की जानी चाहिए कि इस साल भी अच्छे मानसूनका लाभ खेती-किसानीको मिलेगा और देशकी अर्थव्यवस्थाके लिए बड़ा सहारा लेकर खेती किसानी आगे आयगी।

बरसातके पानीकी एक-एक बूंदको सहेजनेका संदेश दिया जाता रहा है। इसके पीछे मूल कारण देशभरमें जल स्तरका नीचे जाना और अधिकांश जोनको डार्क जोनमें परिवर्तित होना है। ऐसेमें पानीकी एक-एक बूंद बचानेका संदेश दिया जा रहा है। कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध होगा तो पानी भी उसका एक प्रमुख कारण होगा। हालांकि यह अतिशयोक्ति हो सकती है परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं कि पानीकी एक-एक बूंदको सहेजना आजकी आवश्यकता हो गयी है। दरअसल गांवोंका शहरोंमें समाना और गगनचुंबी इमारतोंके साथ ही गांवोंमें बोर वेलोंकी श्रृंखला बननेसे धरतीके पानीका अंधाधूंध दोहन होने लगा है। जितना पानी पीनेके लिए चाहिए उससे कई गुणा अधिक पानी तो अब व्यर्थके कामोंमें खर्च होने लगा है। पानीका अपव्यय इस कदर हो रहा है कि जल संकटके बावजूद हम इसका मोल समझ ही नहीं पा रहे। ऐसेमें पानीकी एक-एक बूंदको सहेजनेका संदेश अपने आपमें महत्वपूर्ण हो जाता है।

मौसम विभागने अप्रैलमें मानसूनकी संभाव्यता बता दी है। अब सरकारों, गैरसरकारी संघटनों और आमजनका दायित्व हो जाता है कि बरसातके पानीका सदुपयोग हो। इसके लिए जल संग्रहणके पारम्परिक साधनों यथा ताल-तलैयाओं, एनिकटों, तालाबों, नदियों, बावडिय़ों, टांकों या पानीके एकत्र करनेके माध्यमोंमें पानीकी निर्बाध आवक हो सके और आसानीसे पानीका संग्रह हो, इसके समन्वित प्रयास किये जानेकी आवश्यकता है। इसके लिए हमें हमारें सामाजिक दायित्वको समझना होगा। इसी तरहसे वाटर हार्वेस्टिंग ढांचोंकी साफ-सफाई एवं अवरोधोंको हटानेका काम भी समय रहते करना होगा। प्रयास यह होना चाहिए कि बरसातकी एक बूंद भी बेकार नहीं जाय और बरसातकी एक-एक बूंद एकत्रित की जा सके। यह कार्य केवल सरकारके भरोसे नहीं हो सकता। इसके लिए जन-साधारणको भी आगे आना होगा। एक समय था जब पानी संग्रहणके परम्परागत स्रोत बने हुए थे परन्तु भूमाफियों और शहरीकरणके विस्तारमें हमनें न केवल उन सग्रंहण केन्द्रोंको नष्ट कर दिया अपितु उनमेंसे जो बचे भी तो उनमें आनेवाले पानीका राह ही बंद कर दी। जयपुरके रामगढ़का जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने हैं। इस तरहके उदाहरण देशके हर कोनेमें आसानीसे मिल जायंगे। इसका खामियाजा भी हमें भुगतना पड़ रहा है। ऐसेमें जहां अच्छे मानसूनकी भविष्यवाणी शुभ संकेत लेकर आयी है तो अभी हमारेसे डेढ़से दो माहका समय है जिसमें हम पानीकी एक एक बूंदको सहेजनेकी तैयारी कर सकते हैं। हालांकि इसके साथ ही पानीकी बचत यानीकी एक-एक बूंदके अपव्ययको भी रोकना होगा। अच्छा मानसून राहतभरी खबर होती है तो इसका लाभ उठाना भी हमारा दायित्व हो जाता है। अभीसे इस तरहका माहौल बनाना होगा कि बरसातकी एक-एक बूंदको बर्बाद नहीं जाने देंगे और पानीकी प्रत्येक बूंदको सहेजनेका संकल्प लेंगे। तभी अच्छे मानसूनका फायदा उठा सकेंगे। हमें भूमिगत जलके स्तरको बचाना होगा, ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे बरसातका पानी धरतीमें समाये और भूमिगत जल स्तरमें सुधार हो। इसके लिए सोशल मीडियाके माध्यमसे लोगोंको अवेयर करना होगा और जन-जागरण करते हुए लोगोंको वर्षा जल संग्रहणका संदेश देना होगा।